अपठित बोध
कुल अंक - 20 प्रश्न 1-काव्यांश बोध पर आधारित पाँच लघूत्तरात्मक प्रश्न 1*5= 5 प्रश्न 2-गद्यांश बोध परआधारितबोध,प्रयोग,रचनान्तरण,शीर्षक आदि परलघूत्तरात्मकप्रश्न15 खंड-ख रचनात्मक-लेखन एवं जनसंचार माध्यम कुल अंक - 25 प्रश्न 3- निबंध (किसी एक विषय पर) 5 प्रश्न 4- कार्यालयी पत्र (विकल्प सहित) 5 प्रश्न 5-(क) प्रिंट माध्यम,सम्पादकीय, रिपोर्ट, आलेख आदि परपाँच अति लघूत्तरात्मकप्रश्न 1*5=5 (ख) आलेख (किसी एक विषय पर) 5 प्रश्न 6-फीचर लेखन (जीवन-सन्दर्भों से जुडी घटनाओं और स्थितियों परफीचर लेखनविकल्प सहित) 5 खंड-ग आरोह भाग-२ (काव्य भाग और गद्य भाग) कुल अंक -(20+20) =40 प्रश्न 7- दो काव्यांशों में से किसी एक पर अर्थ ग्रहण के 4 प्रश्न 8 प्रश्न 8- काव्यांश के सौंदर्य-बोध पर दो काव्यांशों में विकल्प दिया जाएगा तथा किसी एक काव्यांश के तीनों प्रश्नों के उत्तर देने होंगे | 6 प्रश्न 9- कविताओं की विषयवस्तु से संबंधित तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (3+3)= 6 प्रश्न 10-दो में से किसी एक गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण के चार प्रश्न 2*4=8 प्रश्न 11- पाठों की विषयवस्तु पर आधारित पाँच में चार बोधात्मक प्रश्न 3*4=12 पूरक पुस्तक वितान भाग -2 कुल अंक - 15 प्रश्न 12-पाठों की विषयवस्तु पर आधारित तीन में से दो बोधात्मक प्रश्न (3+3)=6 प्रश्न 13-विचार/संदेश पर आधारित तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (2+2)=4 प्रश्न 14- विषयवस्तु पर आधारित दो में से एक निबंधात्मक प्रश्न 5
खंड-क अपठित बोध: कुल अंक -20
सामान्य निर्देश:
अपठित काव्यांश का नमूना तुम भारत, हम भारतीय हैं, तुम माता, हम बेटे, किसकी हिम्मत है कि तुम्हें दुष्टता-दृष्टि से देखे | ओ माता, तुम एक अरब से अधिक भुजाओं वाली, सबकी रक्षा में तुमसक्षम, हो अदम्य बलशाली | भाषा, वेश, प्रदेश भिन्न हैं, फिर भी भाई-भाई, भारत की साझी संस्कृति में पलते भारतवासी | सुदिनों मेंहम एक साथ हँसते, गाते, सोते हैं, दुर्दिन में भी साथ-साथ जागते, पौरुष धोते हैं | तुम हो शस्य-श्यामला, खेतों में तुम लहराती हो, प्रकृति प्राणमयी, साम-गानमयी, तुम न किसे भाती हो | तुम न अगर होती तो धरती वसुधा क्यों कहलाती ? गंगा कहाँ बहा करती, गीता क्यों गाई जाती ? प्रश्न:
उत्तर –
अभ्यास-1 निम्नलिखित गदयांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए । पशु और बालक भी जिनके साथ रहते हैं , उनसे पारच जाते हैं | यह परचना परिचय ही है | परिचय प्रेम का प्रवर्तक है | बिना परिचय प्रेम नहीं हो सकता | यदि देश प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए| बाहर निकलिए तो आँखे खोलकर देखिये कि खेत कैसे लहलहा रहे हैं , नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं , टेसू के फूलों से वनस्थली कैसे लाल हो रही है ,कछारों में चौपायों के झुंड इधर – उधर चरते हैं चरवाहे तान लड़ा रहे हैं ,अमराइयों के बीच गाँव झाँक रहे हैं ; उनमें घुसिए , देखिये तो क्या हो रहा है | जो मिले उनसे दो – दो बातें कीजिये , उनके साथ किसी पेड़ की छाया के नीचे घड़ी – आध –घड़ी बैठ जाइए और समझिए कि ये सब हमारे देश के हैं | इस प्रकार जब देश का रूप आपकी आखों में समा जाएगा , आप उसके अंग प्रत्यंग से परिचित हो क-जाएँगे , तब आपके अंतःकरण में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कि वः कभी न छूटे ,वः सदा हरा – भरा और फला – फूला रहे , उसके धनधान्य की वृद्धि हो , उसके सब प्राणी सुखीरहें | पर आजकल इस प्रकार का परिचय बाबुओं की लज्जा का अक विषय हो रहा है | वे देश के स्वरूप से अनजान रहने या बनने में अपनी बड़ी शान समझते हैं | मैं अपने एक लखनवी दोस्त के साथ साँची का स्तूप देखने गया | वह स्तूप एक बहुत सुंदर छोटी – सी पहाड़ी के ऊपर है | नीचे छोटा – मोटा जंगल है , जिसमें महुए के पेड़ भी बहुत – से हैं | संयोग से उन दिनों वहाँ पुरातत्व विभाग का कैंप पड़ा हुआ था | रात हो जाने से उस दिन हम लोग स्तूप नहीं देख सके , सवेरे देखने का विचार करके नीचे उतर रहे थे | वसंत का समय था | महुए चारों ओर टपक रहे थे | मेरे मुँह से निकला – “ महुओं की कैसी महक आ रही है |” इस पर लखनवी महाशय ने चट मुझे रोककर कहा _ “ यहाँ महुए – महुए का नाम न लीजिए , लोग देहाती समझेंगे | “ मैं चुप हो रहा , समझ गया कि महुए का नाम जानने से बाबूपन में बड़ा भारी बट्टा लगता है | पीछे ध्यान आया कि यह व्ही लखनऊ है जहाँ कभी यह पूछने वाले भी थे कि गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा है या बड़ा | (क ) “ परिचय प्रेम का प्रवर्तक है “- का क्या आशय है ? 2 ( ख ) लेखक ने किन बाबुओं पर व्यंग्य किया है ? 2 ( ग ) लखनवी दोस्त ने लेखक को महुओं का नाम लेने से क्यों रोका ? 2 ( घ ) पुरातत्व विभाग का क्या काम होता है ? 2 ( ड ) प्रश्नवाचक वाक्य बनाइए – परिचय प्रेम का प्रवर्तक है | 1 ( च ) पुरातत्व का संधि विच्छेद करें । 1 ( छ ) देश प्रेम के उपायों पर चर्चा कीजिए । 2 ( ज ) गद्यांश में देश के किस स्वरूप का वर्णन किया गया है ? 2 ( झ ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए । 1 अभ्यास -2 निम्नलिखित गद्याँश को पढकर पूछे गए प्रश्नोँ के उत्तर दीजिए । यह संतोष और गर्व की बात है कि हमारा देश वैजानिक और औद्योगिक क्षेत्र मेँआशातीत प्रगति कर रहा है ।विश्व के समृद्ध अर्थ-व्यवस्था वाले देशों से टक्कर ले रहा है और उनसे आगे निकल जाना चाहता है, किंतु इस प्रगति के उजले पहलूके साथ एक धुँधला पहलू भी है जिससे हम छुटकारा चाहते हैं । वह है अनैतिकता का पहलू । यदि हमारे हृदय मेँ सत्य .ईमानदारी, कर्मनिष्ठा और मानवीय भावनाएँ नहीँ है ; तो सारी प्रगति निरर्थक है । आज यह आम धारणा बन गई है कि बिना हथेली गरम किए कोई काम नहीँ होगा ।भ्रष्ट अधिकारियोँ औरभ्रष्ट जनसेवकोँ कोन तो समाज की चिंता है,और न ही देश की । भ्रष्टाचार और घोटाले के समाचारोँ से समाचार पत्र भरे रहते हैँ ।लोग मान बैठे हैँ कि यही हमारा राष्ट्रीय चरित्र है।जबकि यह सच नहीँ है ।नैतिकता मरी नहीँ है ,परंतु लोगोँ मेँ यह धारणा जरूरबन गई है कि जब बडे लोग ही ऐसा करते हैँ तो हम क्योँ न करेँ ?सबसे पहले इस सोच से मुक्ति पाना जरूरी है ।इसके बाद भ्रष्टाचार और घोटाले से मुक्त समाज बनाने का संकल्प लेना है ।
अभ्यास-3 निम्नलिखित काव्यान्श को पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1*5=5 फिर से नहीं आता समय,जो एक बार चला गया , जग में बाधा रहित कब कौन काम हुआ भला। बहती नदी सूखे अगर उस पार मैं इसके चलूँ , इस सोच में बैठा पुलिन पर,पार जा सकता भला? किस रीति से क्या काम ,कब करना बनाकर योजना , मन में आशा लिए प्रबल ,दृढ़ वही जो बढ़ पाएगा । उसको मिलेगा तेज बल ,अनुकूलता सब ओर से , वह कर्मयोगी ,वीर,अनुपम साहसी सुख पाएगा । यह वीर भोग्या जो ह्रदय में बनी वसुधा सदा , करती रही आहवाहन है,युग वीर का ,पुरुषत्व का। कठिनाईयों में खोजकर पथ,ज्योति-पूरित जो करे, विजयी वही होता धरणी-सूत वरन कर अमरत्व का ॥
अभ्यास-4निम्नलिखित काव्यान्श को पढकर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1*5=5 जिन्दगी वहीँ तक नहीँ ,ध्वजा जिस जगह विगत युग ने गाडी, मालूम किसी को नहीँ, अनागत नर की दुविधाएँ सारी । सारा जीवन नप चुका , कहे जो वह दासता प्रचारक है । नर के विवेक का शत्रु ,मनुज की मेधा का संघारक है । जो कहे, सोच मत स्वयं , बात जो कहूँ मानता चल उसको । नर की स्वतन्त्रता की मणि का .तू कह आराति प्रबल उसको । नर स्वतंत्र चिंतन से जो डरता ,कदर्प , अविचारी है । बेडियाँ बुद्धि को देता , जुल्मी है , अत्याचारी है । क-‘ सारा जीवन नप चुका’ कहने वाले को दासता प्रचारक क्योँ कहा गया है ? ख-कवि आने वाली पीढी के नवयुवकोँ को क्या सलाह दे रहा है ? ग-मनुष्य के स्वतंत्र चिंतनसे डरने वाले को क्या कहा गया है ? घ-बुद्धि को बेडियाँ देने का क्या आशय है ? ड-नर के विवेक का शत्रु किसे कहा गया है ? खंड-ख रचनात्मक-लेखन :- कुल अंक – 25
निबंध हेतु नमूना रूपरेखा : भ्रष्टाचार : एक मानसिक गुलामी
अभ्यास कार्य अभ्यास हेतु निबंध-
(ख) रिपोर्ट/आलेख/फीचर लेखन
रिपोर्ट के गुण:
अभ्यास कार्य रिपोर्ट का नमूना :- हर साल बच्चों की ह्त्या और अपहरण की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। इस पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए। गत दस वर्षों से निर्दोष बच्चों के अपहरण और ह्त्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। सन 2005 में दिल्ली में 500 बच्चों का अपहरण हुआ और 198 की ह्त्या कर दी गई। 2008 में यह संख्या बढ़कर 734 तथा 298 हो गई । 2011 के आंकड़ें बताते हैं कि इस वर्ष 1079 बच्चे अपहरण के शिकार हुए ,जबकि 345 बच्चों की हत्या कर दी गई । ये आंकड़ें सरकारी हस्पताल या पुलिस रिपोर्ट पर आधारित हैं । न जाने और भी कितने बच्चे अपहरण और हत्या के शिकार हुए होंगें। शोध में यह तथ्य उभर कर आया है कि यह काम सुनियोजित होता है । पुलिस कि लापरवाही और लोभ के कारण अपराधी गिरोहों का पर्दाफाश नही हो पाता । इसलिए यह संख्या दिनोदिन बढ़ती जा रही है। निम्नलिखित विषयों पर रिपोर्ट तैयार कीजिए-
समकालीन घटना तथा किसी भी क्षेत्र विशेष की विशिष्ट जानकारी के सचित्र तथा मोहक विवरण को फीचर कहते हैं |फीचर मनोरंजक ढंग से तथ्यों को प्रस्तुत करने की कला है | वस्तुत: फीचर मनोरंजन की उंगली थाम कर जानकारी परोसता है| इस प्रकार मानवीय रूचि के विषयों के साथ सीमित समाचार जब चटपटा लेख बन जाता है तो वह फीचर कहा जाता है | अर्थात- “ज्ञान + मनोरंजन = फीचर” | नमूना फीचर : पियक्कड़ तोता : संगत का असर आता है, फिर चाहे वह आदमी हो या तोता | ब्रिटेन में एक तोते को अपने मालिक की संगत में शराब की ऐसी लत लगी कि उसने घर वालों और पड़ोसियों का जीना बेहाल कर दिया | जब तोते को सुधारने के सारे हथकंडे फेल हो गए तो मजबूरन मालिक को ही शराब छोड़नी पड़ी | मार्क बेटोकियो ने अफ्रीकी प्रजाति का तोता मर्लिन पाला| मार्क यदा-कदा शराब पी लेते | गिलास में बची शराब मर्लिन चट कर जाता | धीरे-धीरे मर्लिन की तलब बढ़ने लगी| वह वक्त-बेवक्त शराब माँगने लगा। अभ्यास कार्य निम्नलिखित विषयों पर फ़ीचरलिखिए:
आलेख-लेखन हेतु महत्त्वपूर्ण बातें:
नमूना आलेख : शेर का घर जिमकार्बेट नेशनल पार्क जंगली जीवों की विभिन्न प्रजातियों को सरंक्षण देने तथा उनकी संख्या को बढाने के उद्देश्य से हिमालय की तराई से लगे उत्तराखंड के पौड़ी और नैनीताल जिले में भारतीय महाद्वीप के पहले राष्ट्रीय अभयारण्य की स्थापना प्रसिद्ध अंगरेजी लेखक जिम कार्बेट के नाम पर की गई | जिम कार्बेट नॅशनल पार्क नैनीताल से एक सौ पन्द्रह किलोमीटर और दिल्ली से २९० किलोमीटर दूर है। यह अभयारण्य पाँच सौ इक्कीस किलोमीटर क्षेत्र में फैला है | नवम्बर से जून के बीच यहाँ घूमने-फिरने का सर्वोत्तम समय है | यह अभयारण्य चार सौ से ग्यारह सौ मीटर की ऊँचाई पर है | ढिकाला इस पार्क का प्रमुख मैदानी स्थल है और कांडा सबसे ऊँचा स्थान है| जंगल, जानवर, पहाड़ और हरी-भरी वादियों के वरदान से जिमकार्बेट पार्क दुनिया के अनूठे पार्कों में है | रायल बंगाल टाइगर और एशियाई हाथी पसंदीदा घर है | यह एशिया का सबसे पहला संरक्षित जंगल है | राम गंगा नदी इसकी जीवन-धारा है | यहाँ एक सौ दस तरह के पेड़-पौधे, पचास तरह के स्तनधारी जीव, पच्चीस प्रजातियों के सरीसृप और छह सौ तरह के रंग-विरंगे पक्षी हैं | हिमालयन तेंदुआ, हिरन, भालू, जंगली कुत्ते, भेड़िये, बंदर, लंगूर , जंगली भैंसे जैसे जानवरों से यह जंगल आबाद है | हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं | शाल वृक्षों से घिरे लंबे-लंबे वन-पथ और हरे-भरे घास के मैदान इसके प्राकृतिक सौंदर्य में चार चाँद लगा देते हैं | अभ्यास कार्य निम्नलिखित विषयों पर आलेख लिखिए-
(ग)पत्र-लेखन विचारों, भावों, संदेशों एवं सूचनाओं के संप्रेषण के लिए पत्र सहज, सरल तथा पारंपरिक माध्यम है। पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं, पर प्राय: परीक्षाओं में शिकायती-पत्र, आवेदन-पत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं। पत्र प्रारूप:- सेवा में , संस्था प्रमुख (प्रश्न-पत्र के अनुसार) विषय- महोदय; निवेदन है कि , .................................................................................................... .................................................................................................... .................................................................................................... भवदीय आवेदन कर्ता पता सहित हस्ताक्षर दिनांक :- विचारों, भावों, संदेशों एवं सूचनाओं के संप्रेषण के लिए पत्र सहज, सरल तथा पारंपरिक माध्यम है। पत्र अनेक प्रकार के हो सकते हैं, पर प्राय: परीक्षाओं में शिकायती-पत्र, आवेदन-पत्र तथा संपादक के नाम पत्र पूछे जाते हैं। धन्यवाद सहित पत्र का नमूना : अस्पताल के प्रबंधन पर संतोष व्यक्त करते हुए चिकित्सा-अधीक्षक को पत्र लिखिए | माननीय चिकित्सा-अधीक्षक, दीफू जिला अस्पताल, दीफू ,कार्बी आङ्ग्लोंग | विषय : अस्पताल के प्रबंधन पर संतोष व्यक्त करने के संदर्भ में - मान्यवर, इस पत्र के माध्यम से मैं आपके चिकित्सालय के सुप्रबंधन से प्रभावित हो कर आपको धन्यवाद दे रहा हूँ | गत सप्ताह मेरे पिता जी हृदय-आघात से पीड़ित होकर आपके यहाँ दाखिल हुए थे | आपके चिकित्सकों और सहयोगी स्टाफ ने जिस तत्परता, कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से उनकी देखभाल तथा चिकित्सा की उससे हम सभी परिवारी जन संतुष्ट हैं | हमारा विश्वास बढ़ा है | आपके चिकित्सालय का अनुशासन प्रशंसनीय है | आशा है जब हम पुनर्परीक्षण हेतु आएँगे, तब भी वैसी ही सुव्यवस्था मिलेगी | धन्यवाद सहित ! भवदीय क ख ग धरमनाला, मुख्य बाजार दीफू,असम हस्ताक्षर:- दिनांक :- अभ्यास कार्य अभ्यासार्थ प्रश्न:-
4. लिपिक पद हेतु विद्यालय के प्राचार्य को आवेदन-पत्र लिखिए। 5. अपने क्षेत्र में बिजली-संकट से उत्पन्न कठिनाइयों का वर्णन करते हुए अधिशासीअभियन्ता विद्युत-बोर्ड को पत्र लिखिए।
(घ)जनसंचार माध्यम एवं अभिव्यक्ति उत्तम अंक प्राप्त करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें-
नमूना प्रश्नोत्तर :- नमूना प्रश्नोत्तर रू. प्रश्न 1संचार शब्द को परिभाषित करिए। उत्तर: संचार शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ शब्द से हुई है। ‘चर’ का अर्थ है - चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। प्रश्न 2.: संचार से क्या अभिप्राय है? उत्तर: संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। प्रश्न 3.: संचार और जनसंचार के विविध माध्यम कौन-कौन से हैं? उत्तर: टेलीफोन, इंटरनेट, फैक्स, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविजन और सिनेमा आदि। प्रश्न 5.: संचार के तत्त्व कौन-कौन से हैं? उत्तर: स्रोत, संदेश, शोर, डीकोडिंग, फीडबैक आदि। प्रश्न 6.: ‘संचार’ के प्रकार कौन-कौन से हैं? उत्तर: मौखिक और अमौखिक संचार, अंतःवैयक्तिक संचार, अंतर-वैयक्तिक संचार, समूह, समूह संचार, जनसंचार आदि। प्रश्न 7.: संचार प्रक्रिया की शुरूआत कब होती है? उत्तर: जब स्रोत या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुँचाना चाहता है तब संचार की शुरूआत होती है। प्रश्न 8.: सफल संचार के लिए क्या आवश्यक है? उत्तर: सफल संचार के लिए आवश्यक है कि संदेशग्रहीता भी भाषा यानी उस कोड से परिचित हो जिसमें अपना संदेश भेज रहे हैं। प्रश्न 9.: ‘डीकोडिंग’ का क्या अर्थ है? उत्तर: ‘डीकोडिंग’ का अर्थ है - प्राप्त संदेशों में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। प्रश्न 10. ‘फीडबैक’ से हमें क्या पता चलता है? उत्तर: फीडबैक से हमें पता चलता है कि संचारक ने जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था, वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है। प्रश्न 11.: ‘शोर’ से क्या अभिप्राय है? उत्तर: संचार-प्रक्रिया में कई प्रकार की बाधाएँ आती हैं, इन बाधाओं को शोर कहते हैं। प्रश्न 12.: सांकेतिक संचार किसे कहते हैं? उत्तर: संकेतों द्वारा विचारों का आदान-प्रदान करना ही सांकेतिक संचार कहलाता है। प्रश्न 13.: अंतर-वैयक्तिक संचार से आप क्या समझते हैं? उत्तर: जब दो व्यक्ति आपस में आमने-सामने संचार करते हैं तो इसे अंतर-वैयक्तिक संचार कहते हैं। प्रश्न 14.: साक्षात्कार में कौन-से कौशल की परख होती है? उत्तर: साक्षात्कार में अंतर-वैयक्तिक कौशल की परख होती है। प्रश्न 15.: जनसंचार की किसी एक विशेषता को लिखिए। उत्तर: जनसंचार माध्यमों के जरिए प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है? प्रश्न 16.: संचार के प्रमुख कार्य बताइए। उत्तर: प्राप्ति, नियंत्रण, सूचना, अभिव्यक्ति, सामाजिक सम्पर्क तथा समस्या-समाधान प्रतिक्रिया आदि। प्रश्न 17.: जनसंचार के प्रमुख प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए। उत्तर: सूचना देना, शिक्षित करना, मनोरंजन करना, एजेंडा तय करना, निगरानी करना, तथा विचार-विमर्श के लिए मंच उपलब्ध कराना। प्रश्न 18.: संपादकीय विभाग का क्या कार्य है? उत्तर: खबरों, लेखों तथा फीचरों को व्यवस्थित ढंग से संपादकीय करने का कार्य संपादकीय विभाग का होता है? प्रश्न 19.: उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन कब और कहाँ हुआ ? उत्तर: साप्ताहिक पत्र उदंत मार्तण्ड1826 ई. में कोलकाता से जुगल किशोर के संपादकत्व में प्रकाशित हुआ। प्रश्न 20.: भारत में पत्रकारिता की शुरूआत कब हुई? उत्तर : भारत में पत्रकारिता की शुरूआत सन् 1780 ई में जेम्स आॅगस्ट हिक्की के ‘बंगाल-गजल’ से हुई। प्रश्न 21.: आजादी-पूर्व के प्रमुख पत्रकारों के नाम बताइए। उत्तर: गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रतापनारायण मिश्र, शिवपूजन सहा, रामवृक्ष बेनीपुरी, बालमुकुन्द गुप्त आदि। प्रश्न 22. आजादी पूर्व की कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओ के नाम बताइए। उत्तर: केसरी, हिन्दुस्तान, सरस्वती, हंस, कर्मवीर, प्रताप, आज, विशाल भारत आदि। प्रश्न 23.: रेडियो का आविष्कार कब और किसने किया? उत्तर: सन् 1895 ई. में जी मार्काेनी ने। प्रश्न 24: सिनेमा का आविष्कार कब और किसने किया? उत्तर: सन् 1883 ई. में थामस अल्वा एडीसन ने। प्रश्न 25.: जनसंचार का नवीनतम लोकप्रिय साधन क्या है? उत्तर: इन्टरनेट प्रश्न 26.: प्रमुख स्टिंग आॅपरेशन कौन से हैं? उत्तर: तहलका, आॅपरेशन दुर्योधन या चक्रव्यूह, प्रश्न 27.: पत्रकारिता का मूल तत्व क्या है? उत्तर: जिज्ञासा और समाचार व्यापक अर्थों में पत्रकारिता का मूल तत्व है। प्रश्न 28.ः पत्रकारिता का सम्बन्ध किससे है? उत्तर: सूचनाओं का संकलन एवं उनका संपादन कर पाठकों तक पहुँचाना है। प्रश्न 29: समाचार में कौन-से तत्व आवश्यक है? उत्तर: नवीनता, जनरुचि, निकटता, प्रभाव, प्रश्न 30.: संपादन में मुख्य रूप से क्या आवश्यक है? उत्तर : तथ्यपरकता, वस्तुपरकता, निष्पक्षता तथा संतुलन । प्रश्न 31.: समाचार की परिभाषा लिखिए। उत्तर: समाचार किसी भी ऐसी ताजा घटना, विचार या समस्या की रिपोर्ट है जिसमें अधिक से अधिक लोगो की रुचि हो, और जिसका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ रहा हो। प्रश्न 32. : संपादन का क्या अर्थ है? उत्तर: किसी सामग्री की अशुद्धियों को दूर कर उसे पठनीय बनाना। प्रश्न 33.: पत्रकार की बैसाखियाँ किसे कहा जाता है? उत्तर: विश्वसनीयता, संतुलन, निष्पक्षता तथा स्पष्टता प्रश्न 34. संपादकीय किसे कहा जाता है? उत्तर: संपादक जिस पृष्ठ पर विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय प्रकट करता है उसे संपादकीय कहते है। प्रश्न 35. पहले पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले हस्ताक्षरित समाचार को क्या कहते हैं? उत्तर: कार्टून कोना प्रश्न 36. पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार बताइए। उत्तर: खोजपरक पत्रकारिता, विशेषीकृत पत्रकारिता, वाॅचडाॅग पत्रकारिता, एडव्होकेसी पत्रकारिता, वैकल्पिक मीडिया। प्रश्न 37.: खोजपरक पत्रकारिता से आप क्या समझते हैं? उत्तर: ऐसी पत्रकारिता जिसमें गहराई से छानबीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाअेां को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छिपाने का प्रयास किया जा रहा हो। प्रश्न 38.: वाॅचडाॅग पत्रकारिता से क्या आशय है? उत्तर: किसी के सरकार के कामकाज पर निगाह रखते हुए किसी गड़बड़ी का पर्दाफाश करना वाॅचडाॅग पत्रकारिता कहलाती है। प्रश्न 39.: एडव्होकेसी पत्रकारिता क्या है? उत्तर: किसी खास मुद्दे को उछालकर उसे पक्ष में जनमत बनाने का लगातार अभियान चलाना एडवोकेसी पत्रकारिता कहलाती है। प्रश्न 40.: वैकल्पिक मीडिया से आप क्या समझते हैं? उत्तर: जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल वैकल्पिक सोच को अभिव्यक्त करता है, उसे वैकल्पिक मीडिया कहते हैं। प्रश्न 41.: ‘अखबार’ शब्द मूल रूप से किस भाषा का शब्द है? उत्तर: समाचार-पत्र को अरबी में अखबार कहते हैं। इसलिए ऐसा पत्र जिसमें खबरें ही खबरें हो, अखबार कहलाता है। प्रश्न 42.: अग्रलेख से क्या आशय है? उत्तर: एक ही संपादकीय स्तम्भ में दो या तीन संपादकीय लेख हों तो पहले को अग्रलेख व अन्य को संपादकीय टिप्पणियां कहते हैं। प्रश्न 43.: एंकर का क्या अर्थ है? तथा उद्घोषक को हम किस अर्थ में लेते हैं? उत्तर: किसी टीवी कार्यक्रम को संचालित करने वाला अभिनेता या अभिनेत्री। रेडियो कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व कार्यक्रम संबंधी या अन्य आवश्यक घोषणाएँ करने वाला उद्घोषक कहलाता है। प्रश्न 44.: कतरन (क्लिपिंग) किसे कहते हैं? उत्तर: संपादकीय लेख, टिप्पणियाँ तैयार करने हेतु विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से काटकर रखी गई कतरनों को क्लिपिंग कहते हैं। प्रश्न 45.: कवरेज को हम किस अर्थ में लेते हैं? उत्तर: घटनास्थल पर पहुँचकर समाचारों का संकलन करना और उन्हें प्रकाशित करना कवरेज कहलाता है। प्रश्न 46.: गजट को परिभाषित कीजिए। उत्तर: वह सामयिक-पत्र जिसमें सरकारी सूचनाएँ प्रकाशित होती हैं प्रश्न 47. पत्रकारिता में छः ककार क्या हैं? उत्तर: पत्रकार कप्लिंग ने समाचार संकलन के लिए पाँच डब्ल्यू व एक एच का सिद्धांत दिया, इसे ही हिन्दी में छः ककार का सिद्धांत कहते हैं। ये ककार हैं- कहाँ, कब, क्या, किसने, क्यों और कैसे। प्रश्न 48.: टाइप के कितने अंग हैं? उत्तर: टाइप के 10 अंग हैं- काउंटर, बाॅडी, सेरिफ, फेस, बिअर्ड, शोल्डर, पिन, निक, ग्रूव, फुट। प्रश्न 49.ः टेलीप्रिंटर का कार्य क्या है? उत्तर: विद्युत-चालित मशीन जिसकी सहायता से संवाद समितियों के समाचार, अखबार के कार्यालय तक मशीन पर चढ़े कागज पर स्वतः टाइप होकर पहुँचते हैं। प्रश्न 50.: ‘डमी’ शब्द की व्याख्या प्रस्तुत कीजिए। उत्तर: इसे ले-आउट भी कहते हैं, पत्र के पूरे आकार या छोटे आकार वाले कागज जिन पर समाचारों, चित्रों, विज्ञापनों की स्थिति की रूपरेखा दी जाती है। प्रश्न 51.: डेटलाइन किसे कहते हैं? उत्तर: प्रत्येक समाचार के शीर्षक के बाद और इंट्रो से पहले उस समाचार का स्थान व तारीख दी जाती है, उसे डेटलाइन कहते हैं। प्रश्न 52.: तडि़त समाचार (फ्लैश) से आप क्या समझते हैं? उत्तर: किसी विशेष समाचार का पूरा विवरण देने में देर लगने की स्थिति में उस समाचार का संक्षिप्त रूप, न्यूज एजेंसी , पत्र या रेडिया को दिया जाता है, इसे फ्लैश कहते हैं। प्रश्न 53.: पीत पत्रकारिता (यलो जर्नलिज्म) किसे कहते हैं? उत्तर: कतिपय समाचार-पत्र सनसनीखेज खबरों और व्यक्ति-परक चरित्र-हनन जैसे समाचारों को अधिक महत्व देते हैं, ऐसी प्रवृत्ति को पीत पत्रकारिता कहते हैं। प्रश्न 54.: प्रिंट लाइन को परिभाषित कीजिए। उत्तर: प्रत्येक समाचार-पत्र या पत्रिका में संपादक, प्रकाशक और मुद्रक का नाम अनिवार्य रूप से प्रकाशित किया जाता है, इस विवरण को ही प्रिंट लाइन कहते हैं। प्रश्न 55.: ‘फिलर’ पर टिप्पणी कीजिए। उत्तर: वह छोटा-छोटा मैटर जो मेक-अप में खाली स्थान बचने पर उसे भरने के काम आता है। प्रश्न 56.ः फीचर किसे कहते हैं? उत्तर: किसी रोचक विषय पर मनोरंजक शैली में लिखा गया लेख फीचर कहलाता है। प्रश्न 57.: फाॅलोअप क्या होता है? उत्तर: गत दिवस के अधूरे समाचार की अगली और नवीन जानकारी का प्रस्तुतीकरण ही फाॅलोअप है। प्रश्न 58.: वाइ-लाइन क्या है? उत्तर: संवाद के ऊपर दिया जाने वाला संवाददाता का नाम। प्रश्न 59.: रि-पंच के बारे में लिखिये। उत्तर: किसी समाचार का भेजने वाले केन्द्र से पुनःप्रेषण। प्रश्न 60.: लाइन ब्लाॅक क्या है? उत्तर: लाइनों से बने चित्र का ब्लाॅक। प्रश्न 61.: लीड क्या है? उत्तर: समाचार का मुख्य बिंदु जिसे पहले पैरा में दिया जाता है। ? प्रश्न 62.: लेड क्या है? उत्तर: दो पंक्तियों के बीच जो स्पेस डाला जाता है वही लेड कहलाता है। प्रश्न 63.: विज्ञापन एजेंसी का क्या कार्य है? उत्तर: ऐसी संस्था जो विज्ञापनदाताओं से उचित रकम पर विज्ञापन लेकर उसे तैयार करवाकर उचित माध्यमों को भेजती है। प्रश्न 64.: शेड्यूल क्या है? उत्तर: महत्वपूर्ण समाचारों की सूची ही शेड्यूल है। प्रश्न 65.: सर्वेक्षण (सबिंग) के विषय मंे बताइए। उत्तर: किसी समाचार या लेख को इस प्रकार संक्षिप्त करना कि समाचार या लेख के सभी मुख्य अंश उसमें आ जाएँ। प्रश्न 66.: संपादन के विषय लिखिए। उत्तर: संपादन फिल्म निर्माण की एक रचनात्मक प्रक्रिया है। इसमें किसी फिल्म के शूट किए गए दृश्यों को कहानी के अनुसार कलात्मक ढंग से जोड़ा जाता है। ध्वनि एवं संगीत भी संपादन के अंतर्गत डाली जाती है। प्रश्न 67 समय सीमा के विषय में लिखिए। उत्तर: किसी संस्करण के लिए वह अंतिम समय-सीमा जब तक मुद्रण विभाग द्वारा कंपोजिंग हेतु मैटर स्वीकार किया जाता है। प्रश्न 68 स्टैंडिंग मैटर के विषय में आप क्या जानते है? उत्तर: भविष्य मेें पुनः छापने के लिए रोका गया कंपोज्ड मैटर। प्रश्न 69 स्तंभ को परिभाषित कीजिए। उत्तर: पत्र-पत्रिका के पृष्ठ का वह भाग या किसी विशेष विषय के लिए निर्धारित स्थान को स्तंभ के रूप में जानते हैं। प्रश्न 70 फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार किसे कहते हैं? उत्तर: फ्रीलांसर या स्वतंत्र पत्रकार उन्हें कहते हैं जिनका किसी विशेष एक समाचार पत्र से संबंध नहीं होता । ऐसे पत्रकार भुगतान के आधार पर कार्य करते हैं। प्रश्न 71 हेड रूल से क्या आशय है? उत्तर: वह रेखा जो पृष्ठ के उपर क्षैतिज डाली जाती है ताकि नीचे का मैटर तारीख और संख्या आदि से समाचार पत्र का नाम अलग रहे। प्रश्न 72 फीडबैक किसे कहते है? उत्तर - संचार प्रक्रिया में संदेश को प्राप्त करने वाला जो सकारात्मक या नकारात्मक प्रतिक्रिया करता है उसे फीडबैक कहते हैं। प्रश्न 73 पत्रकारिता के पहलुओं का उल्लेख कीजिए। उत्तर - पत्रकारिता के तीन पहलु हैं - 1. समाचारों को संकलित करना। 2. उन्हें संपादित कर छपने लायक बनाना। 3. पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाठकों तक पहुॅचाना। प्रश्न 74 किन्हीं दो समाचार एजेंसियों के नाम लिखिए। उत्तर: पी. टी. आई. भाषा यू. एन. आई. यूनिवार्ता प्रश्न 75 संपादकीय के प्रमुख सिद्धांत लिखिए। उत्तर: 1. तथ्यों की शुद्धता 2. वस्तुपरकता 3. निष्पक्षता 4. संतुलन 5. स्रोत प्रश्न 76 पूर्णकालिक पत्रकार कौन होता है? उत्तर: ऐसा पत्रकार जो किसी समाचार संगठन में काम करता है और नियमित वेतन पाता है उसे पूर्णकालिक पत्रकार कहा जाता है। प्रश्न 77 संवाददाता या रिपोर्टर किसे कहते है? उत्तर: अखबारों में समाचार लिखने वालों को संवाददाता या रिपोर्टर कहते हैं। प्रश्न 78 अंशकालिक पत्रकार से आप क्या समझते हो? उत्तर: सीमित या कम समय के लिए काम करने वाले पत्रकार को अंशकालिक पत्रकार कहा जाता है। इन्हें प्रकाशित सामग्री के आधार पर पारिश्रमिक दिया जाता है। प्रश्न 79.: समाचार-लेखन की दो शैलियाँ कौन-कौन सी हैं? उत्तर : 1. सीधा पिरामिड शैली- इसमें समाचारों के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को पहले पैराग्राफ में, उससे कम महत्व की सूचना या तथ्य की जानकारी उसक बाद दी जाती है। 2. उल्टा पिरामिड शैली: यह शैली समाचारों का ऐसा ढँाचा है, जिसमें आधार ऊपर और शीर्ष नीचे होता है उसमें समाचारों का क्रम होता है - समापन, बाॅडी और मुखड़ा। यह सबसे लोकप्रिय और बुनियादी शैली है। प्रश्न 80.: डेस्क से क्या आशय है? समाचार माध्यमों में डेस्क का आशय संपादन से होता है। समाचार माध्यमों में मोटे तौर पर संपादकीय कक्ष, डेस्क और रिपोर्टिंग में बँटा होता है। डेस्क पर समाचारों को संपादित कद अपने योग्य बनाया जाता है। अभ्यास कार्य अभ्यास हेतु प्रश्न-कोश :-
आरोह भाग-२ (काव्य भाग और गद्य भाग) कुल अंक - (20+20) =40 प्रश्न 7- दो काव्यांशों में से किसी एक पर अर्थ ग्रहण के 4 प्रश्न 8 प्रश्न 8- काव्यांश के सौंदर्य-बोध पर दो काव्यांशों में विकल्प दिया जाएगा तथा किसी एककाव्यांश के तीनों प्रश्नों के उत्तर देने होंगे | 6 प्रश्न 9- कविताओं की विषयवस्तु से संबंधित तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (3+3)= 6प्रश्न 10-दो में से किसी एक गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण के चार प्रश्न 2*4=8प्रश्न 11- पाठों की विषयवस्तु पर आधारित पाँच में चार बोधात्मक प्रश्न 3*4=12 पूरक पुस्तक वितान भाग -2 कुल अंक - 15 प्रश्न12-पाठों की विषयवस्तु पर आधारित तीन में से दो बोधात्मक प्रश्न(3+3)=6 प्रश्न 13-विचार/संदेश पर आधारित तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (2+2)=4 प्रश्न 14- विषयवस्तु पर आधारित दो में से एक निबंधात्मक प्रश्न 5 काव्य भाग महत्वपूर्ण तकनीकी शब्दावली :-एक सामान्य परिचय काव्य-सौन्दर्य विवेचन- काव्य-सौंदर्य से आशय है किसी काव्य-कृति में भाव,विचार आदि वस्तुगत तत्त्वों का और गुण, अलंकार, भाषा- शैली आदि शिल्पगत (रूपगत) तत्त्वों का सामंजस्य । वस्तुगत – सौंदर्य :- वस्तुगत सौंदर्य के अंतर्गत सबसे पहले यह विचार करना चाहिए की विषय वस्तु का स्वरूप क्या है ?यदि रचना में कोई कथा या प्रसंग है तो विषयवस्तु पौराणिक ,ऐतिहासिक ,सामाजिक ,राजनैतिक आदि हो सकती है। यदि वह मुक्तक कोटि की रचना है तो विषयवस्तु वैयक्तिक हो सकती । वस्तुगत सौंदर्य के अंतर्गत निम्नलिखित तत्वों पर विचार कर सकते हैं:-
कविता :– ‘आत्मपरिचय’- ‘निशा निमंत्रण’ गीत-संग्रह का एक गीत हरिवंश राय बच्चन भाव सौन्दर्य :- 1. स्वयं को जानना दुनिया को जानने से अधिक कठिन भी है और आवश्यक भी । 2.व्यक्ति के लिए समाज से निरपेक्ष एवं उदासीन रहना न तो संभव है न ही उचित है। दुनिया अपने व्यंग्य बाणों ,शासन –प्रशासन से चाहे कितना कष्ट दे ,पर दुनिया से कट कर व्यक्ति अपनी पहचान नहीं बना सकता .परिवेश ही व्यक्ति को बनाता है, ढालता है । 3. इस कविता में कवि ने समाज एवं परिवेश से प्रेम एवं संघर्ष का संबंध निभाते हुए जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की बात की है । 4. छायावादोत्तर गीति काव्य में प्रीति-कलह का यह विरोधाभास दिखाई देता है. व्यक्ति और समाज का संबंध इसी प्रकार प्रेम और संघर्ष का है जिसमें कवि आलोचना की परवाह न करते हुए संतुलन स्थापित करते हुए चलता है । 5. ‘नादान वहीं है हाय ,जहाँ पर दाना’ पंक्ति के माध्यम से कवि सत्य की खोज के लिए,अहंकार को त्याग कर नई सोच अपनाने पर जोर दे रहा है। काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:-कवि कौन-कौन-सी स्थितियों में मस्त रहता है और क्यों? उत्तर:- कवि सांसारिक सुख-दुख की दोनों परिस्थितियों में मग्न रहता है। उसके पास प्रेम की सांत्वना दायिनी अमूल्य निधि है। प्रश्न२:-कवि भव-सागर से तरने के लिए क्या उपाय अपना रहा है? उत्तर:- संसार के कष्टों को सहते हुए हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि कष्टों को सहना पड़ेगा। इसके लिए मनुष्य को हँस कर कष्ट सहना चाहिए। प्रश्न३:-’अपने मन का गान’ का क्या आशय है? उत्तर:- संसार उन लोगों को आदर देता है जो उसकी बनाई लीक पर चलते हैं परंतु कवि केवल वही कार्य करता है जो उसके मन, बुद्धि और विवेक को अच्छा लगता है। प्रश्न४:- ’नादान वहीं हैं हाय जहाँ पर दाना’ का क्या आशय है? उत्तर:- जहाँ कहीं मनुष्य को विद्वत्ता का अहंकार है वास्तव में वही नादानी का सबसे बड़ा लक्षण है। प्रश्न५:- ’रोदन में राग’ कैसे संभव है? उत्तर:- कवि की रचनाओं में व्यक्त पीड़ा वास्तव में उसके हृदय में मानव मात्र के प्रति व्याप्त प्रेम का ही सूचक है। प्रश्न६:- ”मैं फूट पड़ा तुम कहते छंद बनाना” का अर्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर:- कवि की श्रेष्ठ रचनाएँ वास्तव में उसके मन की पीड़ा की ही अभिव्यक्ति है जिनकी सराहना संसार श्रेष्ठ साहित्य कहकर किया करता है। कविता :- दिन जल्दी - जल्दी ढलता है। हरिवंश राय बच्चन भाव सौन्दर्य :- प्रस्तुत कविता में कवि बच्चन कहते हैं कि समय बीतते जाने का एहसास हमें लक्ष्य-प्राप्ति के लिए प्रयास करने के लिए प्रेरित करता है। मार्ग पर चलने वाला राही यह सोचकर अपनी मंजिल की ओर कदम बढ़ाता है कि कहीं रास्तें में ही रात न हो जाए। पक्षियों को भी दिन बीतने के साथ यह एहसास होता है कि उनके बच्चे कुछ पाने की आशा में घोंसलों से झांक रहे होंगे। यह सोचकर उनके पंखो में गति आ जाती है कि वे जल्दी से अपने बच्चों से मिल सकें। कविता में आशावादी स्वर है।गंतव्य का स्मरण पथिक के कदमों में स्फूर्ति भर देता है।आशा की किरण जीवन की जड़ता को समाप्त कर देती है। वैयक्तिक अनुभूति का कवि होने पर भी बच्चन जी की रचनाएँ किसी सकारात्मक सोच तक ले जाने का प्रयास हैं। कविता :- पतंग आलोक धन्वा ------------------------भाव सौन्दर्य :- पतंग कविता में कवि आलोक धन्वा बच्चों की बाल सुलभ इच्छाओं और उमंगों तथा प्रकृति के साथ उनके रागात्मक संबंधों का अत्यंत सुन्दर चित्रण किया है।भादों मास गुजर जाने के बाद शरद ऋतु का आगमन होता है।चारों ओर प्रकाश फैल जाता है।सवेरे के सूर्य का प्रकाश लाल चमकीला हो जाता है।शरद ऋतु के आगमन से उत्साह एवं उमंग का माहौल बन जाता है। शरद ऋतु का यह चमकीला इशारा बच्चों को पतंग उड़ाने के लिए बुलाता है, और पतंग उड़ाने के लिए मंद मंद वायु चलाकर आकाश को इस योग्य बनाता है कि दुनिया की सबसे हलके रंगीन कागज और बांस की सबसे पतली कमानी से बनी पतंगें आकाश की ऊँचाइयों में उड़ सके‘।बच्चों के पाँवों की कोमलता से आकर्षित हो कर मानो धरती उनके पास आती है अन्यथा उनके पाँव धरती पर पड़ते ही नहीं| ऐसा लगता है मानो वे हवा में उड़ते जा रहे हैं।पतंग उड़ाते समय बच्चे रोमांचित होते हैं |एक संगीतमय ताल पर उनके शरीर हवा में लहराते हैं।वे किसी भी खतरे से बिलकुल बेखबर होते हैं।बाल मनोविज्ञान. बाल क्रिया– कलापों एवं बाल सुलभ इच्छाओं का सुंदर बिंबों के माध्यम से अंकन किया गया है। काव्य सौन्दर्य:-
कविता :- कविता के बहाने कुँवर नारायण भाव सौन्दर्य:- कुँवर नारायणकी रचनाओं में संयम‚ परिष्कार एवं साफ सुथरापन है।यथार्थ का कलात्मक संवेदनापूर्ण चित्रण उनकी रचनाओं की विशेषता है।उनकी रचनाएँ जीवन को समझने की जिज्ञासा है यथार्थ– प्राप्ति की घोषणा नहीं।वैयक्तिक एवं सामाजिक तनाव व्यंजनापूर्ण ढ़ंग से उनकी रचनाओं में स्थान में पाता है।प्रस्तुत कविता में कवित्व शक्ति का वर्णन है। कविता चिड़िया की उड़ान की तरह कल्पना की उड़ान है लेकिन चिड़िया के उड़ने की अपनी सीमा है जबकि कवि अपनी कल्पना के पंख पसारकर देश और काल की सीमाओं से परे उड़ जाता है। फूल कविता लिखने की प्रेरणा तो बनता है लेकिन कविता तो बिना मुरझाए हर युग में अपनी खुशबू बिखेरती रहती है। कविता बच्चों के खेल के समान है और समय और काल की सीमाओं की परवाह किए बिना अपनी कल्पना के पंख पसारकर उड़ने की कला बच्चे भी जानते है।
काव्य सौन्दर्य:-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:-चिड़िया की उड़ान एवं कविता की उड़ान में क्या समानता है? उत्तर :-उपकरणों की समानता :- चिड़िया एक घोंसले का सृजन तिनके एकत्र करके करती है| कवि भी उसी प्रकार अनेक भावों एवं विचारों का संग्रह करके काव्य रचना करता है। क्षमता की समानता :- चिड़िया की उड़ान और कवि की कल्पना की उड़ान दोनों दूर तक जाती हैं| प्रश्न२ :- कविता की उड़ान चिड़िया की समझ से परे क्यों है? उत्तर :- कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान से कहीं अधिक सूक्ष्म और महत्त्वपूर्ण होती है। प्रश्न३ :-“फूल मुरझा जाते हैं पर कविता नहीं” क्यों स्पष्ट कीजिए। उत्तर :- कविता कालजयी होती है उसका मूल्य शाश्वत होता है जबकि फूल बहुत जल्दी कुम्हला जाते हैं। प्रश्न४ :-“बच्चे की उछल-कूद. सब घर एक कर देना’ एवं ‘कवि का कविता लिखना’ दोनों मे क्या समानता एवं विषमता है? उत्तर :-बच्चा खेल-खेल में घर का सारा सामान अस्तव्यस्त कर देता है. सब कुछ टटोलता है एक स्थान पर एकत्र कर लेता है काव्र्य रचना-प्रक्रिया में कवि भी पूरा मानव जीवन खंगाल लेता है. एक जगह पिरोता है पर फिर भी दोनों के प्रयासों में बाल-क्रियाओं का आनंद कवि नहीं समझ सकता। कविता – बात सीधी थी पर कुँवर नारायण भाव सौन्दर्य :- प्रस्तुत कविता में भाव के अनुरूप भाषा के महत्त्व पर बल दिया गया है। कवि कहते हैं कि एक बार वह सरल सीधे कथ्य की अभिव्यक्ति में भी भाषा के चक्कर में ऐसा फँस गया कि उसे कथ्य ही बदला-बदला सा लगने लगा। कवि कहता है कि जिस प्रकार जोर जबरदस्ती करने से कील की चूड़ी मर जाती है और तब चूड़ीदार कील को चूड़ीविहीन कील की तरह ठोंकना पड़ता है उसी प्रकार कथ्य के अनुकूल भाषा के अभाव में प्रभावहीन भाषा में भाव को अभिव्यक्ति किया जाता है। अंत में भाव ने एक शरारती बच्चे के समान कवि से पूछा कि तूने क्या अभी तक भाषा का स्वाभाविक प्रयोग नहीं सीखा।
काव्य सौन्दर्य:-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न १ :-भाषा के चक्कर में बात कैसे फंस जाती है? उत्तर :-आडंबरपूर्ण भाषा का प्रयोग करने से बात का अर्थ समझना कठिन हो जाता है। प्रश्न२ :-भाषा को अर्थ की परिणति तक पहुँचाने के लिए कवि क्या क्या प्रयास करते हैं? उत्तर :- भाषा को अर्थ की परिणति तक पहुँचाने के लिए कवि उसे नाना प्रकार के अलंकरणों से सजाता है कई प्रकार के भाषा और अलंकार संबंधी प्रयोग करता है। प्रश्न३:- भाषा मे पेंच कसना क्या है? उत्तर :-भाषा को चामत्कारिक बनाने के लिए विभिन्न प्रयोग करना भाषा मे पेंच कसना है परंतु इससे भाषा का पेंच ज्यादा कस जाता है अर्थात कथ्य एवं शब्दों में कोई तालमेल नहीं बैठता, बात समझ में ही नहीं आती। प्रश्न४:- कवि किस चमत्कार के बल पर वाहवाही की उम्मीद करता है? उत्तर :-कवि शब्दों के चामत्कारिक प्रयोग के बल पर वाहवाही की उम्मीद करता है। प्रश्न५:-बात एवं शरारती बच्चे का बिंब स्पष्ट कीजिए। उत्तर :-जिस प्रकार एक शरारती बच्चा किसी की पकड़ में नहीं आता उसी प्रकार एक उलझा दी गई बात तमाम कोशिशों के बावजूद समझने के योग्य नहीं रह जाती चाहे उसके लिए कितने प्रयास किए जाएं,वह एक शरारती बच्चे की तरह हाथों से फिसल जाती है। कविता :- कैमरे में बंद अपाहिज रघुवीर सहाय भाव सौन्दर्य :- ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता समाज में बाजारीकरण के बढ़ते दुष्प्रभाव की अपने निराले अंदाज में व्याख्या करती है। बाजार का नारा है ‘जो दिखेगा वो बिकेगा’,चाहे वो उत्पाद हो या भावनाएं । इस कविता मे टी० आर० पी० की दौड़ में शामिल समाचार चैनलों की संवेदनहीनता है, बाजार का दबाव है ,तो दूसरी तरफ हर तरफ से निराश एक वर्ग विशेष (सर्वहारा )है। इसमें अपाहिजों के सामने उनके प्राकृतिक दुख को मानसिक अवसाद में बदलने के लिए बेतुके सवालों को पूछा जाता है। यह कविता वर्तमान तथाकथित सभ्य- समाज के सामने संवेदन हीनता के प्रश्न खड़े करती है ,उत्तर पाठकों के लिए अधूरा छोंड देती है। काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:- दूरदर्शन पर एक अपाहिज का साक्षात्कार किस उद्देश्य से दिखाया जाता है? उत्तर :-दूरदर्शन पर एक अपाहिज का साक्षात्कार‚ व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए दिखाया जाता है। प्रश्न२:- अंधे को अंधा कहना किस मानसिकता का परिचायक है? उत्तर :-अंधे को अंधा कहना‚ क्रूर और संवेदनाशून्य मानसिकता का परिचायक है। प्रश्न३ :-कविता में यह मनोवृति किस प्रकार उद्घाटित हुई है? उत्तर :- दूरदर्शन पर एक अपाहिज व्यक्ति को प्रदर्शन की वस्तु मान कर उसके मन की पीड़ा को कुरेदा जाता है‚ साक्षात्कारकत्र्ता को उसके निजी सुखदुख से कुछ लेनादेना नहीं होता है। प्रश्न४ :-‘हम समर्थ शक्तिवान एवं हम एक दुर्बल को लाएंगे’ में निहितार्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर :-साक्षात्कारकर्तास्वयं को पूर्ण मान कर‚ एक अपाहिज व्यक्ति को दुर्बल समझने का अहंकार पाले हुए है। प्रश्न५:- अपाहिज की शब्दहीन पीड़ा को मीडियाकर्मी किस प्रकार अभिव्यक्त कराना चाहता है? उत्तर :-मीडियाकर्मी अपाहिज की लाल सूजी हुई ऑंखों को‚ पीड़ा की सांकेतिक अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करना चाहता है। प्रश्न६:-क्यामीडियाकर्मी सफल होता है‚ यदि नहीं तो क्यों? उत्तर :-मीडियाकर्मी सफल नहीं होता क्यों कि प्रसारण समय समाप्त हो जाता है और प्रसारण समय के बाद यदि अपाहिज व्यक्ति रो भी देता तो उससे मीडियाकर्मी का व्यावसायिक उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता था उसलिए अब उसे अपाहिज व्यक्ति के आंसुओं में कोई दिलचस्पी नहीं थी। प्रश्न७:- नाटकीय कविता की अंतिम परिणति किस रूप में होती है? उत्तर :-बार बार प्रयास करने पर भी मीडियाकर्मी‚ अपाहिज व्यक्ति को रोता हुआ नहीं दिखा पाता।वह खीझ जाता है और खिसियानी मुस्कुराहट के साथ कार्यक्रम समाप्त कर देता है |’सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम’शब्दों में व्यंग्य है क्योंकि मीडिया के छद्म व्यावसायिक उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती | प्रश्न८ :-‘परदे पर वक्त की कीमत है’ में निहित संकेतार्थ को स्पष्ट कीजिए। उत्तर :-प्रसारण समय में रोचक सामग्री परोस पाना ही मीडिया कर्मियों का एकमात्र उद्देश्य होता है।अन्यथा उनके सामाजिक सरोकार मात्र एक दिखावा हैं। कविता :- सहर्ष स्वीकारा है गजानन माधव मुक्तिबोध भाव सौन्दर्य :-
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!”
एक परदा यह झीना नील छिपाए है जिसमें सुख गात।“ यह कविता ‘नई कविता’ में व्यक्त रागात्मकता को आध्यात्मिकता के स्तर पर प्रस्तुत करती है। काव्य सौन्दर्य :- कवि के निजी अनुभवों पर आधारित कविता
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:-कवि ने किसे सहर्ष स्वीकारा है? उत्तर:-
उत्तर:-कवि को अपनी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गम्भीर अनुभव विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन की भावनाओं की नदी, यह सब नए रूप में मौलिक लगते हैं क्यों कि उसके जीवन में जो कुछ भी घटता है वह जाग्रत है, विश्व उपयोगी है अत: उसकी उपलब्धि है और वह उसकी प्रिया की प्रेरणा से ही संभव हुआ है। उसके जीवन का प्रत्येक अभाव ऊर्जा बनकर जीवन में नई दिशा ही देता रहा है | प्रश्न३:- “दिल का झरना” का सांकेतिक अर्थ स्पष्ट कीजिए। उत्तर:-जिस प्रकार झरने में चारों ओर की पहाड़ियों से पानी इकट्टठा हो जाता है उसे एक कभी खत्म न होने वाले स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है उसी प्रकार कवि के दिल में स्थित प्रेम उमड़ता है, कभी समाप्त नहीं होता। जीवन का सिंचन करता है| व्यक्तिगत स्वार्थ से दूर पूरे समाज के लिए जीवनदायी हो जाता है | प्रश्न४:- ‘जितना भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है “ का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए। उत्तर:-हृदय में स्थित प्रेम की विशेषता यह है कि जितना अधिक व्यक्त किया जाए उतना ही बढ़ता जाता है। प्रश्न५:- वह रमणीय उजाला क्या है जिसे कवि सहन नहीं कर पाता ? उत्तर:-कवि ने प्रियतमा की आभा से,प्रेम के सुखद भावों से सदैव घिरे रहने की स्थिति को उजाले के रूप में चित्रित किया है।इन स्मृतियों से घिरे रहना आनंददायी होते हुए भी कवि के लिए असहनीय हो गया है क्योंकि इस आनंद से वंचित हो जाने का भय भी उसे सदैव सताता रहता है। कविता :- उषा शमशेर बहादुर सिंह भाव सौन्दर्य :- उषा कविता में सूर्योदय के समय आकाश मंडल में रंगों के जादू का सुन्दर वर्णन किया गया है। सूर्योदय के पूर्व प्रातःकालीन आकाश नीले शंख की तरह बहुत नीला होता है । भोरकालीन नभ की तुलना काली सिल से की गयी है जिसे अभी-अभी केसर पीसकर धो दिया गया है। कभी कवि को वह राख से लीपे चौके के समान लगता है, जो अभी गीला पड़ा है। नीले गगन में सूर्य की पहली किरण ऐसी दिखाई देती है मानो कोई सुंदरी नीले जल में नहा रही हो और उसका गोरा शरीर जल की लहरों के साथ झिलमिला रहा हों। प्रात:कालीन, परिवर्तनशील सौंदर्य का दृश्य बिंब ,प्राकृतिक परिवर्तनों को मानवीय क्रियाकलापों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। यथार्थ जीवन से चुने गए उपमानों जैसे:- राख से लीपा चौका ,काली सिल,नीला शंख, स्लेट,लाल खड़िया चाक आदि का प्रयोग । प्रसाद की कृति –बीती विभावरी जाग री से तुलना की जा सकती है । काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:- कविता के किन उपमानों को देख कर कहा जा सकता है कि उषा गाँव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र है ? उत्तर :-कविता में नीले नभ को राख से लिपे गीले चौके के समान बताया गया है | दूसरे बिंब में उसकी तुलना काली सिल से की गई है| तीसरे में स्लेट पर लाल खड़िया चाक का उपमान है|लीपा हुआ आँगन ,काली सिल या स्लेट गाँव के परिवेश से ही लिए गए हैं |प्रात: कालीन सौंदर्य क्रमश: विकसित होता है |सर्वप्रथम राख से लीपा चौका जो गीली राख के कारण गहरे स्लेटी रंग का अहसास देता है और पौ फटने के समय आकाश के गहरे स्लेटी रंग से मेल खाता है |उसके पश्चात तनिक लालिमा के मिश्रण से काली सिल का जरा से लाल केसर से धुलना सटीक उपमान है तथा सूर्य की लालिमा के रात की काली स्याही में घुल जाने का सुंदर बिंब प्रस्तुत करता है | धीरे –धीरे लालिमा भी समाप्त हो जाती है और सुबह का नीला आकाश नील जल का आभास देता है व सूर्य की स्वर्णिम आभा गौरवर्णी देह के नील जल में नहा कर निकलने की उपमा को सार्थक सिद्ध करती है | प्रश्न२ :- भोर का नभ राख से लीपा चौका (अभी गीला पड़ा है ) नयी कविता में कोष्ठक ,विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है |उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है ? समझाइए | उत्तर :- नई कविता प्रयोग धर्मी है |इसमें भाषा- शिल्प के स्तर पर हर नए प्रयोग से अर्थ की अभिव्यक्ति की जाती है|प्राय: कोष्ठक अतिरिक्त ज्ञान की सूचना देता है|यहाँ अभी गीला पड़ा है के माध्यम से कवि गीलेपन की ताजगी को स्पष्ट कर रहा है |ताजा गीलापन स्लेटी रंग को अधिक गहरा बना देता है जबकि सूखने के बाद राख हल्के स्लेटी रंग की हो जाती है| कविता :- बादल राग सूर्यकांत त्रिपाठी निराला भाव सौन्दर्य :- निराला की यह कविता अनामिका में छह खंडों में प्रकाशित है।यहां उसका छठा खंड लिया गया है|आम आदमी के दुःख से त्रस्त कवि परिवर्तन के लिए क्रांति रुपी बादल का आह्वान करता है |इस कविता में बादल क्रांति या विप्लव का प्रतीक है। कवि विप्लव के बादल को संबोधित करते हुए कहता है कि जन-मन की आकांक्षाओं से भरी तेरी नाव समीर रूपी सागर पर तैर रही है। अस्थिर सुख पर दुःख की छाया तैरती दिखाई देती है। संसार के लोगों के हृदय दग्ध (दुःखी)हैं। उन पर निर्दयी विप्लव अर्थात् क्रांति की माया फैली हुई है। बादलों के गर्जन से पृथ्वी के गर्भ में सोए अंकुर बाहर निकल आते हैं अर्थात शोषित वर्ग सावधान हो जाता है और आशा भरी दृष्टि से क्रांति की ओर देखने लगता है। उनकी आशा क्रांति पर ही टिकी है। बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े पर्वत वृक्ष घबरा जाते हैं।उनको उखड़कर गिर जाने का भय होता है |क्राति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे दिल थाम कर रह जाते हैं। क्रांति को तो छोटे-छोटे लोग बुलाते हैं। जिस प्रकार छोटे-छोटे पौधे हाथ हिलाकर बादलों के आगमन का स्वागत करते हैं वैसे ही शोषित वर्ग क्रांति के आगमन का स्वागत करता है। छायावादी कवि निराला साम्यवादी प्रभाव से भी जुड़े हैं।मुक्त छंद हिन्दी को उन्हीं की देन है।शोषित वर्ग की समस्याओं को समाप्त करने के लिए क्रांति रूपी बादल का आह्वान किया गया है। काव्य सौन्दर्य:-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:- पूंजीपतियों की अट्टालिकाओं को आतंक भवन क्यों कहा गया है ? उत्तर :-बादलों की गर्जना और मूसलाधार वर्षा में बड़े-बड़े पर्वत वृक्ष घबरा जाते हैं।उनको उखड़कर गिर जाने का भय होता है |उसी प्रकार क्राति की हुंकार से पूँजीपति घबरा उठते हैं, वे दिल थाम कर रह जाते हैं।उन्हें अपनी संपत्ति एवं सत्ता के छिन जाने का भय होता है | उनकी अट्टालिकाएँ मजबूती का भ्रम उत्पन्न करती हैं पर वास्तव में वे अपने भवनों में आतंकित होकर रहते हैं| प्रश्न२:- कवि ने किसान का जो शब्द-चित्र दिया है उसे अपने शब्दों में लिखिए | उत्तर :- किसान के जीवन का रस शोषकों ने चूस लिया है ,आशा और उत्साह की संजीवनी समाप्त हो चुकी है |शरीर से भी वह दुर्बल एवं खोखला हो चुका है | क्रांति का बिगुल उसके हृदय में आशा का संचार करता है |वह खिलखिला कर बादल रूपी क्रांति का स्वागत करता है | प्रश्न३:- अशनि पात क्या है ? उत्तर:- बादल की गर्जना के साथ बिजली गिरने से बड़े –बड़े वृक्ष जल कर राख हो जाते हैं | उसी प्रकार क्रांति की आंधी आने से शोषक, धनी वर्ग की सत्ता समाप्त हो जाती है और वे खत्म हो जाते हैं | प्रश्न४:- पृथ्वी में सोये अंकुर किस आशा से ताक रहे हैं ? उत्तर :- बादल के बरसने से बीज अंकुरित हो लहलहाने लगते हैं | अत: बादल की गर्जन उनमें आशाएँ उत्पन्न करती है |वे सिर ऊँचा कर बादल के आने की राह निहारते हैं |ठीक उसी प्रकार निर्धन व्यक्ति शोषक के अत्याचार से मुक्ति पाने और अपने जीवन की खुशहाली की आशा में क्रांति रूपी बादल की प्रतीक्षा करते हैं | प्रश्न५:- रुद्ध कोष है, क्षुब्द्ध तोष –किसके लिए कहा गया है और क्यों ? उत्तर :- क्रांति होने पर पूंजीपति वर्ग का धन छिन जाता है,कोष रिक्त हो जाता है | उसके धन की आमद समाप्त हो जाती है | उसका संतोष भी अब ‘बीते दिनों की बात’ हो जाता है | प्रश्न६:- अस्थिर सुख पर दुःख की छाया का भाव स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- मानव-जीवन में सुख सदा बना नहीं रहता है ,उस पर दुःख की छाया सदा मंडराती रहती है| प्रश्न७:- बादल किस का प्रतीक है ?उत्तर :- बादल इस कविता में क्रांति का प्रतीक है |जिस प्रकार बादल प्रकृति ,किसान और आम आदमी के जीवन में आनंद का उपहार ले कर आता है उसी प्रकार क्रांति निर्धन शोषित वर्ग के जीवन में समानता का अधिकार व संपन्नता ले कर आता है प्रश्न८:- बादल को जीवन का पारावार क्यों कहा गया है ? उत्तर :- क्रांति रूपी बादल का आगमन जीवनदायी, सुखद होता है -पारावार अर्थात सागर| वह जीवन में खुशियों का खजाना लेकर आता है |निर्धन वर्ग को समानता का अधिकार देता है |सुख समृद्धि का कारक बनकर अत्याचार की अग्नि से मुक्त करता है | कविता :- कवितावली तुलसीदास भाव सौन्दर्य :- श्रीरामजी को समर्पित ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस उत्तर भारत मे बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप- रावण पुत्र मेघनाद द्वारा शक्ति बाण से मूर्छित हुए लक्ष्मण को देखकर राम व्याकुल हो जाते हैं।सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी लाने के लिए हनुमान को हिमालय पर्वत पर भेजा।आधी रात व्यतीत होने पर जब हनुमान नहीं आए,तब राम ने अपने छोटेभाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया और साधारण मनुष्य की भाँति विलाप करने लगे।राम बोले ......हे भाई !तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते थे।तुम्हारा स्वभाव सदा से ही कोमल था।तुमने मेरे लिए माता पिता को भी छोड़ दिया और मेरे साथ वन में सर्दी,गर्मी और विभिन्न प्रकार की विपरीत परिस्थितियों को भी सहा|जैसे पंख बिना पक्षी,मणि बिना सर्प और सूँड बिना श्रेष्ठ हाथी अत्यंत दीन हो जाते हैं,हे भाई!यदि मैं जीवित रहता हूँ तो मेरी दशा भी वैसी ही हो जाएगी। मैं अपनी पत्नी के लिए अपने प्रिय भाई को खोकर कौन सा मुँह लेकर अयोध्या जाऊँगा।इस बदनामी को भले ही सह लेता कि राम कायर है और अपनी पत्नी को खो बैठा। स्त्री की हानि विशेष क्षति नहीं है,परन्तु भाई को खोना अपूरणीय क्षति है। ‘रामचरितमानस’ के ‘लंका कांड’ से गृही लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने का प्रसंग कवि की मार्मिक स्थलों की पहचान का एक श्रेष्ठ नमूना है। भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है, जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत हो जाते हैं।यह प्रसंग ईश्वर राम में मानव सुलभ गुणों का समन्वय कर देता है | हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाना करुण रस में वीर रस का उदय हो जाने के समान है| विनय पत्रिका एक अन्य महत्त्वपूर्ण तुलसीदासकृत काव्य है। काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न १:-‘तव प्रताप उर राखि प्रभु में किसके प्रताप का उल्लेख किया गया है?’और क्यों ? उत्तर :-इन पँक्तियों में भरत के प्रताप का उल्लेख किया गया है। हनुमानजी उनके प्रताप का स्मरण करते हुए अयोध्या के ऊपर से उड़ते हुए संजीवनी ले कर लंका की ओर चले जा रहे हैं। प्रश्न२:- राम विलाप में लक्ष्मण की कौन सी विशेषताएँ उद्घटित हुई हैं ? उत्तर :-लक्ष्मण का भ्रातृ प्रेम. त्यागमय जीवन इन पँक्तियों के माध्यम से उदघाटित हुआ है। प्रश्न३:- बोले वचन मनुज अनुसारी से कवि का क्या तात्पर्य है? उत्तर :-भगवान राम एक साधारण मनुष्य की तरह विलाप कर रहे हैं किसी अवतारी मनुष्य की तरह नहीं। भ्रातृ प्रेम का चित्रण किया गया है।तुलसीदास की मानवीय भावों पर सशक्त पकड़ है।दैवीय व्यक्तित्व का लीला रूप ईश्वर राम को मानवीय भावों से समन्वित कर देता है। प्रश्न४:- भाई के प्रति राम के प्रेम की प्रगाढ़ता उनके किन विचारों से व्यक्त हुई है? उत्तर :- जथा पंख बिन खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना। अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जो जड़ दैव जिआवै मोही। प्रश्न५:- ‘बहुविधि सोचत सोचविमोचन’ का विरोधाभास स्पष्ट कीजिए। उत्तर :-दीनजन को शोक से मुक्त करने वाले भगवान राम स्वयं बहुत प्रकार से सोच में पड़कर दुखी हो रहे हैं। प्रश्न६:- हनुमान का आगमन करुणा में वीर रस का आना किस प्रकार कहा जा सकता है? उत्तर :-रुदन करते वानर समाज में हनुमान उत्साह का संचार करने वाले वीर रस के रूप में आ गए। करुणा की नदी हनुमान द्वारा संजीवनी ले आने पर मंगलमयी हो उठती है। कविता :- कवित्त और सवैया तुलसीदास भाव सौन्दर्य :- इस शीर्षक के अंतर्गत दो कवित्त और एक सवैया संकलित हैं। ‘कवितावली’ से अवतरित इन कवित्तों में कवि तुलसी का विविध विषमताओं से ग्रस्त कलिकालतुलसी का युगीन यथार्थ है, जिसमें वे कृपालु प्रभु राम व रामराज्य का स्वप्न रचते हैं। युग और उसमें अपने जीवन का न सिर्फ उन्हें गहरा बोध है, बल्कि उसकी अभिव्यक्ति में भी वे अपने समकालीन कवियों से आगे हैं। यहाँ पाठ में प्रस्तुत ‘कवितावली’ के छंद इसके प्रमाण-स्वरूप हैं। पहले छंद ”किसवी किसान ....“ में उन्होंने दिखलाया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’का गहन यथार्थ है; जिसका समाधान वे राम की भक्ति में देखते हैं। दरिद्रजन की व्यथा दूर करने के लिए राम रूपी घनश्याम का आह्वान किया गया है। पेट की आग बुझाने के लिए राम रूपी वर्षा का जल अनिवार्य है।इसके लिए अनैतिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है।‘ इस प्रकार, उनकी राम भक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है; न कि केवल आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली| गरीबी की पीड़ा रावण के समान दुखदायी हो गई है। तीसरे छंद (”धूत कहौ...“) में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्तहृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जात-पाँत और दुराग्रहों के तिरस्कार का साहस पैदा होता है। इस प्रकार भक्ति की रचनात्मक भूमिका का संकेत यहाँ है, जो आज के भेदभाव मूलक युग में अधिक प्रासंगिक है | काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:- पेट की भूख शांत करने के लिए लोग क्या क्या करते हैं? उत्तर :-पेट की आग बुझाने के लिए लोग अनैतिक कार्य करते हैं। प्रश्न२:- तुलसीदास की दृष्टि में सांसारिक दुखों से निवृत्ति का सर्वोत्तम उपाय क्या है? उत्तर :- पेट की आग बुझाने के लिए राम कृपा रूपी वर्षा का जल अनिवार्य है।इसके लिए अनैतिक कार्य करने की आवश्यकता नहीं है। प्रश्न३:- तुलसी के युग की समस्याओं का चित्रण कीजिए। उत्तर :- तुलसी के युग में प्राकृतिक और प्रशासनिक वैषम्य के चलते उत्पन्न पीडा. दरिद्रजन के लिए रावण के समान दुखदायी हो गई है। प्रश्न४:- तुलसीदास की भक्ति का कौन सा स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अभिव्यक्त हुआ है? उत्तर :- तुलसीदास की भक्ति का दास्य भाव स्वरूप प्रस्तुत कवित्तों में अभिव्यक्त हुआ है। कविता :- रूबाइयाँ फ़िराक गोरखपुरी मूल नाम– रघुपति सहाय फ़िराक भाव सौन्दर्य :- रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है । काव्य सौन्दर्य :
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न १ :-काव्य में प्रयुक्त बिंबों का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए? उत्तर :-
उत्तर :- इन पंक्तियों में बालक की हठ करने की विशेषता अभिव्यक्त हुई है। बच्चे जब जिद पर आ जाते हैं तो अपनी इच्छा पूरी करवाने के लिए नाना प्रकार की हरकतें किया करते हैं| ज़िदयाया शब्द लोक भाषा का विलक्षण प्रयोग है इसमें बच्चे का ठुनकना , तुनकना ,पाँव पटकना, रोना आदि सभी क्रियाएँ शामिल हैं | प्रश्न ३ लच्छे किसे कहा गया है इनका संबंध किस त्यौहार से है? उत्तर :- राखी के चमकीले तारों को लच्छे कहा गया है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से होता है|सावन में बिजली की चमक की तरह राखी के चमकीले धागों की सुंदरता देखते ही बनती है| कविता :- गज़ल भाव सौन्दर्य :- पाठ में फिराक की एक गज़ल भी शामिल है। रूबाइयों की तरह ही फिराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इसका अद्भुत नमूना है यह गज़ल। यह गज़ल कुछ इस तरह बोलती है कि जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्य-शिल्प की वह ऊँचाई जो गज़ल की विशेषता मानी जाती है। काव्य सौन्दर्य :-
कविता पर आधारित प्रश्नोत्तर प्रश्न१:- तारे आँखें झपकावें हैं –का तात्पर्य स्पष्ट कीजिए | उत्तर:- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं। वियोग की स्थिति में प्रकृति भी संवाद करती प्रतीत होती है | प्रश्न२:- ‘हम हों या किस्मत हो हमारी’ में किस भाव की अभिव्यक्ति हुई है ? उत्तर:- जीवन की विडंबना, किस्मत को रोना-मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है।कवि जीवन से संतुष्ट नहीं है | भाग्य से शिकायत का भाव इन पंक्तियों में झलकता है | प्रश्न३:- प्रेम के किस नियम की अभिव्यक्ति कवि ने की है ? उत्तर :-ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है|कवि के शब्दों में ,” फ़ितरत का कायम है तवाज़ुन आलमे- हुस्नो –इश्क में भी उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं |” १ भाव –साम्य:- कबीर -‘सीस उतारे भुई धरे तब मिलिहै करतार।‘-अर्थात -स्वयं को खो कर ही प्रेम प्राप्ति की जा सकती है। २ भाव साम्य- कबीर –जिन ढूँढा तिन पाइयाँ ,गहरे पानी पैठि| मैं बपुरा बूडन डरा ,रहा किनारे बैठि| प्रश्न४:- शराब की महफिल में शराबी को देर रात क्या बात याद आती है? उत्तर :- शराब की महफिल में शराबी को देर रात याद आती है कि आसमान में मनुष्य के पापों का लेखा-जोखा होता है। जैसे आधी रात के समय फरिश्ते लोगों के पापों के अध्याय खोलते हैं वैसे ही रात के समय शराब पीते हुए शायर को महबूबा की याद हो आती है मानो महबूबा फरिश्तों की तरह पाप स्थल के आस पास ही है। प्रश्न५:- सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :-सदके फ़िराक–––इन पंक्तियों में फ़िराक कहते हैं कि उनकी शायरी में मीर की शायरी की उत्कृष्टता ध्वनित हो रही है। प्रश्न६:- पंखुड़ियों की नाज़ुक गिरह खोलना क्या है? उत्तर :-पँखुड़ियों की नाजुक गिरह खोलना उनका धीरे -धीरे विकसित होना है। वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य की ओर संकेत है | प्रश्न७:-‘यों उड़ जाने को रंगो बू गुलशन में पर तौले है’ भाव स्पष्ट कीजिए। उत्तर :-कलियों की सुवास उड़ने के लिए मानो पर तौल रही हो।अर्थात खुशबू का झोंका रह–रह कर उठता है। प्रश्न८:- कवि द्वारा वर्णित रात्रि के दृश्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। उत्तर :- रात्रि का सन्नाटा भी कुछ कह रहा है।इसलिए तारे पलकें झपका रहे हैं।लगता है कि प्रकृति का कण-कण कुछ कह रहा है | प्रश्न९:- कवि अपने वैयक्तिक अनुभव किन पँक्तियों में व्यक्त कर रहा हैै? जीवन की विडंबना,-‘किस्मत को रोना‘ मुहावरे के प्रयोग से, सटीक अभिव्यक्ति प्राप्त करती है। “हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला किस्मत हम को रो लेवे हैं हम किस्मत को रो ले हैं|” प्रश्न१०:- शायर ने दुनिया के किस दस्तूर का वर्णन किया है? उत्तर :-शायर ने दुनिया के इस दस्तूर का वर्णन किया है कि लोग दूसरों को बदनाम करते हैं परंतु वे नहीं जानते कि इस तरह वे अपनी दुष्ट प्रकृति को ही उद्घाटित करते हैं। प्रश्न११:- प्रेम की फ़ितरत कवि ने किन शब्दों में अभिव्यक्त की है? स्वयं को खो कर ही प्रेम की प्राप्ति की जा सकती है। ईश्वर की प्राप्ति सर्वस्व लुटा देने पर होती है। प्रेम के संसार का भी यही नियम है। प्रश्न१२:- फ़िराक गोरखपुरी किस भाषा के कवि हैं?---- उत्तर :- उर्दू भाषा । प्रतिदर्श प्रश्नोत्तर काव्य-खंड पर आधारित दो प्रकार के प्रश्न पूछे जाएँगे – अर्थग्रहण-संबंधी एवं सौंदर्य-बोध-संबंधी अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्न 1‐“मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ, फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ, कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर, मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ.“ प्रश्न १:-कवि अपने हृदय में क्या - क्या लिए फिरता है? उत्तर:- कवि अपने सांसारिक अनुभवों के सुख - दुख हृदय में लिए फिरता है। प्रश्न २:- कवि का जग से कैसा रिश्ता है ? उत्तर:- कवि का जगजीवन से खट्टामीठा रिश्ता है। प्रश्न३:- परिवेश का व्यक्ति से क्या संबंध है? मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ.“के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है ? उत्तर:- संसार में रह कर संसार से निरपेक्षता संभव नहींहै क्योंकि परिवेश में रहकर ही व्यक्ति की पहचान बनती है।उसकी अस्मिता सुरक्षित रहती है। प्रश्न४:- विरोधों के बीच कवि का जीवन किस प्रकार व्यतीत होता है? उत्तर:-दुनिया के साथ संघर्षपूर्ण संबंध के चलते कवि का जीवन-विरोधों के बीच सामंजस्य करते हुए व्यतीत होता है। सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्न “ मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ, मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ, जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते, मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।” प्रश्न १:- कविता की इन पंक्तियों से अलंकार छाँट कर लिखिए| उत्तर :-स्नेह- सुरा– रूपक अलंकार प्रश्न २:- कविता में प्रयुक्त मुहावरे लिखिए :- उत्तर :-‘जग पूछ रहा’‚ ‘जग की गाते’‚ ‘मन का गान’ आदि मुहावरों का प्रयोग प्रश्न३:- कविता में प्रयुक्त शैली का नाम लिखें | उत्तर :- गीति-शैली/आत्म-कथात्मक शैली अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्न “बच्चे प्रत्याशा में होंगे नीड़ों से झांक रहे होंगे। यह ध्यान परों में चिड़िया के भरता कितनी चंचलता है।” प्रश्न १ :-पथ और रात से क्या तात्पर्य है? उत्तर :-जीवन रूपी पथ में मृत्यु रूपी रात से सचेत रहने के लिए कहा गया है। प्रश्न२ :-पथिक के पैरों की गति किस प्रकार बढ़ जाती है? उत्तर :-मंजिल के पास होने का अहसास‚ व्यक्ति के मन में स्फूर्ति भर देता है। प्रश्न३ :-चिड़िया की चंचलता का क्या कारण है? उत्तर :-चिड़िया के बच्चे उसकी प्रतीक्षा करते होंगे यह विचार चिड़िया के पंखों में गति भर कर उसे चंचल बना देता है। प्रश्न४ :-प्रयासों में तेजी लाने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? उत्तर :- प्रयासों में तेजी लाने के लिए मनुष्य को जीवन में एक निश्चित मधुर लक्ष्य स्थापित करना चाहिए। सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्न ‘जन्म से ही लाते हैं अपने साथ कपास’- ‘दिशाओं को मृदंग की बजाते हुए’ ‘और भी निडर हो कर सुनहले सूरज के सामने आते हैं’। ‘छतों को और भी नरम बनाते हुए’। ‘जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर।‘ प्रश्न १:- ‘जन्म से ही लाते हैं अपने साथ कपास’- इस पंक्ति की भाषा संबंधी विशेषता लिखिए | उत्तर :- इस पंक्ति की भाषा संबंधी विशेषता निम्नलिखित हैं :- नए प्रतीकों का प्रयोग :-कपास-कोमलता प्रश्न२:- इस पंक्ति में प्रयुक्त लाक्षणिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए| उत्तर :- लाक्षणिकता -‘दिशाओं को मृदंग की बजाते हुए’-संगीतमय वातावरण की सृष्टि प्रश्न३ :- सुनहला सूरज प्रतीक का अर्थ लिखें | उत्तर :- सुनहले सूरज के सामने: – निडर ,उत्साह से भरे होना सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्न “कविता की उड़ान है चिड़िया के बहाने कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने बाहर भीतर इस घर ,उस घर कविता के पंख लगा उड़ने के माने चिड़िया क्या जाने?” प्रश्न १:- इन पंक्तियों की भाषा संबंधी विशेषताएं लिखिए | उत्तर :- इन पंक्तियों की भाषा संबंधी विशेषताएं निम्नलिखित हैं :- १ नए प्रतीक :-चिड़िया‚ । २ मुहावरों का सटीक प्रयोग :–सब घर एक कर देना‚ कवि की कल्पना की उर्वर शक्ति जिसका प्रयोग करने में कवि जमीन-आसमान एक कर देता है | प्रश्न २ कविता की उड़ान –का लाक्षणिक अर्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :-काव्य की सूक्ष्म अर्थ निरूपण शक्ति ,कवि की कल्पना का विस्तार प्रश्न :- कविता के पंख किसका प्रतीक हैं ? उत्तर :-कवि की कल्पना शक्ति का | सौंदर्य-बोध संबंधी प्रश्न “ आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था ज़ोर ज़बरदस्ती से बात की चूड़ी मर गई और वह भाषा में बेकार घूमने लगी ! हार कर मैंने उसे कील की तरह ठोंक दिया ! ऊपर से ठीकठाक पर अंदर से न तो उसमें कसाव था न ताकत ! बात ने ,जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी, मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा – क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ? प्रश्न१:- इनपंक्तियों की भाषा संबंधी विशेषताएं लिखिए | उत्तर :- इनपंक्तियों की भाषा संबंधी विशेषताएं निम्नलिखितहैं :- १ बिंब /मुहावरों का प्रयोग २ नए उपमान प्रश्न २ काव्यांश में आए मुहावरों का अर्थ स्पष्ट कीजिए| उत्तर :-
पेंच को कील की तरह ठोंक देना –बात का प्रभावहीनहो जाना प्रश्न ३ :- काव्यांश में आएउपमानों को स्पष्ट कीजिए| उत्तर:-
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिवान हम एक दुर्बल को लाएँगे एक बंद कमरे में उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? तो आप क्यों अपाहिज हैं ? प्रश्न १:- ‘हम दूरदर्शन पर बोलेंगे हम समर्थ शक्तिवान’-का निहित अर्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- इन पंक्तियों में अहं की ध्वनित अभिव्यक्ति है ‚ पत्रकारिता का बढ़ता वर्चस्व दर्शाया गया है । प्रश्न२:- हम एक दुर्बल को लाएँगे– पंक्ति का व्यंग्यार्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- पत्रकारिता के क्षेत्र में करुणा का खोखला प्रदर्शन एक परिपाटी बन गई है| प्रश्न३:- आप क्या अपाहिज हैं? तो आप क्यों अपाहिज हैं ?पंक्ति द्वारा कवि किस विशिष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति करने में सफल हुआ है? उत्तर :- पत्रकारिता में व्यावसायिकता के चलते संवेदनहीनता बढ़ती जा रही है | यहाँ अपेक्षित उत्तर प्राप्त करने का अधैर्य व्यक्त हुआ है । सौंदर्य-बोध-ग्रहण संबंधी अन्य प्रश्न प्रश्न १:- इन पंक्तियों का लाक्षणिक अर्थ स्पष्ट कीजिए | “फिर हम परदे पर दिखलाएँगे फूली हुई ऑंख की एक बड़ी तस्वीर बहुत बड़ी तस्वीर और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी” उत्तर:- - लाक्षणिक अर्थ :- दृश्य माध्यम का प्रयोग, कलात्मक, काव्यात्मक, सांकेतिक प्रस्तुति का मात्र दिखावा। “कैमरा बस करो नहीं हुआ रहने दो” लाक्षणिक अर्थ :- व्यावसायिक उद्देश्य पूरा न होने की खीझ “परदे पर वक्त की कीमत है।“– लाक्षणिक अर्थ :-- सूत्र वाक्य ‚क्रूर व्यावसायिक उद्देश्य का उद्घाटन प्रश्न२ :- रघुवीर सहाय की काव्य कला की विशेषताएँ लिखिए | उत्तर :- रघुवीर सहाय की काव्य कला की विशेषताएँनिम्नलिखित हैं -
“ज़िंदगी में जो कुछ भी है सहर्ष स्वीकारा है ; इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है| गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सबयह वैभव विचार सब दृढ़ता यह,भीतर की सरिता यह अभिनव सब मौलिक है, मौलिक है इसलिए कि पल-पल में जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है- संवेदन तुम्हारा है!” प्रश्न १:- कवि और कविता का नाम लिखिए| उत्तर:-कवि- गजानन माधव मुक्तिबोध कविता–सहर्ष स्वीकारा है प्रश्न२:- गरबीली गरीबी,भीतर की सरिता आदि प्रयोगों का अर्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :-गरबीली गरीबी– निर्धनता का स्वाभिमानी रूप ।कवि के विचारों की मौलिकता ,अनुभवों की गहराई ,दृढ़ता ,हृदय का प्रेम उसके गर्व करने का कारण है | प्रश्न३ :- कवि अपने प्रिय को किस बात का श्रेय दे रहा है ? उत्तर:- निजी जीवन के प्रेम का संबंल कवि को विश्व व्यापी प्रेम से जुड़ने की प्रेरणा देता है |अत: कवि इसका श्रेय अपने प्रिय को देता है | सौंदर्य-बोध-ग्रहण संबंधी प्रश्न “जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है जितना भी उंडेलता हूँ ,भर –भर फिर आता है दिल में क्या झरना है ? मीठे पानी का सोता है भीतर वह ,ऊपर तुम मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात- भर मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है |” प्रश्न१:- कविता की भाषा संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए | उत्तर:- १-सटीक प्रतीकों, २- नये उपमानों का प्रयोग प्रश्न२ :- “दिल में क्या झरना है? मीठे पानी का सोता है?”- -के लाक्षणिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- “दिल में क्या झरना है?-हृदय के अथाह प्रेम का परिचायक मीठे पानी का सोता है?”-अविरल, कभी समाप्त होने वाला प्रेम प्रश्न३:- कविता में प्रयुक्त बिंब का उदाहरण लिखिए | दृश्य बिंब– “मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात भर। मुझ पर तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा।“ अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न “प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ राख से लीपा चौका (अभी गीला पड़ा है ) बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने नील जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो | और ..... जादू टूटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है|” प्रश्न१ :-उषा कविता में सूर्योदय के किस रूप को चित्रित किया गया है? उत्तर :-कवि ने प्रातःकालीन, परिवर्तनशील सौंदर्य का दृश्य बिंब मानवीय क्रियाकलापों के माध्यम से व्यक्त किया है। प्रश्न२ :-भोर के नभ और राख से लीपे गए चौके में क्या समानता है? उत्तर :-भोर के नभ और राख से लीपे गए चौके में यह समानता है कि दोनों ही गहरे सलेटी रंग के हैं,पवित्र हैं।नमी से युक्त हैं। प्रश्न३ :- स्लेट पर लाल ....पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए| उत्तर :-भोर का नभ लालिमा से युक्त स्याही लिए हुए होता है |अत: लाल खड़िया चाक से मली गई स्लेट जैसा प्रतीत होता है | प्रश्न४:- उषा का जादू किसे कहा गया है ? उत्तर विविध रूप रंग बदलती सुबह व्यक्ति पर जादुई प्रभाव डालते हुए उसे मंत्र मुग्ध कर देती है | अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न बादल राग “तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया – जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया- यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से , घन भेरी –गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से नवजीवन की ,ऊंचा कर सिर, ताक रहे हैं ,ऐ विप्लव के बादल! फिर –फिर बार –बार गर्जन वर्षण है मूसलधार , हृदय थाम लेता संसार , सुन- सुन घोर वज्र हुंकार | अशनि पात से शायित शत-शत वीर , क्षत –विक्षत हत अचल शरीर, गगन- स्पर्शी स्पर्द्धा धीर |” प्रश्न१:- कविता में बादल किस का प्रतीक है?और क्यों? उत्तर :-बादलराग क्रांति का प्रतीक है। इन दोनों के आगमन के उपरांत विश्व हरा- भरा. समृद्ध और स्वस्थ हो जाता है। प्रश्न २ :-सुख को अस्थिर क्यों कहा गया है? उत्तर :-सुख सदैव बना नहीं रहता अतः उसे अस्थिर कहा जाता है। प्रश्न३ :-विप्लवी बादल की युद्ध रूपी नौका की क्या- क्या विशेषताएं हैं? उत्तर :-बादलों के अंदर आम आदमी की इच्छाएँ भरी हुई हैं।जिस तरह से युद्र्ध नौका में युद्ध की सामग्री भरी होती है।युद्ध की तरह बादल के आगमन पर रणभेरी बजती है। सामान्यजन की आशाओं के अंकुर एक साथ फूट पड़ते हैं। प्रश्न४ :-बादल के बरसने का गरीब एवं धनी वर्ग से क्या संबंध जोड़ा गया है? उत्तर:-बादल के बरसने से गरीब वर्ग आशा से भर जाता है एवं धनी वर्ग अपने विनाश की आशंका से भयभीत हो उठता है । सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न “हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार- शस्य अपार , हिल हिल खिल खिल हाथ हिलाते तुझे बुलाते। विप्लव रव से छोटे ही हैं शोभा पाते|” प्रश्न १:- निम्न लिखित प्रतीकों को स्पष्ट कीजिए– छोटे पौधे, सुप्त अंकुर उत्तर :- छोटे पौधे- शोषित वर्ग , सुप्त अंकुर- आशाएं , प्रश्न२:- ‘हँसते हैं छोटे पौधे’-का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :-प्रसन्न चित्त निर्धन वर्ग जो क्रांति की संभावना मात्र से खिल उठता है। प्रश्न३:-‘छोटे ही हैं शोभा पाते’ में निहित लाक्षणिकता क्या है ? उत्तर:-बचपन में मनुष्य निश्चिंत होता है। निर्धन मनुष्य उस बच्चे के समान है जो क्रांति के समय भी निर्भय होता है और अंतत: लाभान्वित होता है। अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न “उहाँ राम लछिमनहिं निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥ अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायउ॥ सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥ मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता॥ सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥ जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू॥ सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा॥ अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता॥ जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना॥ अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥ जैहउँ अवध कवन मुहु लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥ बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥ अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥ निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा॥ सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी॥ उतरु काह दैहउँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥“ प्रश्न१:-‘बोले बचन मनुज अनुसारी’- का तात्पर्य क्या है ? उत्तर :- भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे- -धीरे प्रलाप में बदल जाता है, जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वर राम में मानव सुलभ गुणों का समन्वय कर देता है| वे मनुष्य की भांति विचलित हो कर ऐसे वचन कहते हैं जो मानवीय प्रकृति को ही शोभा देते हैं | प्रश्न२:- राम ने लक्ष्मण के किन गुणों का वर्णन किया है? उत्तर :-राम ने लक्ष्मण के इन गुणों का वर्णन किया है-
उत्तर :-राम के अनुसार धन ,पुत्र एवं नारी की हानि बड़ी हानि नहीं है क्योंकि ये सब खो जाने पर पुन: प्राप्त किये जा सकते हैं पर एक बार सगे भाई के खो जाने पर उसे पुन: प्राप्त नहीं किया जा सकता | प्रश्न४:- पंख के बिना पक्षी और सूंड के बिना हाथी की क्या दशा होती है काव्य प्रसंग में इनका उल्लेख क्यों किया गया है ? उत्तर :- राम विलाप करते हुए अपनी भावी स्थिति का वर्णन कर रहे हैं कि जैसे पंख के बिना पक्षी और सूंड के बिना हाथी पीड़ित हो जाता है ,उनका अस्तित्व नगण्य हो जाता है वैसा ही असहनीय कष्ट राम को लक्ष्मण के न होने से होगा | सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न “किसबी, किसान-कुल ,बनिक, भिखारी ,भाट, चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी| पेटको पढ्त,गुन गढ़त, चढ़त गिरि, अटत गहन –गन अहन अखेट्की| ऊंचे –नीचे करम ,धरम –अधरम करि, पेट ही को पचत, बचत बेटा –बेटकी | ‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें , आगि बड़वागितें बड़ी है आगि पेटकी|” प्रश्न१:- कवितावली किस भाषा में लिखी गई है? उत्तर :- ब्रज भाषा प्रश्न२:- कवितावली में प्रयुक्त छंद एवं रस को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- इस पद में 31. 31 वर्णों का चार चरणों वाला समवर्णिक कवित्त छंद है जिसमें 16 एवं 15 वर्णों पर विराम होता है। प्रश्न३:- कवित्त में प्रयुक्त अलंकारों को छांट कर लिखिए १. अनुप्रास अंलकार– किसबी, किसान-कुल ,बनिक, भिखारी ,भाट, चाकर ,चपल नट ,चोर, चार ,चेटकी| २. रूपक अलंकार– राम– घनश्याम ३. अतिशयोक्ति अलंकार– आगि बड़वागितें बड़ि है आग पेट की। अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न “आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी रह-रह के हवा में जो लोका देती है गूँज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी” प्रश्न१:- ‘चाँद के टुकड़े’का प्रयोग किसके लिए हुआ है? और क्यों ? उत्तर :-बच्चे को चाँद का टुकड़ा कहा गया है जो माँ के लिए बहुत प्यारा होता है। प्रश्न२:- गोद-भरी प्रयोग की विशेषता को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- गोद-भरी शब्द-प्रयोग माँ के वात्सल्यपूर्ण, आनंदित उत्साह को प्रकट करता है |यह अत्यंत सुंदर दृश्य बिंब है | सूनी गोद के विपरीत गोद का भरना माँ के लिए असीम सौभाग्य का सूचक है |इसी सौभाग्य का सूक्ष्म अहसास माँ को तृप्ति दे रहा है| प्रश्न३:- लोका देना किसे कहते हैं ? उत्तर :- जब माँ बच्चे को बाहों में लेकर हवा में उछालती है इसे लोका देना कहते हैं|छोटे बच्चों को यह खेल बहुत अच्छा लगता है प्रश्न४:- बच्चा माँ की गोद में कैसी प्रतिक्रिया करता है? उत्तर :- हवा में उछालने ( लोका देने) से बच्चा माँ का वात्सल्य पाकर प्रसन्न होता है और खिलखिला कर हँस पड़ता है।बच्चे की किलकारियाँ माँ के आनंद को दुगना कर देती हैं| सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न “नहला के छलके-छलके निर्मल जल से उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को जब घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े” प्रश्न१:- प्रस्तुत पंक्तियों के भाव सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- माँ ने अपने बच्चे को निर्मल जल से नहलाया उसके उलझे बालों में कंघी की |माँ के स्पर्श एवं नहाने के आनंद से बच्चा प्रसन्न हो कर बड़े प्रेम से माँ को निहारता है| प्रतिदिन की एक स्वाभाविक क्रिया से कैसे माँ-बच्चे का प्रेम विकसित होता है और प्रगाढ़ होता चला जाता है इस भाव को इस रुबाई में बड़ी सूक्ष्मता के साथ प्रस्तुत किया गया है| प्रश्न२:- काव्यांश में आए बिंबों को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :-“नहला के छलके-छलके निर्मल जल से”- इस प्रयोग द्वारा कवि ने बालक की निर्मलता एवं पवित्रता को जल की निर्मलता के माध्यम से अंकित किया है | छलकना शब्द जल की ताजा बूंदों का बालक के शरीर पर छलछलाने का सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत करता है | ‘घुटनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े’- इस प्रयोग में माँ की बच्चे के प्रति सावधानी ,चंचल बच्चे को चोट पहुँचाए बिना उसे कपड़े पहनाने से माँ के मातृत्व की कुशलता बिंबितहोती है | “किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को”- पंक्ति में माँ –बच्चे का वात्सल्य बिंबित हुआ है | माँ से प्यार –दुलार ,स्पर्श –सुख, नहलाए जाने के आनंद को अनुभव करते हुए बच्चा माँ को प्यार भरी नजरों से देख कर उस सुख की अभिव्यक्ति कर रहा है |यह सूक्ष्म भाव अत्यंत मनोरम बन पड़ा है |संपूर्ण रुबाई में दृश्य बिंब है| प्रश्न ३:-काव्यांश के शब्द-प्रयोग पर टिप्पणी लिखिए | उत्तर :-गेसु –उर्दू शब्दों का प्रयोग घुटनियों ,पिन्हाती – देशज शब्दों के माध्यम से कोमलता की अभिव्यक्ति छलके –छलके –शब्द की पुनरावृत्ति से अभी –अभी नहलाए गए बच्चे के गीले शरीर का बिंब आदि विलक्षण प्रयोग रुबाइयों को विशिष्ट बना देते हैं |हिंदी,उर्दू और लोकभाषा के अनूठे गठबंधनकी झलक, जिसे गांधीजी हिंदुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे,देखने को मिलती है | अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न “नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोले हैं या उड़ जाने को रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं |” प्रश्न१:- ‘नौरस’ विशेषण द्वारा कवि किस अर्थ की व्यंजना करना चाहता है ? उत्तर :नौरस अर्थात नया रस ! गुंचे अर्थात कलियों में नया –नया रस भर आया है | प्रश्न२:- पंखड़ियों की नाज़ुक गिरहें खोलने का क्या अभिप्राय है ? उत्तर :- रस के भर जाने से कलियाँ विकसित हो रही हैं |धीरे-धीरे उनकी पंखुड़ियाँ अपनी बंद गाँठें खोल रही हैं | कवि के शब्दों में नवरस ही उनकी बंद गाँठें खोल रहा है| प्रश्न३:- ‘रंगो- बू गुलशन में पर तौले हैं’ – का अर्थ स्पष्ट कीजिए| उत्तर :-रंग और सुगंध दो पक्षी हैं जो कलियों में बंद हैं तथा उड़ जाने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हैं |यह स्थिति कलियों के फूल बन जाने से पूर्व की है जो फूल बन जाने की प्रतीक्षा में हैं |’पर तौलना’ एक मुहावरा है जो उड़ान की क्षमता आँकने के लिए प्रयोग किया जाता है | प्रश्न४:- इस शेर का भाव-सौंदर्य व्यक्त कीजिए| उत्तर :-कलियों की नई-नई पंखुड़ियाँ खिलने लगी हैं उनमें से रस मानो टपकना ही चाहता है | वय:संधि(किशोरी)नायिका के प्रस्फुटित होते सौंदर्य का प्रतीकात्मक चित्रण अत्यंत सुंदर बन पड़ा है | सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला किस्मत हम को रो लेवे हैं हम किस्मत को रो ले हैं| जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें मेरा पर्दा खोले हैं या अपना पर्दा खोले हैं | प्रश्न१:- इन शेरों की भाषा संबंधी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए | उत्तर:- १. मुहावरों का प्रयोग –किस्मत का रोना –निराशा का प्रतीक २.सरल अभिव्यक्ति ,भाषा में प्रवाहमयता है ,किस्मत और परदा शब्दों की पुनरावृत्तियाँ मोहक हैं| ३. हिंदी का घरेलू रूप प्रश्न२:- ‘मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ‘- की भाषिक विशेषता लिखिए | उत्तर :-मुहावरे के प्रयोग द्वारा व्यंजनात्मक अभिव्यक्ति | परदा खोलना – भेद खोलना ,सच्चाई बयान करना| प्रश्न३:-‘हमहों या किस्मत हो हमारी ‘ –प्रयोग की विशेषता बताइए | उत्तर :- हम और किस्मत दोनों शब्द एक ही व्यक्ति अर्थात फ़िराक के लिए प्रयुक्त हैं |हम और किस्मत में अभेद है यही विशेषता है | अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न “छोटा मेरा खेत चौकोना कागज़ का एक पन्ना ,कोई अंधड़ कहीं से आया क्षण का बीज वहाँ बोया गया| कल्पना के रसायनों को पी बीज गल गया नि:शेष ;शब्द के अंकुर फूटे , पल्लव –पुष्पों से नमित हुआ विशेष |” प्रश्न १‘छोटा मेरा खेत’ किसका प्रतीक है और क्यों? उत्तर :- प्रश्न२ ‘छोटा मेरा खेत’ काग़ज के उस पन्ने का प्रतीक है जिस पर कवि अपनी कविता लिखता है। प्रश्न २ कवि खेत में कौन–सा बीज बोता है? उत्तर :- कवि खेत में अपनी कल्पना का बीज बोता है? प्रश्न ३ कवि की कल्पना से कौन से पल्लव अंकुरित होते हैं ? उत्तर :- कवि की कल्पना से शब्द के पल्लव अंकुरित होते हैं? प्रश्न ४ उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- खेती के रूपक द्वारा काव्य-रचना–प्रक्रिया को स्पष्ट किया गया हे।काव्य कृति की रचना बीज– वपन से लेकर पौधे के पुष्पित होने के विभिन्न चरणों से गुजरती है।अंतर केवल इतना है कि कवि कर्म की फसल कालजयी, शाश्वत होती है।उसका रस-क्षरण अक्षय होता है। सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न “झूमने लगे फल, रस अलौकिक , अमृत धाराएँ फूटतीं रोपाई क्षण की , कटाई अनंतता की लुटते रहने से जरा भी कम नहीं होती | रस का अक्षय पात्र सदा का छोटा मेरा खेत चौकोना |” प्रश्न इस कविता की भाषा संबंधी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए – उत्तर ;- १ प्रतीकात्मकता २ लाक्षणिकता - २रूपक अलंकार– रस का अक्षय पात्र सदा का छोटा मेरा खेत चौकोना। प्रश्न २ रस अलौकिक, अमृत धाराएँ, रोपाई – कटाई-प्रतीकों के अर्थ स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- रस अलौकिक – काव्य रस निष्पत्ति अमृत धाराएँ- काव्यानंद रोपाई – अनुभूति को शब्दबद्ध करना कटाई –रसास्वादन अर्थ-ग्रहण-संबंधी प्रश्न कविता–बगुलों के पंख नभ में पाँती- बँधे बगुलों के पंख , चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें | कजरारे बादलों की छाई नभ छाया , हौले–हौले जाती मुझे बाँध निज माया से | उसे कोई तनिक रोक रक्खो | वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें नभ में पाँती- बँधी बगुलों की पाँखें | तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया| प्रश्न१:- इस कविता में कवि ने किसका चित्रण किया है ? उत्तर :- कवि ने काले बादलों पर उड़ती बगुलों की श्वेत पंक्ति का चित्रण किया है| प्रश्न२:- आँखें चुराने का क्या अर्थ है ? उत्तर :- आँखें चुराने का आशय है –ध्यान पूरी तरह खींच लेना ,एकटक देखना ,मंत्रमुग्ध कर देना प्रश्न३:- “कजरारे बादलों की छाई नभ छाया , हौले –हौले जाती मुझे बाँध निज माया से |”- आशय स्पष्ट कीजिए | उत्तर:- काले बादलों के बीच साँझ का सुरमई वातावरण बहुत सुंदर दिखता है | ऐसा अप्रतिम सौंदर्य अपने आकर्षण में कवि को बाँध लेता है | प्रश्न ४ “उसे कोई तनिक रोक रक्खो |’- से कवि का क्या अभिप्राय है ? उत्तर :- बगुलों की पंक्ति आकाश में दूर तक उड़ती जा रही है कवि की मंत्रमुग्ध आँखें उनका पीछा कर रही हैं |कवि उन बगुलों को रोक कर रखने की गुहार लगा रहा है कि कहीं वे उसकी आँखें ही अपने साथ न ले जाएँ| सौंदर्य-बोध-संबंधी प्रश्न प्रश्न १ कविता की भाषा संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए| उत्तर :-१ चित्रात्मक भाषा २ बोलचाल के शब्दों का प्रयोग - हौले –हौले, पाँती, कजरारे,साँझ प्रश्न २ कविता में प्रयुक्त अलंकार चुन कर लिखिए | उत्तर :- अनुप्रास अलंकार - बँधे बगुलों के पंख , मानवीकरण अलंकार - चुराए लिए जातीं वे मेरी आँखें | प्रश्न ३ :-‘ निज माया’ के लाक्षणिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए | उत्तर :- प्रकृति का अप्रतिम सौंदर्य वह माया है जो कवि को आत्मविभोर कर देती है।यह पंक्ति भी प्रशंसात्मक उक्ति है। आरोह भाग-२ (गद्य भाग) कुल अंक –20 सामान्य निर्देश परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए ध्यान देने योग्य बातें –
पाठ 11 - भक्तिन लेखिका- महादेवी वर्मा पाठ का सारांश- भक्तिन जिसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था,लेखिका ‘महादेवी वर्मा’ की सेविका है | बचपन में ही भक्तिन की माँ की मृत्यु हो गयी| सौतेली माँ ने पाँच वर्ष की आयु में विवाह तथा नौ वर्ष की आयु में गौना कर भक्तिन को ससुराल भेज दिया| ससुराल में भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण उसे सास और जिठानियों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी| सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी और भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था| भक्तिन का पति उसे बहुत चाहता था| अपने पति के स्नेह के बल पर भक्तिन ने ससुराल वालों से अलगौझा कर अपना अलग घर बसा लिया और सुख से रहने लगी, पर भक्तिन का दुर्भाग्य, अल्पायु में ही उसके पति की मृत्यु हो गई | ससुराल वाले भक्तिन की दूसरी शादी कर उसे घर से निकालकर उसकी संपत्ति हड़पने की साजिश करने लगे| ऐसी परिस्थिति में भक्तिन ने अपने केश मुंडा लिए और संन्यासिन बन गई | भक्तिन स्वाभिमानी, संघर्षशील, कर्मठ और दृढ संकल्प वाली स्त्री है जो पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छ्ल-कपट से भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती है।घर गृहस्थी सँभालने के लिए अपनी बड़ी बेटी दामाद को बुला लिया पर दुर्भाग्य ने यहाँ भी भक्तिन का पीछा नहीं छोड़ा, अचानक उसके दामाद की भी मृत्यु हो गयी| भक्तिन के जेठ-जिठौत ने साजिश रचकर भक्तिन की विधवा बेटी का विवाह जबरदस्ती अपने तीतरबाज साले से कर दिया| पंचायत द्वारा कराया गया यह संबंध दुखदायी रहा | दोनों माँ-बेटी का मन घर-गृहस्थी से उचट गया, निर्धनता आ गयी, लगान न चुका पाने के कारण जमींदार ने भक्तिन को दिन भर धूप में खड़ा रखा| अपमानित भक्तिन पैसा कमाने के लिए गाँव छोड़कर शहर आ जाती है और महादेवी की सेविका बन जाती है| भक्तिन के मन में महादेवी के प्रति बहुत आदर, समर्पण और अभिभावक के समान अधिकार भाव है| वह छाया के समान महादेवी के साथ रहती है| वह रात-रात भर जागकर चित्रकारी या लेखन जैसे कार्य में व्यस्त अपनी मालकिन की सेवा का अवसर ढूँढ लेती है| महादेवी, भक्तिन को नहीं बदल पायी पर भक्तिन ने महादेवी को बदल दिया| भक्तिन के हाथ का मोटा-देहाती खाना खाते-खाते महादेवी का स्वाद बदल गया, भक्तिन ने महादेवी को देहात के किस्से-कहानियाँ, किंवदंतियाँ कंठस्थ करा दी| स्वभाव से महाकंजूस होने पर भी भक्तिन, पाई-पाई कर जोडी हुई १०५ रुपयों की राशि को सहर्ष महादेवी को समर्पित कर देती है| जेल के नाम से थर-थर काँपने वाली भक्तिन अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के लिए बड़े लाट साहब तक से लड़ने को भी तैयार हो जाती है| भक्तिन, महादेवी के जीवन पर छा जाने वाली एक ऐसी सेविका है जिसे लेखिका नहीं खोना चाहती। पाठ आधारित प्रश्नोत्तर नोट- उत्तर में निहित रेखांकित वाक्य, मुख्य संकेत बिंदु हैं | प्रश्न 1-भक्तिन का वास्तविक नाम क्या था, वह अपने नाम को क्यों छुपाना चाहती थी? उत्तर-भक्तिन का वास्तविक नाम लक्ष्मी था, हिन्दुओं के अनुसारलक्ष्मी धन की देवीहै। चूँकि भक्तिन गरीब थी| उसके वास्तविक नाम के अर्थ और उसके जीवन के यथार्थ में विरोधाभास है, निर्धन भक्तिन सबको अपना असली नाम लक्ष्मी बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती थी इसलिए वह अपना असली नाम छुपाती थी। प्रश्न 2- लेखिका ने लक्ष्मी का नाम भक्तिन क्यों रखा? उत्तर-घुटा हुआ सिर, गले में कंठी माला और भक्तों की तरह सादगीपूर्ण वेशभूषा देखकर महादेवी वर्मा ने लक्ष्मी का नाम भक्तिन रख दिया | यह नाम उसके व्यक्तित्व से पूर्णत: मेल खाता था | प्रश्न 3-भक्तिन के जीवन को कितने परिच्छेदों में विभाजित किया गया है? उत्तर- भक्तिन के जीवन को चार भागों में बाँटा गया है-
भारतीय ग्रामीण समाज में लड़के-लड़कियों में भेदभाव किया जाता है| लड़कियों को खोटा सिक्का या पराया धन माना जाता है| भक्तिन ने तीन बेटियों को जन्म दिया, जिस कारण उसे सास और जिठानियों की उपेक्षा सहनी पड़ती थी| सास और जिठानियाँ आराम फरमाती थी क्योंकि उन्होंने लड़के पैदा किए थे और भक्तिन तथा उसकी नन्हीं बेटियों को घर और खेतों का सारा काम करना पडता था| भक्तिन और उसकी बेटियों को रूखा-सूखा मोटा अनाज खाने को मिलता था जबकि उसकी जिठानियाँ और उनके काले-कलूटे बेटे दूध-मलाई राब-चावल की दावत उड़ाते थे प्रश्न 5-भक्तिन पाठ के आधार पर पंचायत के न्याय पर टिप्पणी कीजिए | भक्तिन की बेटी के सन्दर्भ में पंचायत द्वारा किया गया न्याय, तर्कहीन और अंधे कानून पर आधारितहै | भक्तिन के जिठौत ने संपत्ति के लालच में षडयंत्र कर भोली बच्ची को धोखे से जाल में फंसाया| पंचायत ने निर्दोष लड़की की कोई बात नहीं सुनी और एक तरफ़ा फैसला देकर उसका विवाह जबरदस्ती जिठौत के निकम्मे तीतरबाज साले से कर दिया | पंचायत के अंधे कानून से दुष्टों को लाभ हुआ और निर्दोष को दंड मिला | प्रश्न 6-भक्तिन की पाक-कला के बारे में टिप्पणी कीजिए | भक्तिन को ठेठ देहाती, सादा भोजन पसंद था | रसोई में वह पाक छूत को बहुत महत्त्व देती थी | सुबह-सवेरे नहा-धोकर चौके की सफाई करके वह द्वार पर कोयले की मोटी रेखा खींच देती थी| किसी को रसोईघर में प्रवेश करने नहीं देती थी| उसे अपने बनाए भोजन पर बड़ा अभिमान था| वह अपने बनाए भोजन का तिरस्कार नहीं सह सकती थी | प्रश्न 7- सिद्ध कीजिए कि भक्तिन तर्क-वितर्क करने में माहिर थी | भक्तिन तर्कपटु थी | केश मुँडाने से मना किए जाने पर वह शास्त्रों का हवाला देते हुए कहती है ‘तीरथ गए मुँडाए सिद्ध’ | घर में इधर-उधर रखे गए पैसों को वह चुपचाप उठा कर छुपा लेती है, टोके जानेपर वह वह इसे चोरी नही मानती बल्कि वह इसे अपने घर में पड़े पैसों को सँभालकर रखना कहती है| पढाई-लिखाई से बचने के लिए भी वह अचूक तर्क देती है कि अगर मैं भी पढ़ने लगूँ तो घर का काम कौन देखेगा? प्रश्न 8-भक्तिन का दुर्भाग्य भी कम हठी नही था, लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है? उत्तर- भक्तिन का दुर्भाग्य उसका पीछा नहीं छोड़ता था-
प्रश्न 9-भक्तिन ने महादेवी वर्मा के जीवन पर कैसे प्रभावित किया? उत्तर- भक्तिन के साथ रहकर महादेवी की जीवन-शैली सरल हो गयी, वे अपनी सुविधाओं की चाह को छिपाने लगीं और असुविधाओं को सहने लगीं। भक्तिन ने उन्हें देहाती भोजन खिलाकर उनका स्वाद बदल दिया। भक्तिन मात्र एक सेविका न होकर महादेवी की अभिभावक और आत्मीय बन गयी।भक्तिन, महादेवी के जीवन पर छा जाने वाली एक ऐसी सेविका है जिसे लेखिका नहीं खोना चाहती। प्रश्न 10- भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए। उत्तर- महादेवी वर्मा की सेविका भक्तिन के व्यक्तित्व की विशेषताएं निम्नांकित हैं-
उत्तर- गुणों के साथ-साथ भक्तिन के व्यक्तित्व में अनेक दुर्गुण भी निहित है-
उत्तर- भक्तिन पाठ के माध्यम से लेखिका ने भारतीय ग्रामीण समाज की अनेक समस्याओं का उल्लेख किया है-
गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर परिवार और परिस्थितियों के कारण स्वभाव में जो विषमताएँ उत्पन्न हो गई हैं, उनके भीतर से एक स्नेह और सहानुभूति की आभा फूटती रहती है, इसी से उसके संपर्क में आनेवाले व्यक्ति उसमें जीवन की सहज मार्मिकता ही पाते हैं। छात्रावास की बालिकाओं में से कोई अपनी चाय बनवाने के लिए देहली पर बैठी रहती हैं, कोई बाहर खडी मेरे लिए नाश्ते को चखकर उसके स्वाद की विवेचना करती रहती है। मेरे बाहर निकलते ही सब चिड़ियों के समान उड़ जाती हैं और भीतर आते ही यथास्थान विराजमान हो जाती है। इन्हें आने में रूकावट न हो, संभवतः इसी से भक्तिन अपना दोनों जून का भोजन सवेरे ही बनाकर ऊपर के आले में रख देती है और खाते समय चौके का एक कोना धोकर पाक–छूत के सनातन नियम से समझौता कर लेती है। मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सद्भाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहज बुद्धि विस्मित कर देने वाली है। (क) भक्तिन का स्वभाव परिवार में रहकर कैसा हो गया है ? उत्तर-विषम परिस्थितिजन्य उसके उग्र, हठी और दुराग्रही स्वभाव के बावजूद भक्तिन के भीतर स्नेह और सहानुभूति की आभा फूटती रहती है। उसके संपर्क में आने वाले व्यक्ति उसमें जीवन की सहज मार्मिकता ही पाते हैं। (ख) भक्तिन के पास छात्रावास की छात्राएँ क्यों आती हैं ? उत्तर- भक्तिन के पास कोई छात्रा अपनी चाय बनवाने आती है और देहली पर बैठी रहती है, कोई महादेवी जी के लिए बने नाश्ते को चखकर उसके स्वाद की विवेचना करती रहती है। महादेवी को देखते ही सब छात्राएँ भाग जाती हैं, उनके जाते ही फिर वापस आ जातीं हैं भक्तिन का सहज-स्नेह पाकर चिड़ियों की तरह चहचहाने लगती हैं | (ग) छात्राओं के आने में रुकावट न डालने के लिए भक्तिन ने क्या उपाय किया ? उत्तर- छात्राओं के आने में रुकावट न डालने के लिए भक्तिन ने अपने पाक-छूत के नियम से समझौता कर लिया | भक्तिन अपना दोनों वक्त का खाना बनाकर सुबह ही आले में रख देती और खाते समय चौके का एक कोना धोकर वहाँ बैठकर खा लिया करती थी ताकि छात्राएँ बिना रोक-टोक के उसके पास आ सकें। (घ) साहित्यकारों के प्रति भक्तिन के सम्मान का क्या मापदंड है ? उत्तर-भक्तिन महादेवी के साहित्यिक मित्र के प्रति सद्भाव रखती थी जिसके प्रति महादेवी स्वयं सद्भाव रखती थी | वह सभी से परिचित हैपर उनके प्रति सम्मान की मात्रा महादेवी जी के सम्मान की मात्रा पर निर्भर करती है। वह एक अद्भुत ढंग से जान लेती थी कि कौन कितना सम्मान करता है । उसी अनुपात में उसका प्राप्य उसे देती थी। 12 बाजार-दर्शन लेखक- जैनेंद्र कुमार पाठ का सारांश बाजार-दर्शन पाठ में बाजारवाद और उपभोक्तावाद के साथ-साथ अर्थनीति एवं दर्शन से संबंधित प्रश्नों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। बाजार का जादू तभी असर करता है जब मन खाली हो| बाजार के जादू को रोकने का उपाय यह है कि बाजार जाते समय मन खाली ना हो, मन में लक्ष्य भरा हो| बाजार की असली कृतार्थता है जरूरत के वक्त काम आना| बाजार को वही मनुष्य लाभ दे सकता है जो वास्तव में अपनी आवश्यकता के अनुसार खरीदना चाहता है| जो लोग अपने पैसों के घमंड में अपनी पर्चेजिंग पावर को दिखाने के लिए चीजें खरीदते हैं वे बाजार को शैतानी व्यंग्य शक्ति देते हैं| ऐसे लोग बाजारूपन और कपट बढाते हैं | पैसे की यह व्यंग्य शक्ति व्यक्ति को अपने सगे लोगों के प्रति भी कृतघ्न बना सकती है | साधारण जन का हृदय लालसा, ईर्ष्या और तृष्णा से जलने लगता है | दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति जिसके मन में लेश मात्र भी लोभ और तृष्णा नहीं है, संचय की इच्छा नहीं है वह इस व्यंग्य-शक्ति से बचा रहता है | भगतजी ऐसे ही आत्मबल के धनी आदर्श ग्राहक और बेचक हैं जिन पर पैसे की व्यंग्य-शक्ति का कोई असर नहीं होता | अनेक उदाहरणों के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि एक ओर बाजार, लालची, असंतोषी और खोखले मन वाले व्यक्तियों को लूटने के लिए है वहीं दूसरी ओर संतोषी मन वालों के लिए बाजार की चमक-दमक, उसका आकर्षण कोई महत्त्व नहीं रखता। प्रश्न१ - पर्चेजिंग पावर किसे कहा गया है, बाजार पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? उत्तर- पर्चेजिंग पावर का अर्थ है खरीदने की शक्ति। पर्चेजिंग पावर के घमंड में व्यक्ति दिखावे के लिए आवश्यकता से अधिक खरीदारीकरता है और बाजार को शैतानी व्यंग्य-शक्ति देता है। ऐसे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। प्रश्न२ -लेखक ने बाजार का जादू किसे कहा है, इसका क्या प्रभाव पड़ता है? उत्तर- बाजार की चमक-दमक के चुंबकीय आकर्षण को बाजार का जादू कहा गया है, यह जादू आंखों की राह कार्य करता है। बाजार के इसी आकर्षण के कारण ग्राहक सजी-धजी चीजों को आवश्यकता न होने पर भी खरीदने को विवश हो जाते हैं। प्रश्न३ -आशय स्पष्ट करें।
मन भरा होना- मन लक्ष्य से भरा होना। जिसका मन भरा हो वह भलीभाँति जानता है कि उसे बाजार से कौन सी वस्तु खरीदनी है, अपनी आवश्यकता की चीज खरीदकर वह बाजार को सार्थकता प्रदान करता है। मन बंद होना-मन में किसी भी प्रकार की इच्छा न होना अर्थात अपने मन को शून्य कर देना। प्रश्न४ - ‘जहाँ तृष्णा है, बटोर रखने की स्पृहा है, वहाँ उस बल का बीज नहीं है।’ यहां किस बल की चर्चा की गयी है? उत्तर- लेखक ने संतोषी स्वभाव के व्यक्ति के आत्मबलकी चर्चा की है। दूसरे शब्दों में यदि मन में संतोष हो तो व्यक्ति दिखावे और ईर्ष्या की भावना से दूर रहता है उसमें संचय करने की प्रवृत्ति नहीं होती। प्रश्न५ - अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र कब बन जाता है? उत्तर- जब बाजार में कपट और शोषण बढ़ने लगे, खरीददार अपनी पर्चेचिंग पावर के घमंड में दिखावे के लिए खरीददारी करें | मनुष्यों में परस्पर भाईचारा समाप्त हो जाए| खरीददार और दुकानदार एक दूसरे को ठगने की घात में लगे रहें , एक की हानि में दूसरे को अपना लाभ दिखाई दे तो बाजार का अर्थशास्त्र, अनीतिशास्त्र बन जाता है। ऐसे बाजार मानवता के लिए विडंबना है। प्रश्न६-भगतजी बाजार और समाज को किस प्रकार सार्थकता प्रदान कर रहे हैं? उत्तर- भगतजी के मन में सांसारिक आकर्षणों के लिए कोई तृष्णा नहीं है। वे संचय, लालच और दिखावे से दूर रहते हैं। बाजार और व्यापार उनके लिए आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। भगतजी के मन का संतोष और निस्पृह भाव, उनको श्रेष्ठ उपभोक्ता और विक्रेता बनाते हैं। प्रश्न ७ _ भगत जी के व्यक्तित्व के सशक्त पहलुओं का उल्लेख कीजिए | उत्तर-निम्नांकित बिंदु उनके व्यक्तित्व के सशक्त पहलू को उजागर करते हैं।
प्रश्न7-बाजार की सार्थकता किसमें है? उत्तर- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में ही बाजार की सार्थकता है। जो ग्राहक अपनी आवश्यकताओं की चीजें खरीदते हैं वे बाजार को सार्थकता प्रदान करते हैं। जो विक्रेता, ग्राहकों का शोषण नहीं करते और छल-कपट से ग्राहकों को लुभाने का प्रयास नही करते वे भी बाजार को सार्थक बनाते हैं। गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर बाजार मे एक जादू है। वह जादू आँख की तरह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है । जेब खाली पर मन भरा न हो तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी, तब तो फिर वह मन किसकी मानने वाला है। मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान जरूरी और आराम को बढ़ाने वाला मालूम होता है पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी-चीजों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को जरूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान को गिल्टी की खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ देगी ? पर उस जादू की जकड़ से बचने का एक सीधा उपाय है वह यह कि बाजार जाओ तो खाली मन न हो । मन खाली हो तब बाजार न जाओ कहते हैं, लू में जाना हो तो पानी पीकर जाना चाहिए पानी भीतर हो, लू का लूपन व्यर्थ हो जाता है। मन लक्ष्य से भरा हो तो बाजार फैला का फैला ही रह जाएगा। तब वह घाव बिलकुल नहीं दे सकेगा, बल्कि कुछ आनंद ही देगा। तब बाजार तुमसे कृतार्थ होगा, क्योंकि तुम कुछ न कुछ सच्चा लाभ उसे दोगे। बाजार की असली कृतार्थता है आवश्यकता के समय काम आना। प्रश्न-1 बाजार के जादू को लेखक ने कैसे स्पष्ट किया है ? उत्तर- बाजार के रूप का जादू आँखों की राह से काम करता हुआ हमें आकर्षित करता है। बाजार का जादू ऐसे चलता है जैसे लोहे के ऊपर चुंबक का जादू चलता है। चमचमाती रोशनी में सजी फैंसी चींजें ग्राहक को अपनी ओर आकर्षित करती हैं| इसी चुम्बकीय शक्ति के कारण व्यक्ति फिजूल सामान को भी खरीद लेता है | प्रश्न-2 जेब भरी हो और मन खाली तो हमारी क्या दशा होती है ? उत्तर- जेब भरी हो और मन खाली हो तो हमारे ऊपर बाजार का जादू खूब असर करता है। मन, खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण मन तक पहुँच जाता है और उस समय यदि जेब भरी हो तो मन हमारे नियंत्रण में नहीं रहता। प्रश्न-3 फैंसी चीजों की बहुतायत का क्या परिणाम होता है? उत्तर- फैंसी चीजें आराम की जगह आराम में व्यवधान ही डालती है। थोड़ी देर को अभिमान को जरूर सेंक मिल जाती है पर दिखावे की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। प्रश्न-4 जादू की जकड़ से बचने का क्या उपाय है ? उत्तर- जादू की जकड़ से बचने के लिए एक ही उपाय है, वह यह है कि बाजार जाओ तो मन खाली न हो, मन खाली हो तो बाजार मत जाओ। 13 काले मेघा पानी दे लेखक-धर्मवीर भारती पाठ का सारांश -‘काले मेघा पानी दे’ निबंध, लोकजीवन के विश्वास और विज्ञान के तर्क पर आधारित है। जब भीषण गर्मी के कारण व्याकुल लोग वर्षा कराने के लिए पूजा-पाठ और कथा-विधान कर थक–हार जाते हैं तब वर्षा कराने के लिए अंतिम उपाय के रूप में इन्दर सेना निकलती है| इन्दर सेना, नंग-धड़ंग बच्चों की टोली है जो कीचड़ में लथपथ होकर गली-मोहल्ले में पानी माँगने निकलती है| लोग अपने घर की छतों-खिड़कियों से इन्दर सेना पर पानी डालते हैं | लोगों की मान्यता है कि इन्द्र, बादलों के स्वामी और वर्षा के देवता हैं| इन्द्र की सेना पर पानी डालने से इन्द्र भगवान प्रसन्न होकर पानी बरसाएंगे | लेखक का तर्क है कि जब पानी की इतनी कमी है तो लोग मुश्किल से जमा किए पानी को बाल्टी भर-भरकर इन्दर सेना पर डालकर पानी को क्यों बर्बाद करते है? आर्यसमाजी विचारधारा वाला लेखक इसे अंधविश्वास मानता है | इसके विपरीत लेखक की जीजी उसे समझाती है कि यह पानी की बर्बादी नहीं बल्कि पानी की बुवाई है | कुछ पाने के लिए कुछ देना पड़ता है | त्याग के बिना दान नहीं होता| प्रस्तुत निबंध में लेखक ने भ्रष्टाचार की समस्या को उठाते हुए कहा है कि जीवन में कुछ पाने के लिए त्याग आवश्यक है। जो लोग त्याग और दान की महत्ता को नहीं मानते, वे ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहकर देश और समाज को लूटते हैं| जीजी की आस्था, भावनात्मक सच्चाई को पुष्ट करती है और तर्क केवल वैज्ञानिक तथ्य को सत्य मानता है। जहाँ तर्क, यथार्थ के कठोर धरातल पर सच्चाई को परखता है तो वहीं आस्था, अनहोनी बात को भी स्वीकार कर मन को संस्कारित करती है। भारत की स्वतंत्रता के ५० साल बाद भी देश में व्याप्त भष्टाचार और स्वार्थ की भावना को देखकर लेखक दुखी है | सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ गरीबों तक क्यों नहीं पहुँच पा रहीं हैं? काले मेघा के दल उमड़ रहे हैं पर आज भी गरीब की गगरी फूटी हुई क्यों है ? लेखक ने यह प्रश्न पाठकों के लिए छोड़ दिया है | प्रश्न1-इन्दर सेना घर-घर जाकर पानी क्यों माँगती थी? उत्तर- गाँव के लोग बारिश के लिए भगवान इंद्र से प्रार्थना किया करते थे। जब पूजा-पाठ,व्रत आदि उपाय असफ़ल हो जाते थे तो भगवान इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गाँव के किशोर, बच्चे कीचड़ में लथपथ होकर गली-गली घूमकर लोगों से पानी माँगते थे। प्रश्न2-इन्दरसेना को लेखक मेढक-मंडली क्यों कहता है, जीजी के बार–बार कहने पर भी वह इन्दरसेना पर पानी फेंकने को राजी क्यों नहीं होता ? उत्तर- इन्दरसेना का कार्य आर्यसमाजी विचारधारा वाले लेखक को अंधविश्वास लगता है, उसका मानना है कि यदि इंदरसेना देवता से पानी दिलवा सकती है तो स्वयं अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? पानी की कमी होने पर भी लोग घर में एकत्र किये हुए पानी को इंदरसेना पर फ़ेंकते हैं। लेखक इसे पानी की निर्मम बरबादी मानता है। प्रश्न3- रूठे हुए लेखक को जीजी ने किस प्रकार समझाया? उत्तर- जीजी ने लेखक को प्यार से लड्डू-मठरी खिलाते हुए निम्न तर्क दिए-
प्रश्न4-नदियों का भारतीय सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्व है ? उत्तर- गंगा भारतीय समाज में सबसे पूज्य सदानीरा नदी है। जिसका भारतीय इतिहास में धार्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक महत्व है | वह भारतीयों के लिए केवल एक नदी नहीं अपितु माँ है, स्वर्ग की सीढ़ी है, मोक्षदायिनी है। उसमें पानी नहीं अपितु अमृत तुल्य जल बहता है। भारतीय संस्कृति में नदियों के किनारे मानव सभ्यताएँ फली-फूली हैं| बड़े-बड़े नगर, तीर्थस्थान नदियों के किनारे ही स्थित हैं ऐसे परिवेश मेंभारतवासी सबसे पहले गंगा मैया की जय ही बोलेंगे। नदियाँ हमारे जीवन का आधार हैं, हमारा देश कृषि प्रधान है। नदियों के जल से ही भारत भूमि हरी-भरी है । नदियों के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते, यही कारण है कि हम भारतीय नदियों की पूजा करते हैं | प्रश्न4-आजादी के पचास वर्षों के बाद भी लेखक क्यों दुखी है, उसके मन में कौन से प्रश्न उठ रहे हैं? उत्तर- आजादी के पचास वर्षों बाद भी भारतीयों की सोच में सकारात्मक बदलाव न देखकर लेखक दुखी है। उसके मन में कई प्रश्न उठ रहे हैं-
गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर सचमुच ऐसे दिन होते जब गली-मुहल्ला, गाँव-शहर हर जगह लोग गरमी में भुन-भुन कर त्राहिमाम कर रहे होते, जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ का पहला पखवाड़ा बीत चुका होता पर क्षितिज पर कहीं बादलों की रेख भी नहीं दीखती होती, कुएँ सूखने लगते, नलों में एक तो बहुत कम पानी आता और आता भी तो आधी रात को, वो भी खौलता हुआ पानी हो | शहरों की तुलना में गाँव में और भी हालत खराब थी| जहाँ जुताई होनी चाहिए थी वहाँ खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर हो जाती फिर उसमें पपड़ी पड़कर जमीन फटने लगती, लू ऐसी कि चलते-चलते आदमी गिर पड़े | ढोर-डंगर प्यास के मारे मरने लगते लेकिन बारिश का कहीं नाम निशान नहीं, ऐसे में पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग जब हार जाते तब अंतिम उपाय के रूप में निकलती यह इन्दर सेना | प्रश्न१- वर्षा न होने पर लोगों की क्या स्थिति हो गयी थी ? उत्तर - वर्षा न होने पर गरमी के कारण लोग लू लगने से बेहोश होने लगे | गाँव-शहर सभी जगह पानी का अभाव हो गया| कुएँ सूख गए, खेतों की मिट्टी सूखकर पत्थर के समान कठोर होकर फट गयी| घरों में नलों में पानी बहुत कम आता था | पशु प्यास के मारे मरने लगे थे | प्रश्न२- वर्षा के देवता कौन हैं उनको प्रसन्न करने के लिए क्या उपाय किए जाते थे ? उत्तर -वर्षा के देवता भगवान इन्द्र हैं| उनको प्रसन्न करने के लिए पूजा–पाठ, कथा-विधान कराए जाते थे | ताकि इन्द्र देव प्रसन्न होकर बादलों की सेना भेजकर झमाझम बारिश कराएँ और लोगों के कष्ट दूर हों | प्रश्न३- वर्षा कराने के अंतिम उपाय के रूप में क्या किया जाता था? उत्तर –जब पूजा-पाठ कथा-विधान सब करके लोग हार जाते थे तब अंतिम उपाय के रूप में इन्दर सेना आती थी | नंग-धडंग, कीचड़ में लथपथ, ‘काले मेघा पानी दे पानी दे गुड़धानी दे’ की टेर लगाकर प्यास से सूखते गलों और सूखते खेतों के लिए मेघों को पुकारती हुई टोली बनाकर निकल पड़ती थी| प्रश्न४-आशय स्पष्ट करें – जेठ के दसतपा बीतकर आषाढ़ का पहला पखवाड़ा बीत चुका होता पर क्षितिज में कहीं बादलों की रेख भी नजर नहीं आती | आशय- जेठ का महीना है, भीषण गरमी है| तपते हुए दस दिन बीत कर आषाढ का महीना भी आधा बीत गया, पर पानी के लिए तड़पते, वर्षा की आशा में आसमान की ओर ताकते लोगों को कहीं बादल नजर नहीं आ रहे | 14 पहलवान की ढोलक फ़णीश्वरनाथ रेणु पाठ का सारांश –आंचलिक कथाकार फ़णीश्वरनाथ रेणु की कहानी पहलवान की ढोलक में कहानी के मुख्य पात्र लुट्टन के माता-पिता का देहांत उसके बचपन में ही हो गया था | अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया | उसकी सास को गाँव वाले सताते थे | लोगों से बदला लेने के लिए कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर कसरत करके लुट्टन पहलवान बन गया | एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला देखने गया जहाँ ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँवपेंच देखकर उसने जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को चुनौती दे दी | ढोल की आवाज से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दाँव लगाकर चाँद सिंह को पटककर हरा दिया और राज पहलवान बन गया | उसकी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गयी| १५ वर्षों तक पहलवान अजेय बना रहा| उसके दो पुत्र थे| लुट्टन ने दोनों बेटों को भी पहलवानी के गुर सिखाए| राजा की मृत्यु के बाद नए राजकुमार ने गद्दी संभाली। राजकुमार को घोड़ों की रेस का शौक था । मैनेजर ने नये राजा को भड़काया, पहलवान और उसके दोनों बेटों के भोजनखर्च को भयानक और फ़िजूलखर्च बताया, फ़लस्वरूप नए राजा ने कुश्ती को बंद करवा दिया और पहलवान लुट्टनसिंह को उसके दोनों बेटों के साथ महल से निकाल दिया। राजदरबार से निकाल दिए जाने के बाद लुट्टन सिंह अपने दोनों बेटों के साथ गाँव में झोपड़ी बनाकर रहने लगा और गाँव के लड़कों को कुश्ती सिखाने लगा| लुट्टन का स्कूल ज्यादा दिन नहीं चला और जीविकोपार्जन के लिए उसके दोनों बेटों को मजदूरी करनी पड़ी| इसी दौरान गाँव में अकाल और महामारी के कारण प्रतिदिन लाशें उठने लगी| पहलवान महामारी से डरे हुए लोगों को ढोलक बजाकर बीमारी से लड़ने की संजीवनी ताकत देता था| एक दिन पहलवान के दोनों बेटे भी महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बंधा रहा था | इस घटना के चार-पाँच दिन बाद पहलवान की भी मौत हो जाती है| पहलवान की ढोलक, व्यवस्था के बदलने के साथ लोक कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने की कहानी है। इस कहानी में लुट्टन नाम के पहलवान की हिम्मत और जिजीविषा का वर्णन किया गया है। भूख और महामारी, अजेय लुट्टन की पहलवानी को फ़टे ढोल में बदल देते हैं। इस करुण त्रासदी में पहलवान लुट्टन कई सवाल छोड़ जाता है कि कला का कोई स्वतंत्र अस्तित्व है या कला केवल व्यवस्था की मोहताज है? प्रश्न1- लुट्टन को पहलवान बनने की प्रेरणा कैसे मिली ? उत्तर- लुट्टन जब नौ साल का था तो उसके माता-पिता का देहांत हो गया था | सौभाग्य से उसकी शादी हो चुकी थी| अनाथ लुट्टन को उसकी विधवा सास ने पाल-पोसकर बड़ा किया | उसकी सास को गाँव वाले परेशान करते थे| लोगों से बदला लेने के लिए उसने पहलवान बनने की ठानी| धारोष्ण दूध पीकर, कसरत कर उसने अपना बदन गठीला और ताकतवर बना लिया | कुश्ती के दाँवपेंच सीखकर लुट्टन पहलवान बन गया | प्रश्न2- रात के भयानक सन्नाटे में लुट्टन की ढोलक क्या करिश्मा करती थी? उत्तर- रात के भयानक सन्नाटे मेंलुट्टन की ढोलक महामारी से जूझते लोगों को हिम्मत बँधाती थी | ढोलक की आवाज से रात की विभीषिका और सन्नाटा कम होता था| महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था और वे अपनी पीड़ा भूल खुशी-खुशी मौत को गले लगा लेते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, बीमार-मृतप्राय गाँववालों की नसों में संजीवनी शक्ति को भर बीमारी से लड़ने की प्रेरणा देती थी। प्रश्न3- लुट्टन ने सर्वाधिक हिम्मत कब दिखाई ? उत्तर- लुट्टन सिंह ने सर्वाधिक हिम्मत तब दिखाई जब दोनों बेटों की मृत्यु पर वह रोया नहीं बल्कि हिम्मत से काम लेकर अकेले उनका अंतिम संस्कार किया| यही नहीं, जिस दिन पहलवान के दोनों बेटे महामारी की चपेट में आकर मर गए पर उस रात को भी पहलवान ढोलक बजाकर लोगों को हिम्मत बँधा रहा था| श्यामनगर के दंगल में पूरा जनसमुदाय चाँद सिंह के पक्ष में था चाँद सिंह को हराते समय लुट्टन ने हिम्मत दिखाई और बिना हताश हुए दंगल में चाँद सिंह को चित कर दिया | प्रश्न4- लुट्टन सिंह राज पहलवान कैसे बना? उत्तर- श्यामनगर के राजा कुश्ती के शौकीन थे। उन्होंने दंगल का आयोजन किया। पहलवान लुट्टन सिंह भी दंगल देखने पहुँचा । चांदसिंह नामक पहलवान जो शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध था, कोई भी पहलवान उससे भिड़ने की हिम्मत नहीं करता था। चाँदसिंह अखाड़े में अकेला गरज रहा था। लुट्टन सिंह ने चाँदसिंह को चुनौती दे दी और चाँदसिंह से भिड़ गया।ढ़ोल की आवाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया।उसने चाँदसिंह को चारों खाने चित कर दिया। राजासाहब ने लुट्टन की वीरता से प्रभावित होकर उसे राजपहलवान बना दिया। प्रश्न5- पहलवान की अंतिम इच्छा क्या थी ? उत्तर- पहलवान की अंतिम इच्छा थी कि उसे चिता पर पेट के बल लिटाया जाए क्योंकि वह जिंदगी में कभी चित नहीं हुआ था| उसकी दूसरी इच्छा थी कि उसकी चिता को आग देते समय ढोल अवश्य बजाया जाए | प्रश्न6- ढोल की आवाज और लुट्टन के में दाँवपेंच संबंध बताइए- उत्तर- ढोल की आवाज और लुट्टन के दाँवपेंच में संबंध -
गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधित प्रश्नोत्तर अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी | निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को अपने हृदय में ही बल पूर्वक दबाने की चेष्टा कर रही थी | आकाश में तारे चमक रहे थे | पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं| आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी | अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे | सियारों का क्रंदन और पेचक की डरावनी आवाज रात की निस्तब्धता को भंग करती थी | गाँव की झोपडियों से कराहने और कै करने की आवाज, हरे राम हे भगवान की टेर सुनाई पड़ती थी| बच्चे भी निर्बल कंठों से माँ –माँ पुकारकर रो पड़ते थे |
15 चार्ली चैप्लिन यानी हम सब लेखक-विष्णु खरे पाठ का सारांश –चार्ली चैप्लिन ने हास्य कलाकार के रूप में पूरी दुनिया के बहुत बड़े दर्शक वर्ग को हँसाया है | उनकी फिल्मों ने फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाने के साथ-साथ दशकों की वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ा | चार्ली ने कला में बुद्धि की अपेक्षा भावना को महत्त्व दिया है | बचपन के संघर्षों ने चार्ली के भावी फिल्मों की भूमि तैयार कर दी थी| भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र में करुणा का हास्य में परिवर्तन भारतीय परम्परा में नहीं मिलता लेकिन चार्ली एक ऐसा जादुई व्यक्तित्व है जो हर देश, संस्कृति और सभ्यता को अपना सा लगता हैं| भारतीय जनता ने भी उन्हें सहज भाव से स्वीकार किया है| स्वयं पर हँसना चार्ली ने ही सिखाया| भारतीय सिनेमा जगत के सुप्रसिद्ध कलाकार राजकपूर को चार्ली का भारतीयकरण कहा गया है | चार्ली की अधिकांश फ़िल्में मूक हैं इसलिए उन्हें अधिक मानवीय होना पड़ा | पाठ में हास्य फिल्मों के महान अभिनेता ‘चार्ली चैप्लिन’ की जादुई विशेषताओं का उल्लेख किया गया है जिसमें उसने करुणा और हास्य में सामंजस्य स्थापित कर फ़िल्मों को सार्वभौमिक रूप प्रदान किया। प्रश्न१ -चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली मुख्य घटनाएँ कौन सी थी ? उत्तर- चार्ली के जीवन में दो ऐसी घटनाएँ घटीं जिन्होंने उनके भावी जीवन पर बहुत प्रभाव डाला | पहली घटना - जब चार्ली बीमार थे उनकी माँ उन्हें ईसा मसीह की जीवनी पढ़कर सुना रही थी | ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसंग तक आते-आते माँ-बेटा दोनों ही रोने लगे| इस घटना ने चार्ली को स्नेह, करुणा और मानवता जैसे उच्च जीवन मूल्य दिए | दूसरी घटना है– बालक चार्ली कसाईखाने के पास रहता था| वहाँ सैकड़ों जानवरों को रोज मारा जाता था| एक दिन एक भेड़ वहाँ से भाग निकली| भेड़ को पकड़ने की कोशिश में कसाई कई बार फिसला| जिसे देखकर लोग हंसने लगे, ठहाके लगाने लगे| जब भेड़ को कसाई ने पकड़ लिया तो बालक चार्ली रोने लगा| इस घटना ने उसके भावी फिल्मों में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्वों की भूमिका तय कर दी | प्रश्न२ – आशय स्पष्ट कीजिए– चैप्लिन ने सिर्फ फिल्मकला को ही लोकतांत्रिक नही बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ा| उत्तर- लोकतांत्रिक बनाने का अर्थ है कि फिल्म कला को सभी के लिए लोकप्रिय बनाना और वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को तोड़ने का आशय है- समाज में प्रचलित अमीर-गरीब, वर्ण, जातिधर्म के भेदभाव को समाप्त करना |चैप्लिन का चमत्कार यह है कि उन्होंने फिल्मकला को बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों तक पहुँचाया| उनकी फिल्मों ने समय भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघ कर सार्वभौमिक लोकप्रियता हासिल की | चार्ली ने यह सिद्ध कर दिया कि कला स्वतन्त्र होती है, अपने सिद्धांत स्वयं बनाती है | प्रश्न३– चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में क्यों नहीं आता? उत्तर- चार्ली चैप्लिन की फिल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र की परिधि में नहीं आताक्योंकि भारतीय रस-सिद्धांत में करुणा और हास्य का मेल नहीं दिखाया जाता क्योंकि भारतीय सौंदर्यशास्त्र में करुणरस और हास्य रस को परस्पर विरोधी माना गया है अर्थात जहां करुणा है वहाँ हास्य नहीं हो सकता। भारत में स्वयं पर हँसने की परंपरा नहीं है परंतु चार्ली के पात्र अपने पर हँसते–हँसाते हैं। चार्ली की फ़िल्मों के दृश्य हँसाते-हँसाते रुला देते हैं तो कभी करुण दृश्य के बाद अचानक ही हँसने पर मजबूर कर देते हैं। प्रश्न४– चार्ली के फिल्मों की विशेषताएँ बताइए | उत्तर- चार्ली की फ़िल्मों में हास्य और करुणा का अद्भुत सामंजस्य है। उनकी फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग बहुत कम है। चार्ली की फ़िल्मों में बुद्धि की अपेक्षा भावना का महत्त्व अधिक है। उनकी फ़िल्मों में सार्वभौमिकता है। चार्ली किसी भी संस्कृति को विदेशी नही लगते। चार्ली सबको अपने लगते है। चार्ली ने फ़िल्मों को लोकतांत्रिक बनाया और फ़िल्मों में वर्ग तथावर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। अपनी फिल्मों में चार्ली सदैव चिर युवा दिखता है। गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण-संबंधी प्रश्नोत्तर गद्यांश संकेत –चार्ली चैप्लिन यानी हम सब (पृष्ठ १२० ) यदि यह वर्ष चैप्लिन की ..........................................काफी कुछ कहा जाएगा | प्रश्न (क)-विकासशील देशों में चैप्लिन क्यों मशहूर हो रहे हैं? उत्तर - विकासशील देशों में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, लोगों को उनकी फिल्मों को देखने का अवसर मिल रहा है |एक बहुत बड़ा वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी सुधारते और जूते खाने की कोशिश करते देख रहा है, इसीलिए चार्ली विकासशील देशों में लोकप्रिय हो रहे हैं | (ख)- पश्चिम में चार्ली का पुनर्जीवन कैसे होता रहता है ? उत्तर - पश्चिम में चार्ली की फिल्मों का प्रदर्शन होता रहता है| उनकी कला से प्रेरणा पाकर हास्य फ़िल्में बनती रहती हैं | उनके द्वारा निभाए किरदारों की नकल, अन्य कलाकार करते हैं | पश्चिम में चार्ली का पुनर्जीवन होता रहता है| (ग)- चार्ली को लोग बुढ़ापे तक क्यों याद रखेंगे ? उत्तर –हास्य कलाकार के रूप में लोग चार्ली को बुढ़ापे तक याद रखेंगे क्योंकि उनकी कला समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघकर लाखों लोगों को हँसा रही है| (घ)- चार्ली की फिल्मों के बारे में काफी कुछ कहा जाना क्यों बाक़ी है ? उत्तर –चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में या इस्तेमाल न की गयी रीलें मिली हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता था | चार्ली की भावनाप्रधान हास्य फिल्मों ने कला के नए प्रतिमान स्थापित किए हैं अत: चार्ली की फिल्मों के बारे में अभी काफी कुछ कहा जाना बाक़ी है| 16 नमक लेखिका - रजिया सज्जाद जहीर सारांश -‘नमक’भारत-पाक विभाजन पर लिखित मार्मिक कहानी है | विस्थापित हुए लोगों में अपने–अपने जन्म स्थानों के प्रति आज भी लगाव है| धार्मिक आधार पर बनी राष्ट्र-राज्यों की सीमा-रेखाएँ उनके अंतर्मन को अलग नहीं कर पाई हैं | भारत में रहने वाली सिख बीवी लाहौर को अपना वतन मानती है और भारतीय कस्टम अधिकारी, ढाका के नारियल पानी को यादकर उसे सर्वश्रेष्ठ बताता है। दोनो देशों के नागरिकों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद आज भी कायम है इसीलिए सफ़िया भारत में रहने वाली अपनी मुँहबोली माँ, सिख बीवी के लिए लाहौरी नमक लाने के लिए कस्टम और कानून की परवाह नहीं करती। प्रश्न1- ‘नमक’ पाठ के आधार पर बताइए कि सफिया और उसके भाई के विचारों में क्या अंतर था? उत्तर- १-सफिया भावनाओं को बहुतमहत्त्व देती है पर उसका भाई बौद्धिक प्रवृत्ति का है, उसकी दृष्टि में कानून भावनाओं से ऊपर है| २-सफिया मानवीय संबंधों को बहुत महत्त्व देती है जबकि उसका भाई अलगाववादी विचारधारा का है, हिस्से-बखरे की बात करता है | ३-सफिया का भाई कहता है कि अदीबों(साहित्यकार) का दिमाग घूमा हुआ होता है जबकि सफिया जो स्वयं अदीब है उसका मानना है कि अगर सभी लोगों का दिमाग अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो दुनिया कुछ बेहतर हो जाती | प्रश्न२- नमक ले जाते समय सफ़िया के मन में क्या दुविधा थी ? उत्तर-सफिया सैयद मुसलमान थी जो हर हाल में अपना वायदा निभाते हैं| पाकिस्तान से लाहौरी नमक ले जाकर वह अपना वायदा पूरा करना चाहती थी परन्तु जब उसे पता चला कि कस्टम के नियमों के अनुसार सीमापार नमक ले जाना वर्जित है तो वह दुविधा में पड़ गई | सफ़िया का द्वंद्व यह था कि वह अपनी सिख माँ के लिए नमक, कस्टम अधिकारियों को बताकरले जाए या छिपाकर| प्रश्न३- पाठ के आधार पर सफिया की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए | उत्तर संकेत –
प्रश्न ४- ‘नमक’ पाठ में आए किरदारों के माध्यम से स्पष्ट कीजिए कि आज भी भारत और पाकिस्तान की जनता के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है | उत्तर – भले ही राजनीतिक और धार्मिक आधार पर भारत और पाकिस्तान को भौगोलिक रूप से विभाजित कर दिया गया है लेकिन दोनों देशों के लोगों के हृदय में आज भी पारस्परिक भाईचारा, सौहार्द्र, स्नेह और सहानुभूति विद्यमान है | राजनीतिक तौर पर भले ही संबंध तनावपूर्ण हों पर सामाजिक तौर पर आज भी जनता के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ है | अमृतसर में रहने वाली सिख बीबी लाहौर को अपना वतन कहती है और लाहौरी नमक का स्वाद नहीं भुला पाती | पाकिस्तान का कस्टम अधिकारी नमक की पुड़िया सफिया को वापस देते हुए कहता है ”जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहना |” भारतीय सीमा पर तैनात कस्टम अधिकारी ढाका की जमीन को और वहाँ के पानी के स्वाद को नहीं भूल पाता | गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर गद्यांश संकेत- पाठ– नमक (पृष्ठ १३४) सफिया कस्टम के जंगले से ...........................दोनों के हाथों में थी |
17 शिरीष के फूल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सारांश –‘आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी’ शिरीष को अद्भुत अवधूत मानते हैं, क्योंकि संन्यासी की भाँति वह सुख-दुख की चिंता नहीं करता। गर्मी, लू, वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा रहता है। शिरीष के फ़ूल के माध्यम से मनुष्य की अजेय जिजीविषा, धैर्यशीलता और कर्तव्यनिष्ठ बने रहने के मानवीय मूल्यों को स्थापित किया गया है।लेखक ने शिरीष के कोमल फूलों और कठोर फलों के द्वारा स्पष्ट किया है कि हृदय की कोमलता बचाने के लिए कभी-कभी व्यवहार की कठोरता भी आवश्यक हो जाती है| महान कवि कालिदास और कबीर भी शिरीष की तरह बेपरवाह, अनासक्त और सरस थे तभी उन्होंने इतनी सुन्दर रचनाएँ संसार को दीं| गाँधीजी के व्यक्तित्व में भी कोमलता और कठोरता का अद्भुत संगम था | लेखक सोचता है कि हमारे देश में जो मार-काट, अग्निदाह, लूट-पाट, खून-खच्चर का बवंडर है, क्या वह देश को स्थिर नहीं रहने देगा? गुलामी, अशांति और विरोधी वातावरण के बीच अपने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए गाँधीजी जी स्थिर रह सके थे तो देश भी रह सकता है। जीने की प्रबल अभिलाषा के कारण विषम परिस्थितयों मे भी यदि शिरीष खिल सकता है तो हमारा देश भी विषम परिस्थितियों में स्थिर रह कर विकास कर सकता है। प्रश्न1-सिद्ध कीजिए कि शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है ? उत्तर- शिरीष कालजयी अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है| जब पृथ्वी अग्नि के समान तप रही होती है वह तब भी कोमल फूलों से लदा लहलहाता रहता है|बाहरी गरमी, धूप, वर्षा आँधी, लू उसे प्रभावित नहीं करती। इतना ही नहीं वह लंबे समय तक खिला रहता है | शिरीष विपरीत परिस्थितियों में भी धैर्यशील रहने तथा अपनी अजेय जिजीविषा के साथ निस्पृह भाव से प्रचंड गरमी में भी अविचल खड़ा रहता है। प्रश्न२-आरग्वध (अमलतास) की तुलना शिरीष से क्यों नहीं की जा सकती ? उत्तर- शिरीष के फूल भयंकर गरमी में खिलते हैं और आषाढ़ तक खिलते रहते हैं जबकि अमलतास का फूल केवल पन्द्रह-बीस दिनों के लिए खिलता है | उसके बाद अमलतास के फूल झड़ जाते हैं और पेड़ फिर से ठूँठ का ठूँठ हो जाता है | अमलतास अल्पजीवी है | विपरीत परिस्थितियों को झेलता हुआ ऊष्ण वातावरण को हँसकर झेलता हुआ शिरीष दीर्घजीवी रहता है | यही कारण है कि शिरीष की तुलना अमलतास से नहीं की जा सकती | प्रश्न३-शिरीष के फलों को राजनेताओं का रूपक क्यों दिया गया है? उत्तर- शिरीष के फल उन बूढ़े, ढीठ और पुराने राजनेताओं के प्रतीक हैं जो अपनी कुर्सी नहीं छोड़ना चाहते | अपनी अधिकार-लिप्सा के लिए नए युवा नेताओं को आगे नहीं आने देते | शिरीष के नए फलों को जबरदस्ती पुराने फलों को धकियाना पड़ता है | राजनीति में भी नई युवा पीढ़ी, पुरानी पीढ़ी को हराकर स्वयं सत्ता सँभाल लेती है | प्रश्न४- काल देवता की मार से बचने का क्या उपाय बताया गया है? उत्तर- काल देवता कि मार से बचने का अर्थ है– मृत्यु से बचना | इसका एकमात्र उपाय यह है कि मनुष्य स्थिर न हो| गतिशील, परिवर्तनशील रहे | लेखक के अनुसार जिनकी चेतना सदा ऊर्ध्वमुखी (आध्यात्म की ओर) रहती है, वे टिक जाते हैं | प्रश्न५- गाँधीजी और शिरीष की समानता प्रकट कीजिए | उत्तर- जिस प्रकार शिरीष चिलचिलाती धूप, लू, वर्षा और आँधी में भी अविचल खड़ा रहता है, अनासक्त रहकर अपने वातावरण से रस खींचकर सरस, कोमल बना रहता है, उसी प्रकार गाँधी जी ने भी अपनी आँखों के सामने आजादी के संग्राम में अन्याय, भेदभाव और हिंसा को झेला | उनके कोमल मन में एक ओर निरीह जनता के प्रति असीम करुणा जागी वहीं वे अन्यायी शासन के विरोध में डटकर खड़े हो गए | गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर गद्यांश संकेत- पाठ – शिरीष के फूल (पृष्ठ १४७) कालिदास सौंदर्य के ..............................................................................................................वह इशारा है |
18श्रम-विभाजन और जाति-प्रथा डॉ० भीमराव अंबेडकर सारांश – इस पाठ में लेखक ने जातिवाद के आधार पर किए जाने वाले भेदभाव को सभ्य समाज के लिए हानिकारक बताया है | जाति आधारित श्रम विभाजन को अस्वाभाविक और मानवता विरोधी बताया गया है। यह सामाजिक भेदभाव को बढ़ाता है। जातिप्रथा आधारित श्रम विभाजन में व्यक्ति की रुचि को महत्त्व नहीं दिया जाता फलस्वरूप विवशता के साथ अपनाए गए पेशे में कार्य-कुशलता नहीं आ पाती | लापरवाही से किए गए कार्य में गुणवत्ता नहीं आ पाती और आर्थिक विकास बुरी तरह प्रभावित होता है| आदर्श समाज की नींव समता, स्वतंत्रता और बंधुत्व पर टिकी होती है। समाज के सभी सदस्यों से अधिकतम उपयोगिता प्राप्त करने के लिए सबको अपनी क्षमता को विकसित करने तथा रुचि के अनुरूप व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए| राजनीतिज्ञ को अपने व्यवहार में एक व्यवहार्य सिद्धांत की आवश्यकता रहती है और यह व्यवहार्य सिद्धांत यही होता है कि सब मनुष्यों के साथ समान व्यवहार किया जाए। प्रश्न1-डॉ० भीमराव अंबेडकर जातिप्रथा को श्रम-विभाजन का ही रूप क्यों नहीं मानते हैं ? उत्तर – १- क्योंकि यह विभाजन अस्वाभाविक है | २- यह मनुष्य की रुचि पर आधारित नहीं है | ३- व्यक्ति की क्षमताओं की उपेक्षा की जाती है | ४- व्यक्ति के जन्म से पहले ही उसका पेशा निर्धारित कर दिया जाता है | ५- व्यक्ति को अपना व्यवसाय बदलने की अनुमति नहीं देती | प्रश्न२- दासता की व्यापक परिभाषा दीजिए | उत्तर – दासता केवल कानूनी पराधीनता नहीं है| सामाजिक दासता की स्थिति में कुछ व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा तय किए गए व्यवहार और कर्तव्यों का पालन करने को विवश होना पड़ता है | अपनी इच्छा के विरुद्ध पैतृक पेशे अपनाने पड़ते हैं | प्रश्न३- मनुष्य की क्षमता किन बातों पर निर्भर रहती है ? उत्तर –मनुष्य की क्षमता मुख्यत: तीन बातों पर निर्भर रहती है-
प्रश्न४- समता का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि राजनीतिज्ञ पुरूष के संदर्भ में समता को कैसे स्पष्ट किया गया है ? जाति, धर्म, संप्रदाय से ऊपर उठकर मानवता अर्थात् मानव मात्र के प्रति समान व्यवहार ही समता है। राजनेता के पास असंख्य लोग आते हैं, उसके पास पर्याप्त जानकारी नहीं होती सबकी सामाजिक पृष्ठभूमि क्षमताएँ, आवश्यकताएँ जान पाना उसके लिए संभव नहीं होता अतः उसे समता और मानवता के आधार पर व्यवहार के प्रयास करने चाहिए । गद्यांश-आधारित अर्थग्रहण संबंधित प्रश्नोत्तर गद्यांश संकेत-पाठ श्रम विभाजन और जाति प्रथा (पृष्ठ १५३) यह विडम्बना.......................................................................................................................बना देती है | प्रश्न १-श्रम बिभाजन किसे कहते हैं ? उत्तर: श्रम विभाजन का अर्थ है– मानवोपयोगी कार्यों का वर्गीकरण करना| प्रत्येक कार्य को कुशलता से करने के लिए योग्यता के अनुसार विभिन्न कामों को आपस में बाँट लेना | कर्म और मानव-क्षमता पर आधारित यह विभाजन सभ्य समाज के लिए आवश्यक है | प्रश्न २ - श्रम विभाजन और श्रमिक-विभाजन का अंतर स्पष्ट कीजिए | उत्तर- श्रम विभाजन में क्षमता और कार्य-कुशलता के आधार पर काम का बँटवारा होता है, जबकि श्रमिक विभाजन में लोगों को जन्म के आधार पर बाँटकर पैतृक पेशे को अपनाने के लिए बाध्य किया जाता है| श्रम-विभाजन में व्यक्ति अपनी रुचि के अनुरूप व्यवसाय का चयन करता है | श्रमिक-विभाजन में व्यवसाय का चयन और व्यवसाय-परिवर्तन की भी अनुमति नहीं होती, जिससे समाज में ऊँच नीच का भेदभाव पैदा करता है, यह अस्वाभाविक विभाजन है | प्रश्न ३ –लेखक ने किस बात को विडम्बना कहा है ? उत्तर : लेखक कहते हैं कि आज के वैज्ञानिक युग में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो जातिवाद का समर्थन करते हैं और उसको सभ्य समाज के लिए उचित मानकर उसका पोषण करते हैं| यह बात आधुनिक सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज के लिए विडम्बना है | प्रश्न ४ : भारत में ऎसी कौन-सी व्यवस्था है जो पूरे विश्व में और कहीं नहीं है ? उत्तर: लेखक के अनुसार जन्म के आधार पर किसी का पेशा तय कर देना, जीवनभर एक ही पेशे से बँधे रहना, जाति के आधार पर ऊँच-नीच का भेदभाव करना तथा बेरोजगारी तथा भुखमरी की स्थिति में भी पेशा बदलने की अनुमति न होना ऐसी व्यवस्था है जो विश्व में कहीं नहीं है | पूरक पुस्तक वितान भाग -2 कुल अंक - 15 प्रश्न 12-पाठों की विषयवस्तु पर आधारित तीन में से दो बोधात्मक प्रश्न (3+3)=6 प्रश्न 13-विचार/संदेश पर आधारित तीन में से दो लघूत्तरात्मक प्रश्न (2+2)=4 प्रश्न 14- विषयवस्तु पर आधारित दो में से एक निबंधात्मक प्रश्न 5 सामान्य निर्देश
पाठ 1सिल्वर वैडिंग – मनोहर श्याम जोशी पाठ का सार-सिल्वर वेडिंग’ कहानी की रचना मनोहर श्याम जोशी ने की है| इस पाठ के माध्यम से पीढ़ी के अंतराल का मार्मिक चित्रण किया गया है| आधुनिकता के दौर में, यशोधर बाबूपरंपरागत मूल्यों को हर हाल में जीवित रखना चाहते हैं| उनका उसूलपसंद होना दफ्तर एवम घर के लोगों के लिए सरदर्द बन गया था | यशोधर बाबू को दिल्ली में अपने पाँव जमाने में किशनदा ने मदद की थी, अतः वे उनके आदर्श बन गए| दफ्तर में विवाह की पच्चीसवीं सालगिरह के दिन ,दफ्तर के कर्मचारी, मेनन और चड्ढा उनसे जलपान के लिए पैसे माँगते हैं | जो वे बड़े अनमने ढंग से देते हैं क्योंकि उन्हें फिजूलखर्ची पसंद नहीं |यशोधर बाबू के तीन बेटे हैं| बड़ा बेटा भूषण, विज्ञापन कम्पनी में काम करता है| दूसरा बेटा आई. ए. एस. की तैयारी कर रहा है और तीसरा छात्रवृति के साथ अमेरिका जा चुका है| बेटी भी डाक्टरी की पढ़ाईं के लिए अमेरिका जाना चाहती है, वह विवाह हेतु किसी भी वर को पसंद नहीं करती| यशोधर बाबूबच्चों की तरक्की से खुश हैं किंतु परंपरागत संस्कारों के कारण वे दुविधा में हैं| उनकी पत्नी ने स्वयं को बच्चों की सोच के साथ ढाल लिया है| आधुनिक न होते हुए भी, बच्चों के ज़ोर देने पर वे अधिक माडर्न बन गई है| बच्चे घर पर सिल्वर वेडिंग की पार्टी रखते हैं, जो यशोधर बाबू के उसूलों के खिलाफ था| उनका बेटा उन्हें ड्रेसिंग गाउन भेंट करता है तथा सुबह दूध लेने जाते समय उसे ही पहन कर जाने को कहता है, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता| बेटे का ज़रूरत से ज़्यादा तनख्वाह पाना, तनख्वाह की रकम स्वयं खर्च करना, उनसे किसी भी बात पर सलाह न माँगना और दूध लाने का जिम्मा स्वयं न लेकर उन्हें ड्रेसिंग गाउन पहनकर दूध लेने जाने की बात कहना जैसी बातें, यशोधर बाबू को बुरी लगती है| जीवन के इस मोड़ पर वे स्वयं को अपने उसूलों के साथ अकेले पाते हैं | प्रश्नोत्तर - प्रश्न १. अपने घर और विद्यालय के आस-पास हो रहे उन बदलावों के बारे में लिखें जो सुविधाजनक और आधुनिक होते हुए भी बुजुर्गों को अच्छे नहीं लगते। अच्छा न लगने के क्या कारण हो सकते हैं ? उत्तरः आधुनिक युग परिवर्तनशील एवं अधिक सुविधाजनक है। आज के युवा,आधुनिकता और परिवर्तनशीलता को महत्त्व देते हैं इसीलिए वे नई तकनीक और फैशन की ओर आकर्षित होते हैं। वे तत्काल नयी जानकारियाँ चाहते हैं, जिसके लिए उनके पास कम्प्यूटर, इन्टरनेट एवं मोबाइल जैसे आधुनिक तकनीकी साधन हैं। इनके माध्यम से वे कम समय में ज्यादा जानकारी एकत्र कर लेते हैं। घर से विद्यालय जाने के लिए अब उनके पास बढ़िया साईकिलें एवं मोटर साईकिलें हैं। आज युवा लड़के और लड़कियों के बीच का अन्तराल काफी कम हो गया है। पुराने जमाने में लड़कियाँ-लड़कों के साथ पढ़ना और मिलना-जुलना ठीक नहीं माना जाता था जैसे आज के परिवेश में है। युवा लड़कों और लड़कियों द्वारा अंग प्रदर्शन आज आम बात हो गई है। वे एक साथ देर रात तक पार्टियाँ करते हैं। इन्टरनेट के माध्यम से असभ्य जानकारियाँ प्राप्त करते हैं। ये सारी बातें उन्हें आधुनिक एवं सुविधाजनक लगती हैं। दूसरी ओर इस तरह की आधुनिकताबुज़र्गों को रास नहीं आतीक्योंकि जब वे युवा थे,उस समय संचार के साधनों की कमी थी। पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण वे युवावस्थामें अपनी भावनाओं को काबू में रखते थे और अधिक जिम्मेदार होते थे। अपने से बड़ों का आदर करते थे और परंपराओं के अनुसार चलते थे। आधुनिक परिवेश के युवा बड़े-बूढ़ों के साथ बहुत कम समय व्यतीत करते हैं इसलिए सोच एवं दृष्टिकोण में अधिक अन्तर आ गया है। इसी अन्तर को ‘पीढ़ी का अन्तर’ कहते हैं। युवा पीढ़ी की यही नई सोच बुजुर्गों को अच्छी नहीं लगती। २. यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ ढल सकने में सफल होती है,लेकिन यशोधर बाबू असफल रहते हैं,ऐसा क्यों ? उत्तरःयशोधर बाबू अपने आदर्श किशनदा से अधिक प्रभावित हैं और आधुनिक परिवेश में बदलते हुए जीवन-मूल्यों और संस्कारों के विरूद्ध हैं। जबकि उनकी पत्नीअपने बच्चों के साथ खड़ी दिखाई देती हैं। वह अपने बच्चों के आधुनिक दृष्टिकोण से प्रभावित हैं। इसलिए यशोधर बाबू की पत्नी समय के साथ परिवर्तित होती है, लेकिन यशोधर बाबू अभी भी किशनदा के संस्कारों और परंपराओं से चिपके हुए हैं। ३.’सिल्वर वैडिंग’कहानी के आधार पर पीढ़ी के अंतराल से होने वाले पारिवारिक अलगाव पर अपने विचार प्रकट कीजिए। उत्तरः सांस्कृतिक संरक्षण के लिए स्वस्थ परंपराओं की सुरक्षा आवश्यक है, किंतु बदलते समय और परिवेश से सामंजस्य की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए, अन्यथा सिल्वर वैडिंग के पात्रों की तरह बिखराव होने लगता है। ४.’सिल्वर वैंडिग’कहानी को ध्यान में रखते हुए परंपराओं और सांस्कृतिक संरक्षकों की वर्तमान में उपादेयता पर अपने विचार प्रकट कीजिए। उत्तरःपरंपराओं और संस्कृति से ही किसी देश की पहचान कायम रहती है। सादगी से जीकर गृहस्थी को बचाया जा सकता है। यदि ऐसा न होता तो शायद यशोधर बाबू की संतानें पढ़-लिखकर योग्य न बनतीं । ५.“सिल्वर वैडिंगके कथानायक यशोधर बाबू एक आदर्श व्यक्ति हैं और नई पीढ़ी द्वारा उनके विचारों को अपनाना ही उचित है|”इस कथन के पक्ष-विपक्ष में तर्क दीजिए। उत्तरः- पक्षः नयी पीढ़ी के युवा उनकी सादगी और व्यक्तित्व के कुछेक प्रेरक पहलुओं को लेकर सफल व संस्कारी नागरिक बन सकते हैं अन्यथा वे अपनी पहचान खो बैठेंगे। विपक्षःपुरानी रूढ़ियों को छोड़कर ही नए समाज व नई पीढ़ी के साथ सामंजस्य बिठाया जा सकता हैअन्यथा विलगाव सुनिश्चित है। ६ . सिल्वर वैडिंग कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए। उत्तरः - संकेत-बिंदु-पीढ़ी के अन्तराल से पैदा हुई बिखराव की पीड़ा। ७ . किशनदा की कौन-सी छवि यशोधर बाबू के मन में बसी हुई थी? संकेत बिन्दु- 1.उनकी दफ्तर में विभिन्न रूपों की छवि, 2.सैर पर निकलने वाली छवि, 3.एक आदर्शवादी व्यक्ति के रूप में , 4.परोपकारी व्यक्ति | ८ .‘सिल्वर वैडिंग’कहानी का प्रमुख पात्र बार-बार किशनदा को क्यों याद करता है?इसे आप क्या मानते हैं उसकी सामर्थ्य या कमजोरी?औरक्यों ? उत्तरः सामर्थ्य मानते हैं, वे उनके प्रेरक थे, उनसे अलग अपने को सोचना भी यशोधर बाबू के लिए मुश्किल था। जीवन का प्रेरणा-स्रोत तो सदा शक्ति एवं सामर्थ्यका सर्जक होता है। ९ . पाठ में ‘जो हुआ होगा’ वाक्य की कितनी अर्थ छवियाँ आप खोज सकते हैं? उत्तरः यशोधर बाबू यही विचार करते हैं कि जिनके बाल-बच्चे ही नहीं होते,वे व्यक्ति अकेलेपन के कारण स्वस्थ दिखने के बाद भी बीमार-से हो जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है| जिसप्रकार यशोधर बाबू अपने आपको परिवार से कटा और अकेला पाते हैं उसीप्रकार अकेलेपन से ग्रस्तहोकर उनकी मृत्यु हुई होगी। यह भी कारण हो सकता है कि उनकी बिरादरी से घोर उपेक्षा मिली, इस कारण वे सूख-सूख कर मर गए | किशनदा की मृत्यु के सही कारणों का पता नहीं चल सका। बस यशोधर बाबू यही सोचते रह गए कि किशनदा की मृत्यु कैसे हुई?जिसका उत्तर किसी के पास नहीं था। १० .वर्तमान समय में परिवार की संरचना,स्वरूप से जुड़े आपके अनुभव इस कहानी से कहाँ तक सामंजस्य बिठा पाते हैं ? उत्तरः यशोधर बाबू और उनके बच्चों की सोच में पीढ़ीजन्य अंतराल आ गया है। यशोधर संस्कारों से जुड़ना चाहते हैं और संयुक्त परिवार की संवेदनाओं को अनुभव करते हैं जबकि उनके बच्चे अपने आप में जीना चाहते हैं। अतः जरूरत इस बात की है कि यशोधर बाबू को अपने बच्चों की सकारात्मक नई सोच का स्वागत करना चाहिए,परन्तु यह भी अनिवार्य है कि आधुनिक पीढ़ी के युवा भी वर्तमान बेतुके संस्कार और जीवन मूल्यों के प्रति आकर्षित न हों तथा पुरानी पीढी़ की अच्छाइयों को ग्रहण करें। यह शुरूआत दोनों तरफ से होनी चाहिए ताकि एक नए एवं संस्कारी समाज की स्थापना की जा सके। ११ . यशोधर बाबू के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए। उत्तरः1. कर्मठ एवं परिश्रमी –सेक्शन ऑफिसर होने के बावजूद दफ्तर में देर तक काम करते थे | वे अन्य कर्मचारियों से अधिक कार्य करते थे | 2. संवेदनशील- यशोधर बाबू अत्यधिक संवेदनशील थे | वे यह बात स्वीकार नहीं कर पाते कि उनका बेटा उनकी इजाजत लिए बिना ही घर का सोफा सेट आदि खरीद लाता है, उनका साईकिल से दफ्तर जाने पर ऐतराज करता है, उन्हें दूध लेने जाने में असुविधा न हो इसलिए ड्रेसिंग गाउन भेंट करता है| पत्नी उनकी बात न मानकर बच्चों के कहे अनुसार चलती है | बेटी विवाह के बंधन में बंधने से इंकार करती है और उसके वस्त्रों में शालीनता नहीं झलकती | परिवारवालों से तालमेल न बैठने के कारण वे अपना अधिकतर समय घर से बाहर मंदिर में तथा सब्जीमंडी में सब्ज़ी खरीदते बिताते हैं | 3. परंपरावादी- वे परंपरावादी थे |आधुनिक समाज में बदलते समीकरणों को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे इसलिए परिवार के अन्य सदस्यों से उनका तालमेल नहीं बैठ पा रहा था | 4. धार्मिक व्यक्ति-यशोधर बाबू एक धार्मिक व्यक्ति थे| वे अपना अधिकतर समय पूजा-पाठ और मंदिर में बिताते थे | १२ . यशोधर बाबू जैसे लोग समय के साथ ढ़लने में असफल क्यों होते हैं? उत्तरः ऐसे लोग साधारणतया किसी न किसी से प्रभावित होते हैं, जैसे यशोधर बाबू किशन दा से। ये परंपरागत ढर्रे पर चलना पसन्द करते हैं तथा बदलाव पसन्द नहीं करते। अतः समय के साथ ढ़लने में असफल होते हैं। १३ . भरे-पूरे परिवार में यशोधर बाबू स्वयं को अधूरा-सा क्यों अनुभव करते हैं? उत्तरःसंकेत बिन्दु - अपने प्राचीन दायरे से बाहर न निकल सकने के कारण वे स्वयं को अधूरा अनुभव करते हैं। १४.‘‘अभी तुम्हारे अब्बा की इतनी साख है कि सौ रुपए उधार ले सकें।’’ किन परिस्थितियों में यशोधर बाबू को यह कहना पड़ा? उत्तरःसंकेत बिन्दु- पुत्र द्वारा उनके निकट संबंधी की आर्थिक सहायता के लिए मनाही से आहत होकर ऐसा कहना पड़ा। १५. ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के तथ्य का विश्लेषण कीजिए। उत्तरः संकेत बिन्दु - पीढ़ी के अंतराल को उजागर कर, वर्तमान समाज की इस प्रकार की सच्चाई से पर्दा उठाया गया है। १६.अपने बच्चों की तरक्की से खुश होने के बाद भी यशोधर बाबू क्यामहसूस करते हैं? उत्तरः उनके बच्चे गरीब रिश्तेदारों के प्रति उपेक्षा का भाव रखते हैं। उनकी यह खुशहाली अपनों के बीच परायापन पैदा कर रही है, जो उन्हें अच्छा नहीं लगता। १७.आजकल किशनदा जैसी जीवन-शैली अपनाने वाले बहुत कम लोग मिलते हैं, क्यों ? उत्तर: किशन दा जैसे लोग मस्ती से जीते हैं, निःस्वार्थ दूसरों की सहायता करते हैं, जबकि आजकल सभी सहायता के बदले कुछ न कुछ पाने की आशा रखते हैं, बिना कुछ पाने की आशा रखे सहायता करने वाले बिरले ही होते हैं । १८ . यशोधर बाबू के बच्चों की कौन-सी बातें प्रशंसनीय हैं और कौन-सा पक्ष आपत्तिजनक है? उत्तर- प्रशंसनीय बातें- १) महत्वाकांक्षी और प्रगतिशील होना | २)जीवन में उन्नति करना | ३)समय और सामर्थ्य के अनुसार घर में आधुनिक सुविधाएँ जुटाना | आपत्तिजनक बातें - १) व्यवहार, २) पिता, रिश्तेदारों, धर्म और समाज के प्रति नकारात्मक भाव ३) मानवीय सम्बन्धों की गरिमा और संस्कारों में रूचि न लेना | १९.आपकी दृष्टि में(पाठ से अलग) सिल्वर वैडिंग मनाने के और कौन से तरीके हो सकते हैं जो यशोधर बाबू को अच्छे लगते? उत्तरः मंदिर जाकर,परिवार के साथ कहीं घूमने जाकर,पुत्र-पुत्रियों द्वारा माता-पिता को उपहार देकर आदि। २०. सिल्वर वैडिंग में चटाई का लहँगा किसे कहा गया है? उत्तरः यह एक प्रतीकात्मक प्रयोग है जिसे यशोधर बाबू अपनी पत्नी के लिए प्रयोग करते हैं। उनकी पत्नी पुरानी परंपराओं को छोड़ आधुनिकता में ढ़ल गई है, स्वयं को मॉडर्न समझती है, इसलिए यशोधर बाबू ने उन्हें यह नाम दिया है। वे उन्हें ‘शानयल बुढ़िया’ तथा ‘बूढ़ी मुँह मुहाँसे, लोग करें तमासे’ कह कर भी चिढ़ाते हैं। २१. यशोधर बाबू परिवार के बावजूद स्वयं को अधूरा क्यों मानते हैं? उत्तर - यशोधर बाबू पुरानी परंपराओं को माननेवाले हैं, जबकि उनका सारा परिवार आधुनिक विचारधारा का है। पीढ़ीगत अंतराल के कारण परिवार के साथ ताल-मेल न बिठा पाने के कारण वे स्वयं को अधूरा समझते हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास-प्रश्न: 1. दफ्तर में यशोधर बाबू से कर्मचारी क्यों परेशान रहते थे? 2. यशोधर बाबू का अपने बच्चों के साथ कैसा व्यवहार था? 3. दफ्तर के बाद पंत जी क्या-क्या काम करते थे? 4. ऑफिस के साथियों ने यशोधर बाबू को किस बात की बधार्इ्र दी? 5. यशोधर बाबू तकिया कलाम के रूप में किस वाक्य का प्रयोग करते थे?इस तकिया कलाम का उनके व्यक्तित्व तथा कहानी के कथ्य से क्या संबंध है ? 6. पीढ़ी के अंतराल से व्यक्ति अकेला हो जाता है’- स्पष्ट करें। ७. अपने बेटे की बड़ी नौकरी पर यशोधर बाबू को क्या आपत्ति थी ? पाठ 2 जूझ: आनंद यादव पाठ का सार –‘जूझ’ पाठ आनंद यादव द्वारा रचित स्वयं के जीवन–संघर्ष की कहानी है| पढ़ाई पूरी न कर पाने के कारण, उसका मन उसे कचोटता रहता था |दादा ने अपने स्वार्थों के कारण उसकी पढ़ाई छुड़वा दी थी |वह जानता था कि दादा उसे पाठशाला नहीं भेजेंगे | आनंद जीवन में आगे बढ़ना चाहता था | वह जनता था कि खेती से कुछ मिलने वाला नहीं |वह पढ़ेगा-लिखेगा तो बढ़िया-सी नौकरी मिल जाएगी | आनंद ने एक योजना बनाई कि वह माँ को लेकर गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति दत्ता जी राव के पास जाएगा| दत्ता जी राव ने उनकी पूरी बात सुनी और दादा को उनके पास भेजने को कहा | दत्ता जी ने उसे खूब फटकारा, आनंद को भी बुलाया | दादा ने भी कुछ बातें रखीं कि आनंद को खेती के कार्य में मदद करनी होगी| आनंद ने उनकी सभी बातें सहर्ष मान लीं| आनंद की पढ़ाई शुरू हो गई| शुरु में कुछ शरारती बच्चों ने उसे तंग किया किन्तु धीरे-धीरे उसका मन लगने लगा| उसने कक्षा के मानीटर वसंत पाटिल से दोस्ती कर ली जिससे उसे ठीक प्रकार से पढ़ाई करने की प्रेरणा मिली| कई परेशानियों से जूझते हुए आनंद ने शिक्षा का दामन नहीं छोड़ा| मराठी पढ़ाने के लिए श्री सौंदलगेकर आए| उन्होंने आनंद के हृदय में एक गहरी छाप छोड़ी| उसने भी कविताओं में रूचि लेनी प्रारम्भ की| उसने खेतों में काम करते –करते कविताएँ कंठस्थ की| मास्टर ने उसकी कविता बड़े ध्यान से सुनी| बालक का आत्मविश्वास बढ़ने लगा और उसकी काव्य-प्रतिभा में निखार आने लगा | प्रश्नोत्तर-
2.ग्रामीणों के मददगार – दत्ता जी गाँव के प्रतिष्ठित एवम प्रभावशाली व्यक्ति थे किंतु उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा का दुरुपयोग नहीं किया| ग्रामीण उनके पास अपनी समस्याएँ लेकर आते थे| दत्ता जी उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते थे| 3.प्रभावशाली व्यक्तित्व– दत्ता जी गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे| सभी उन्हें बहुत मान देते थे| उनका व्यक्तित्व रोबीला था और ग्रामीण उनकी बात मान जाते थे| 2. जूझ कहानी का उद्देश्य क्या है ? अथवा ‘विषम परिस्थितियों में भी विकास संभव है।’‘जूझ’ कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए| उत्तरः इस कहानी का मुख्य उद्देश्य है कि मनुष्य को संघर्ष करते रहना चाहिए| कहानी में लेखक के जीवन के संघर्ष को, उसके परिवेश के साथ दिखलाया गया है। लेखक का शिक्षा-प्राप्ति हेतु पिता से संघर्ष,कक्षा में संघर्ष,खेती में संघर्ष और अंत में उसकी सफलता कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं। अतः समस्याओं से भागना नहीं चाहिए| पूरे आत्मविश्वास से उनका मुकाबला करना चाहिए| संघर्ष करने वाले को सफलता अवश्य मिलती है| 3. ‘जूझ’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर टिप्पणी कीजिए। उत्तरः जूझका अर्थ है –संघर्ष| यह कथा ,कथानायक के जीवन भर के संघर्ष को दर्शाती है| बचपन से अभावों में पला बालक, विपरीत परिस्थितियों पर विजय हासिल कर सका|अतः यदि मन में लगन हो, भरपूर आत्मविश्वास हो तो सफलता कदम चूमती है | 4. ‘जूझ’ कहानी के आधार पर आंनदा के चरित्र की विशेषताएँ बताइए। अथवा ‘जूझ’शीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथानायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है? उत्तरः (क) पढ़ने की लालसा- आनंदा पिता के साथ खेती का काम सँभालता था| लेकिन पढ़ने की तीव्र इच्छा ने उसे जीवन का एक उद्देश्य दे दिया और वह अपने भविष्य को एक सही दिशा देने में सफल होता है| (ख)वचनबद्धता- आनंदा ने विद्यालय जाने के लिए पिता की जो शर्तें मानी थी उनका पालन हमेशा किया| वह विद्यालय जाने से पहले बस्ता लेकर खेतों में पानी देता| वह ढोर चराने भी जाता| पिता की बातों का अनुपालन करता| (ग)आत्मविश्वासी एवं कर्मठ बालक–आनंदा के जीवन में अभाव ही थे| उसके पिता ने ही उसका पाठशाला जाना बंद करवा दिया था| किंतु उसने हिम्मत नहीं हारी, पूरे आत्मविश्वास के साथ योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ा और सफल हुआ| (घ)कविता के प्रति झुकाव- आनंदा ने मास्टर सौंदलगेकर से प्रभावित होकर काव्य में रुचि लेनी प्रारम्भ की| वह खेतों में पानी देता, भैंस चराते समय भी कविताओं में खोया रहता था| धीरे-धीरे वह स्वयं तुकबंदी करने लगा| कविताएँ लिखने से उसमें आत्मविश्वास बढ़ा| 5. आनन्दा के पिता की भाँति आज भी अनेक गरीब व कामगार पिता अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहतेथे, क्यों? आपकी दृष्टि में उन्हें किस प्रकार प्रेरित किया जा सकता है? उत्तरः अधिकतर लोग अशिक्षित होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को नहीं समझते| अधिक बच्चे , कम आमदनी, दो अतिरिक्त हाथों से कमाई की लालसा आदि इसके प्रमुख कारण हैं। उन्हें प्रेरित करने हेतु उन्हें जागरूक करना, शिक्षा का महत्त्व बताना,शिक्षित होकर जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। ६ . सकारात्मक सृजनात्मकता से आत्मविश्वास को दृढ़ता मिलती है। जूझ कहानी के आधार पर समझाइए। उत्तरः लेखक ने पढ़ाई में स्वयं को पिछड़ता हुआ पाया| किंतु शिक्षक सौदंलगेकर से प्रेरित होकर लेखक कुछ तुकबंदी करने लगा| धीरे –धीरे उसमें आत्मविश्वास बढ़ने लगा| सृजनात्मकता ने उसके जीवन को नया मोड़ दिया| अतः लेखक के द्वारा कविता रच लेने से उसमें आत्मविश्वास का सृजन हुआ।
उत्तरः मास्टर सौंदलगेकर कुशल अध्यापक, मराठी के ज्ञाता व कवि,सुरीले ढंग से स्वयं कीव दूसरों की कविताएँ गाते थे। आनन्दा को कविता या तुकबन्दी लिखने के प्रारम्भिक काल में उन्होंने उसका मार्गदर्शन व सुधार किया,उसका आत्मविश्वास बढ़ाया जिससे वह धीरे-धीरे कविताएँ लिखने में कुशल हो कर प्रतिष्ठित कवि बन गया। ८. आनन्दा कोपुनः स्कूल जाने पर क्या-क्या झेलना पड़ा ? उत्तरः स्वयं से कम आयु के छात्रों के साथ बैठना पड़ा,वह अन्य छात्रों की हँसी का पात्र बना तथा उसे पिता की इच्छा के कारण घर व स्कूल दोनों में निरंतर काम करना पड़ा। ९ . स्कूल में मानीटर ने आनंदा को सर्वाधिक प्रभावित किया और कैसे? उत्तरः मानीटर बसंत पाटिल ने उसे सर्वाधिक प्रभावित किया|वह शांत व अध्ययनशील छात्र था। आनंदा उसकी नकल कर हर काम करने लगा,धीरे-धीरे एकाग्रचित व अध्ययनशील बनकर आनन्दा भी कक्षा में सम्मान का पात्र बन गया। १० . आपके दृष्टि से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का?तर्क सहित उतर दीजिए। उत्तरः लेखक का मत है कि जीवन भर खेतों में काम करके कुछ भी हाथ आने वाला नहीं है। पीढ़ी दर पीढ़ी खेतों में काम करके कुछ प्राप्त नहीं हो सका। वे मानते हैं कि यह खेती हमें गढ्ढे में धकेल रही है। अगर मैं पढ़-लिख गया तो कहीं मेरी नौकरी लग जाएगी या कोई व्यापार करके अपने जीवन को सफल बनाया जा सकता है। माँ-बेटा जब दत्ता जी राव के घर जाकर पूरी बात बताते हैं तो दत्ता जी राव पिता जी को बुलाकर खूब डाँटते हैं और कहते हैं कि तू सारा दिन क्या करता है। बेटे और पत्नी को खेतों में जोत कर तू सारा दिन साँड की तरह घूमता रहता है। कल से बेटे को स्कूल भेज, अगर पैसे नहीं हैं तो फीस मैं दूँगा। परन्तु पिता जी को यह सब कुछ बुरा लगा। दत्ता जी राव के सामने ‘हाँ’ करने के बावजूद भी वे आनन्द को स्कूल भेजने के पक्ष में नहीं थे। इस प्रकार लेखक और उनके पिताजी की सोच में एक बड़ा अन्तर है। हमारे खयाल से पढ़ाई-लिखाई के सम्बन्ध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया लेखक के पिता की सोच से ज्यादा ठीक है क्योंकि पढ़ने-लिखने से व्यक्ति का सर्वागींण विकास होता है। अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास-प्रश्न: १. जूझ पाठ के आधार पर बताइए कि कौन, किससे, कहाँ जूझ रहा है तथा अपनी जूझ में कौन सफल होता है? २. आनंदा का पिता कोल्हू जल्दी क्यों चलवाता था? ३. पाठशाला में आनंदा का पहला अनुभव कैसा रहा? ४. दत्ता राव के सामने रतनप्पा ने आनंदा को स्कूल न भेजने का क्या कारण बताया ? ५. आनंदा के पिता ने उसे पाठशाला भेजने की सहमति किस शर्त पर दी? पाठ 3 अतीत में दबे पाँव: ओम थानवी पाठ का सार–यहओम थानवी के यात्रा-वृत्तांत और रिपोर्ट का मिला-जुला रूप है|उन्होंने इस पाठ में विश्व के सबसे पुराने और नियोजित शहरों-मुअनजो-दड़ो तथा हड़प्पा का वर्णन किया है | पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मुअनजो-दड़ो ओर पंजाब प्रांत में हड़प्पा नाम के दो नगरों को पुरातत्वविदों ने खुदाई के दौरान खोज निकाला था|मुअनजो-दड़ो ताम्रकाल का सबसे बड़ा शहर था |मुअनजो-दड़ो अर्थात मुर्दों का टीला| यह नगर मानव निर्मित छोटे–छोटे टीलों पर बना था |मुअनजो-दड़ो में प्राचीन और बड़ा बौद्ध स्तूप है | इसकी नगर योजना अद्वितीय है| लेखक ने खंडहर हो चुके टीलों, स्नानागार, मृद-भांडों, कुओं–तालाबों, मकानों व मार्गों का उल्लेख किया है जिनसे शहर की सुंदर नियोजन व्यवस्था का पता चलता है| बस्ती में घरों के दरवाजे मुख्य सड़क की ओर नहीं खुलते, हर घर में जल निकासी की व्यवस्था है, सभी नालियाँ की ढकी हुई हैं, पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है| नगर में चालीस फुट लम्बा ओर पच्चीस फुट चौड़ा एक महाकुंड भी है |इसकी दीवारें ओर तल पक्की ईंटों से बने हैं | कुंड के पास आठ स्नानागार हैं | कुंड में बाहर के अशुद्ध पानी को न आने देने का ध्यान रखा गया | कुंड में पानी की व्यवस्था के लिए कुंआ है | एक विशाल कोठार भी है जिसमें अनाज रखा जाता था |उन्नत खेती के भी निशान दिखते हैं -कपास, गेहूं, जौ, सरसों, बाजरा आदि के प्रमाण मिले हैं| सिंधु घाटी सभ्यता में न तो भव्य राजमहल मिलें हैं ओर ही भव्य मंदिर| नरेश के सर पर रखा मुकुट भी छोटा है| मुअनजो-दड़ो सिंधु घाटी का सबसे बड़ा नगर है फिर भी इसमें भव्यता व आडम्बर का अभाव रहा है| उस समय के लोगों ने कला ओर सुरुचि को महत्त्व दिया| नगर-नियोजन, धातु एवं पत्थर की मूर्तियाँ, मृद-भांड ,उन पर चित्रित मानव ओर अन्य आकृतियाँ ,मुहरें, उन पर बारीकी से की गई चित्रकारी| एक पुरातत्त्ववेत्ता के मुताबिक सिंधु सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य-बोध है जो ”राजपोषित या धर्मपोषित न होकर समाजपोषित था|” प्रश्नोत्तर–
तथा भव्य महलों व समाधियों के न होने से कह सकते हैं कि सिन्धु सभ्यता ताकत से नहीं समझ से अनुशासित थी। ७. संसार की मुख्य प्राचीन सभ्यताएँ कौन-कौन सी हैं?प्राचीनतम सभ्यता कौन-सी है उसकी प्रमाणिकता का आधार क्या है ? उत्तरः मिस्र की नील घाटी की सभ्यता, मेसोपोटामिया की सभ्यता, बेबीलोन की सभ्यता, सिन्धु घाटी की सभ्यता। सबसे प्राचीन है सिन्धु घाटी की सभ्यता। प्रमाण है 1922में मिले हड़प्पा व मुअनजो-दड़ोनगरों के अवशेष। ये नगर ईसा पूर्व के हैं। ८.सिन्धु घाटी की सभ्यता की विशिष्ट पहचान क्या है? उत्तरः1. एक जैसे आकार की पक्की ईटों का प्रयोग, 2. जल निकासी की उत्कृष्ट व्यवस्था, 3. तत्कालीन वास्तुकला, 4. नगर का श्रेष्ठ नियोजन। ९ .मोहनजोदड़ो में पर्यटक क्या-क्या देख सकते हैं? उत्तरः 1.बौद्ध स्तूप2. महाकुंड 3.अजायबघर आदि १० . सिन्धु सभ्यता व आजकल की नगर निर्माण योजनाओं में साम्य व अन्तर बताइए। उत्तरः साम्य-1. अच्छी जल निकास योजना,ढकी हुई नालियाँ, 2. नौकरों के लिए अलग आवास व्यवस्था, 3. पक्की ईंटों का प्रयोग। अन्तर- नगर योजना, आधुनिक तकनीक का प्रयोग, अत्याधुनिक भवन–निर्माण सामग्री का प्रयोग| ११.कुलधरा कहाँ है?मुअनजो-दड़ोके खण्डहरों को देख कुलधरा की याद क्योंआती है? उत्तरः कुलधरा जैसलमेर के मुहाने पर पीले पत्थरों से बने घरों वाला सुन्दर गाँव है। कुलधरा के निवासी 150 वर्ष पूर्व राजा से तकरार होने पर गाँव खाली करके चले गए। उनके घर अब खण्डहर बन चुके हैं, परंतु ढ़हे नहीं |घरों की दीवारें और खिड़कियाँ ऐसी हैं मानो सुबह लोग काम पर गए हैं और साँझ होते ही लौट आएंगें |मुअनजो-दड़ोके खण्डहरों को देखकर कुछ ऐसा ही आभास होता है वहाँ घरों के खण्डहरों में घूमते समय किसी अजनबी घर में अनधिकार चहल-कदमी का अपराधबोध होता है| पुरातात्विक खुदाई अभियान की यह खूबी रही है कि सभी वस्तुओं को बड़े सहेज कर रखा गया | अतः कुलधरा की बस्ती और मुअनजो-दड़ोके खण्डहर अपने काल के इतिहास का दर्शन कराते हैं। अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास-प्रश्न: १. सिन्धु घाटी के निवासी खेती करते थे- इस कथन को सिद्ध कीजिए। २. ’टूटे-फूटे खण्डहर सभ्यता और संस्कृति के इतिहास के साथ-साथ धड़कती जिन्दगियों के अनछुए समयों का दस्तावेज होते हैं।’ इस कथन का भाव स्पष्ट कीजिए। ३.आज जल संकट एक बड़ी समस्या है| ऐसे में सिन्धु सभ्यता के महानगर मुअनजो-दड़ो की जल व्यवस्था से क्या प्रेरणा लीजा सकती है ? भावी जल संकट से निपटने के लिए आप क्या सुझाव देंगे ? ४.मुअनजो-दड़ोके अजायबघर में कौन-कोन सी वस्तुएँ प्रदर्शित थीं ? ५.सिंधु सभ्यता अन्य सभ्यताओं से किस प्रकार भिन्न है ? ६.मुअनजो-दड़ोकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए । ७. सिंधुघाटी की सभ्यता लो-प्रोफाइल है-स्पष्ट कीजिए ? ८. लेखक ने प्राचीन लैंडस्केप किसे कहा है ?उसकी क्या विशेषता है? ९. ताम्रकाल के दो सबसे बड़े नियोजित शहर किन्हें माना गया है और क्यों ? -------------------------------------------------------------------------------------------------- पाठ 4 : डायरी के पन्ने: ऐन फ्रैंक पाठ का सार – ‘डायरी के पन्ने’ पाठ में ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ नामक ऐन फ्रैंक की डायरी के कुछ अंश दिए गए हैं| ‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ ऐन फ्रैंक द्वारा दो साल अज्ञातवास के दरम्यान लिखी गई थी| १९३३ में फ्रैंकफर्ट के नगरनिगम चुनाव में हिटलर की नाजी पार्टी जीत गई| तत्पश्चात यहूदी-विरोधी प्रदर्शन बढ़ने लगे | ऐन फ्रैंक का परिवार असुरक्षित महसूस करते हुए नीदरलैंड के एम्सटर्डम शहर में जा बसा |द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत तक(१९३९) तो सब ठीक था| परंतु १९४० में नीदरलैंड पर जर्मनी का कब्ज़ा हो गया ओर यहूदियों के उत्पीड़न का दौर शुरु हो गया| इन परिस्थितियों के कारण १९४२ के जुलाई मास में फ्रैंक परिवारजिसमें माता-पिता,तेरह वर्ष की ऐन ,उसकी बड़ी बहन मार्गोट तथा दूसरा परिवार –वानदान परिवार ओर उनका बेटा पीटरतथा इनके साथ एक अन्य व्यक्ति मिस्टर डसेल दो साल तक गुप्त आवास में रहे| गुप्त आवास में इनकी सहायता उन कर्मचारियों ने की जो कभी मिस्टर फ्रैंक के दफ्तर में काम करते थे||‘द डायरी ऑफ ए यंग गर्ल’ ऐन फ्रैंक द्वारा उस दो साल अज्ञातवास के दरम्यान लिखी गई थी|अज्ञातवास उनके पितामिस्टर ऑटो फ्रैंक का दफ्तर ही था| ऐन फ्रैंक को तेरहवें जन्मदिन पर एक डायरी उपहार में मिली थी ओर उसमें उसने अपनी एक गुड़िया-किट्टी को सम्बोधित किया है| ऐनअज्ञातवास में पूरा दिन– पहेलियाँ बुझाती, अंग्रेज़ी व फ्रेंच बोलती, किताबों की समीक्षा करती, राजसी परिवारों की वंशावली देखती, सिनेमा ओर थिएटर की पत्रिका पढ़ती और उनमें से नायक-नायिकाओं के चित्र काटतेबिताती थी| वह मिसेज वानदान की हर कहानी को बार-बार सुनकर बोर हो जाती थी ओर मि. डसेल भी पुरानी बातें– घोड़ों की दौड़, लीक करती नावें, चार बरस की उम्र में तैर सकने वाले बच्चे आदि सुनाते रहते| उसने युद्ध संबंधी जानकारी भी दी है- कैबिनेट मंत्री मि. बोल्के स्टीन ने लंदन से डच प्रसारण में यह घोषणा की थी कि युद्ध के बाद युद्ध के दौरान लिखी गईं डायरियों का संग्रह किया जाएगा, वायुयानों से तेज़ गोलाबारी, हज़ार गिल्डर के नोट अवैध घोषित किए गए | हिटलर के घायल सैनिकों में हिटलर से हाथ मिलाने का जोश , अराजकता का माहौल- कार, साईकिल की चोरी, घरों की खिड़की तोड़ कर चोरी, गलियों में लगी बिजली से चलने वाली घड़ियाँ, सार्वजनिक टेलीफोन चोरी कर लिए गए| ऐन फ्रैंक ने नारी स्वतंत्रता को महत्त्व दिया,उसने नारी को एक सिपाही के बराबर सम्मान देने की बात कही| एक तेरह वर्षीय किशोरी के मन की बेचैनी को भी व्यक्त किया- जैसे मि. डसेल की ड़ाँट-फटकार ओर उबाऊ भाषण, दूसरों की बातें सुनकर मिसेज फ्रैंक का उसेडाँटना ओर उस पर अविश्वास करना, बड़ों के द्वारा उसके काम ओर केशसज्जा पर टीका-टिप्पणी करना, सिनेमा की पत्रिका खरीदने पर फिज़ूलखर्ची का आरोप लगाना, पीटर द्वारा उसके प्रेम को उजागर न करना आदि| ऐन फ्रैंक की डायरी के द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका, हिटलर एवं नाजियों द्वारा यहूदियों का उत्पीड़न, डर, भुखमरी, गरीबी, आतंक, मानवीय संवेदनाएँ, प्रेम, घृणा, तेरह साल की उम्र के सपने, कल्पनाएँ, बाहरी दुनिया से अलग-थलग पड़ जाने की पीड़ा, मानसिक ओर शारीरिक जरूरतें, हँसी-मज़ाक, अकेलापन आदि का जीवंत रूप देखने को मिलता है | प्रश्नोत्तर – १. ‘‘ऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी। इन पृष्ठों में दोनों का फर्क मिट गया है। ’’ इस कथन पर विचार करते हुए अपनी सहमति या असहमति तर्कपूर्वक व्यक्त करें। उत्तरःऐन की डायरी अगर एक ऐतिहासिक दौर का जीवंत दस्तावेज है, तो साथ ही उसके निजी सुख-दुःख और भावनात्मक उथल-पुथल का भी क्योंकि इसमें ऐन ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हॉलैंड के यहूदी परिवारों की अकल्पनीय यंत्रणाओं का वर्णन करने के साथ-साथ, वहाँ की राजनैतिक स्थिति एवं युद्ध की विभीषिका का जीवंत वर्णन किया है।वायुयानों से तेज़ गोलाबारी, हज़ार गिल्डर के नोट अवैध घोषित किए गए , हिटलर के घायल सैनिकों में हिटलर से हाथ मिलाने का जोश , अराजकता का माहौलआदि| साथ हीयह डायरी, ऐन के पारिवारिक सुख-दुःख और भावनात्मक स्थिति को प्रकट करती है- गरीबी, भुखमरी,अज्ञातवास में जीवन व्यतीत करना, दुनिया से बिलकुल कट जाना ,पकड़े जाने का डर, आतंक। यह डायरी एक ओर वहाँ के राजनैतिक वातावरण में सैनिकों की स्थिति, आचरण व जनता पर होने वाले अत्याचार दिखाती हैं तो दूसरी ओरएक तेरह वर्ष की किशोरी की मानसिकता, कल्पना का संसार ओर उलझन को भीदिखाती है जो ऐन की आपबीती है। इस तरह यह डायरी ऐतिहासिक दस्तावेज होने के साथ-साथ ऐन के जीवन के सुख-दुख का चित्रण भी है । २. ‘‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज जो किसी सन्त या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण-सी लड़की की है।’’ इल्या इहरनबुर्ग की इस टिप्पणी के संदर्भ में ऐन फ्रैंक की डायरी के पठित अंशों पर विचार करें। उत्तरः उस समय यूरोप में लगभग साठ लाख यहूदीथे।द्वितीय विश्वयुद्ध में नीदरलैंड पर जर्मनी का कब्ज़ा हो गया और हिटलर की नाजी फौज ने यहूदियों को विभिन्न प्रकार से यंत्रणाएं देने लगे | उन्हें तरह-तरह के भेदभाव पूर्ण ओर अपमानजनक नियम-कायदों को मानने के लिए बाध्य किया जाने लगा |गेस्टापो (हिटलर की खुफिया पुलिस) छापे मारकर यहूदियों को अज्ञातवास से ढूँढ़ निकालती ओर यातनागृह में भेज देती| अतः चारों तरफ अराजकता फैली हुई थी। यहूदी अज्ञातवास में निरंतर अंधेरे कमरों में जीने को मजबूरथे।उन्हें एक अमानवीय जीवन जीने को बाध्य होना पड़ा|हिटलर की नाजी फौजका खौफ उन्हें हरवक्त आतंकित करता रहता था | ऐन ने डायरी के माध्यम से न केवलनिजी सुख-दुःख और भावनाओं को व्यक्त किया,बल्कि लगभग साठ लाख यहूदी समुदाय की दुख भरी जिन्दगी को लिपिबद्ध किया है। इसलिए इल्या इहरनबुर्ग की यह टिप्पणी कि ‘‘यह साठ लाख लोगों की तरफ से बोलने वाली एक आवाज है। एक ऐसी आवाज जो किसी संत या कवि की नहीं, बल्कि एक साधारण-सी लड़की की है।’सर्वमान्य एवं सत्य है। ३. ऐन फ्रैंक कौन थी?उसने अपनी डायरी में किस काल की घटनाओं का चित्रण किया है?यह क्यों महत्वपूर्ण है? उत्तर:. ऐन फ्रैंक एक यहूदी लड़की थी। उसने अपनी डायरी में द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-1945) के दौरान हिटलर की नाजी फौज ने यहूदियों को विभिन्न प्रकार से यंत्रणाएं दीं| यह डायरी युद्ध के दौरान फैली अराजकता और राजनेतिक परिदृश्य को दर्शाती है| यह नाजियों द्वारा यहूदियों पर किए गए जुल्मों का एक प्रामाणिक दस्तावेज है और साथ ही साथ एक तेरह वर्षीय किशोरी की भावनाएँ और मानसिकता को समझाने में सहायक है। ४. डायरी के पन्ने पाठ में मि. डसेल एवं पीटर का नाम कई बार आया है। इन दोनों का विवरणात्मक परिचय दें। उत्तरः मि.डसेल- ऐन के पिता के साथ काम करते थे। वे ऐन व परिवार के साथ अज्ञातवास में रहे थे। डसेल उबाऊ लंबे-लंबे भाषण देते थे और अपने जमाने के किस्से सुनाते रहते थे। ऐन को अक्सर डाँटते थे । वे चुगलखोर थे और ऐन की मम्मी से ऐन की सच्ची-झूठी शिकायतें करते थे । पीटर- मिस्टर और मिसेज वानदान का बेटा था |वह ऐन का हमउम्र था। ऐन का उसके प्रति आकर्षण बढ़ने लगा था और वह यह मानने लगी थी कि वह उससे प्रेम करती है।ऐन के जन्मदिन पर पीटर ने उसे फूलों का गुलदस्ता भेंट किया था| किंतु पीटर सबके सामने प्रेम उजागर करने से डरता था| वह साधारणतया शांतिप्रिय, सहज व आत्मीय व्यवहार करने वाला था। ५. . किट्टी कौन थी?ऐनफ्रैंक ने किट्टी को संबोधित कर डायरी क्यों लिखी? उत्तरः ‘किट्टी’ऐन फ्रैंक की गुड़िया थी। गुड़िया को मित्र की भाँति संबोधित करने से गोपनीयता भंग होने का डर न था।अन्यथा नाजियों द्वारा अत्याचार बढ़ने का डर व उन्हें अज्ञातवास का पता लग सकता था।| ऐन ने स्वयं (एक तेरह वर्षीय किशोरी) के मन की बेचैनी को भी व्यक्त करने का ज़रिया किट्टी को बनाया |वह हृदय में उठ रही कई भावनाओं को दूसरों के साथ बाँटना चाहती थी किंतु अज्ञातवास में उसके लिए किसी के पास समय नहीं था| मि. डसेल की ड़ाँट-फटकार ओर उबाऊ भाषण ,दूसरों के द्वारा उसके बारे में सुनकर मम्मी (मिसेज फ्रैंक) का उसेड़ाँटना ओर उस पर अविश्वास करना, बड़ों का उसे लापरवाह और तुनकमिजाज मानना और उसे छोटी समझकर उसके विचारों को महत्त्व न देना , उसके ह्रदय को कचोटता था |अतः उसने किट्टी को अपना हमराज़ बनाकर डायरी में उसे ही संबोधित किया| ६ ‘ऐन फ्रैंक की डायरी यहूदियों पर हुए जुल्मों का जीवंत दस्तावेज है’पाठ के आधार पर यहूदियों पर हुए अत्याचारों का विवरण दें। उत्तरः हिटलर की नाजी सेना ने यहूदियों को कैद कर यातना शिविरों में डालकर यातनाएँ दी। उन्हें गैस चैंबर में डालकर मौत के घाट उतार दिया जाता था। कई यहूदी भयग्रस्तहोकर अज्ञातवास मेंचले गए जहाँ उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में जीना पड़ा| अज्ञातवास में उन्हें सेन्धमारों से भी निबटना पड़ा।। उनकी यहूदी संस्कृति को भी कुचल डाला गया।
अन्य महत्त्वपूर्ण अभ्यास-प्रश्न: १.“काश, कोई तो होता जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता| अफसोस, ऐसा व्यक्ति मुझे अब तक नहीं मिला.... ”| क्या आपको लगता है किऐन के इस कथन में उसके डायरी लेखन का कारण छुपा हुआ है ? २. अज्ञातवास में उबाऊपन दूर करने के लिए ऐन फ्रैंक व वान परिवार क्या करते थे ? ३. डच मंत्री कि किस घोषणा से ऐन रोमांचित हो उठी? ४. ऐन के अनुसार युद्ध में घायल सैनिक गर्व का अनुभव क्यों कर रहे थे ? ५. ‘हर कोई जानता था कि बुलावे का क्या मतलब होता है’| ऐन की डायरी के आधार पर लिखिए| ६. ‘प्रकृति ही तो एक ऐसा वरदान है, जिसका कोई सानी नहीं है।’ऐसा क्यों कहा गया है? |
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