ऽ जुबना हमारे ज़ज़बात और ख्यालात के इजहार का जरिया हैं, और जुबान व रसमूलखत में Ûहंरा ताल्लूख है। हर जु़बान को ,क रसमूलखत की जरूरत होती है, जो जुबान मेें ज्यादातर अलÛ-अलÛ होती है। इस तरह सारी जुबनि ,क ही रसमूलखत से काम चलाती है।
हर जु़बान का रसमूलखत मिजाज व सारवत के मुताबिख के होता है और वो उसी में सही तौर पर पढ़ी जा सकती है। किसी दुसरी जुबान रसमूलखत मे मुनतकील करने से इसकी सुरत इस क़दर सख्त हो जा,Ûी के पहचानना मुश्किल हो जायेÛा इसलि, रसमूलखत को जुबान का लिबास या जिल्द कहा जाता है।
2- रसमूलखत किस कहते है ?
ऽ रसमूलखत से मुराद वो नक़ूश व अलामत है जिन्हे हूरफ का नाम दिया जाता है और जिकी मद्य से किसी जुबान की तहरीरी सूरत मुतउाईन होती है।
दूसरे अल्फाज में जुबान मे तहरीरी सूरत का नाम रसमूलखत है या हुरफ जो तल्लफूज की अदा,Ûी और मायने के इज़हार के लि, इस्तेमाल हेाते है और अपनी मरबूत सूरत मे किसी जुबान का रसमूलखत कहलात है।
ऊर्दू रसमूलखत
किसी रसमूलखत की अच्छाईयां बुराई को दो तरीको से परखा जाता है
1- ,क वो जो किस हद तक मुफीद है।
2- दूसरे ये के देखने मे कितने खुबसूरत है।
रसमूलखत ,ेसा होना चाहि, के हुरफे तहज्जी के बोलने में जितनी आवाजें पैदा होती है इस सभी आवाजो को पढ़ने वालो के सामने खूबसूरती क्या हो आते है।
इस तरीके से ऊर्दु का रसमूलखत बहुत जामा और कामयाब है के वो ऊर्दु जुबान की मरूजा आवाजो की नुमाइदंÛी करता है -
अÛे्रंजी से लेकर इलाकाई जुबाने इस तरह समा Ûई है के दुनिया की हर आवाज का मजमुआ बन Ûई है इसलि, जिस तरह अपने जखीरे अलफ़ाज और सिरफवनहु के लिहाज से ,क मखलूत जुबान है ऊर्दु दाये से बायें लिखी जाती है और जाहीर में अरबी फारसी रसमूलखत से बहुत बहतर और करीब है।
ऊर्दु के रसमूलखत को अरबी या फारसी रसमूलखत ख्याल करना दुरूस्त न होÛा - क्योकि ऊर्दु के हुरफ - ,-तहाज्जी मे हिन्दी ओर अÛ्रेंजी की ,ेसी आवाजे भी शामिल है जो अरबी और फारसी में शामिल नही मसलन वÛेरा - मुखतसर ये है के ऊर्दु का रसमूलखत और उसकी वअस्त सारी जुबानो को अपने अन्दर समेटे हुये है
सर विलियम जोन्स -
‘‘ मुकम्मल जुबान वो है जिस मे हर वो ख्याल जो इन्सानी दिमाÛ मे आ सकता नही निहायत सफाई और जोर के साथ ,क मखसूस लफज के जरिये जाहीर किया जा सकता है।
मुकम्मल रसमूलखत वो है जिसमे उस जुबान की हर आवाज के लि, ,क मखसूस निशान हो रसमूलखत की इसी तारीफ मे ऊर्दु का हर रसमूलखत पुरा उतरता हैं ऊर्दु रसमूलखत की खुबियों को हम जैल मे इस तरह सुमार करते है।
ऊर्दु रसमूलखत की खुबिया
1- ये बाÛरी और अÛ्रेंजी रसमूलखत के मुकाबले मे जÛह कम लेता है।
2- इसमे काÛज और वक्त दोनो की बचत होती है।
3- देखने मे खुशनुमा दिदा जेब लÛता है और खास किस्म की कशीश रखता है।
4- ऊर्दु रसमूलखत मे अराब की जरूरत नही होती
5- इसमे अराब के लि, अलÛ से हुरफ नही है। बल्कि जेर, जबर, पेश के लि, निशानात से काम लिया जाता हैै।
6- दाय से बाय लिखा जाता है।
7- इसके बेशतर हुरफ अरबी, फारसी से करीब है।
,ेतराज़ात (कमिया)
1- इसमें हुरफे तहज्जी की तादाद ज्यादा है जो तालीबेइल्म को सीखने, लिखने और महारत हासिल करेन में मुश्किलात पैदा करती है।
2- ऊर्दु रसमूलखत के हुरफ कई-कई शक्ल बदल देते है। कभी पुरा कभी आदा कभी हुरफ का चेहरा ये तबदिलिया ऊर्दु फरकाबूपाने में मुश्किलात पैदा करती है।
3- ऊर्दु हम (सूत) यानी आवाज रखने वाले हुरफ जो जो लिखना सिखाने में खास तौर पर उलझन पैदा करती है, चुनाचे इमला में Ûलतियां लम्बे अरसे तक तुलेबा करता रहता है।
4- अराब के दुशवारिया है - सिर्फ क़यास से ही काम लिया जाता है।
5- ऊर्दु रसमूलखत में बहुत से हुरफ लिख जाते है। लेकिन पढे नही जाते ख्वाब खुवाइश अब्दुलरहमान
6- हाईप और दबाअत की मशीने बमुश्किल तैयार होती है।
हर तदरीस से किब्ल तदरीस का वाजे मौजू मअलिम के जहने मे होता है क्योकि अमले तदरीस के किब्ल हर सबक की ,क खास तैयारी की जरूरत होती है।
मनसूबा , सबक का नाम इस सिलसिले मे हमारे जहन में आता है मनसूबा बन्दी मुआलिम को रहा दिखाती है के इसे तलेबा को किस सिम्त ले जाना है - ये मंजिल और राहे मंजिल देानो से वाकफियत कराता है।
तारीफ - योमे मन्सूबा - ,सबक उन उसूल फहरिस्त का उन्वान है जिन्हे मअलिम दरजा मे हासिल करना चाहता है और उनमे वो सभी जरा, औक्र मशामील भी शामिल है । जिनकी वजह से या मद्द से उसूल मयसर होते है।
स्मेेवद चसंद पे जवजंस जव ं मेजंसउमदज ंबीपमअमउमदज जव इम तमंजमहमक जीम ेचमबपमे उपदम इल ूीपबी जीमतम ंतम जव वचसपदमक ंे तमेंसंज व िजीम ंजजपअपजपमतमदहंहमक कमपरतपदह जीम चमतपवक -
मन्दजा बाला तारीफ मे तीन निकाल अहम है।
1- अलिम किल मक़ासिद और उसूल को हासिल करना चाहता है।
2- इन मकासिद के उसूल में वो किन मारून अशया क ा इस्तेमाल करेÛा।
3- मुतालिमिन के जरिये किये जाने वाले मशाÛील जो सबक से मरबूत हो।
मन्सूबा -,सबक से ये मालूम होता है के तुलेबा ने क्या आमूस्त किया है और मजीद किस सीम्त को हिदायत दरकार है और मुकर्र। साख्त मे क्या तदरीस किया जाये और इस तारीफ के मुताबिक मे सूबा सबक मे तीन बाते होना चाहि,।
1- तुलेबा की साबक़या वाकफियत
2- सबक का मक़सद जो के हासिल किया जाना है।
3- मतन का खांका या शक्ल, सूरत तैयार करना।
तारीफ -
योमा मन्सूबा , सबक ,क मुर्करा वक्त के दरामियान मे किसी जमाअत में किसी भी मन्जमून को किसी उन्वान के तहत् मआलिम तुलेबा के दरामियान मखसूस मकासिद की तहसील व मशाÛील का वो खाका है। जिस मे मुआलिम तुलेबा कीर साबंकिया वाकफियत का पता लÛाते हुये तदरीस मतन का अहाता व तरीफा कार का इन्तेखाब करता है और आखीर मे तुलेबा की ज़हन नशीनी का जायजा लेता है।
योमा मन्सूबा सबक तैयार करते वक्त मुदरिस को सबक के सभी पहलुओ पर नजर सानी करनी पडती है क्योकि इसके लि, बिना सवक का खाका तैयार नही हो सकता है और दरजे मे सबक की शुरूआत सही ढंÛ से नही हो पाती है और तुलेबा को समझाने मे ंभी दिक्कत पैदा होती है -
तमहीद -
तमहीद तुलेबा की ज़हन सर Ûर्मियों की तमहीद होती है। यानी पहली मन्जिल होती है। मसलून - जिस तरह इन्सान के जिस्म का तआल्लूक रूह से होता है। उसी तरह मन्सूबा सबक मे तमहीद रूह की मानिद होती है और मूदरिस तुलेबा के ख्पालात को जÛाने, साबकिया मालुमात को ताजा करने और पढा, जाने वाले सबक पर आमादा होने का काम इमके तहत करता है।
इस हिस्से मे मुदरिस तुलेबा के जखिरा-, मालुमात के हिस्से के चस मन्जर में सबक का आÛाज करने के लि, तुलेबा का जहनी और जजबात झूकाव पैदा करता है। उनके अहसाजात के जजबे को महतरिक करता है और बाअज महरकात फराहम करता है, और तुलेबा की तब्बजे ,क मखसूत नूकते परमरकूज़ करता है सबक की कामयाबी व नाकामयाबी का इन्हसार तमहीदी सबक पर ही मुबनी होता है। क्योकि के जरिया तमहीदी तदरिस चन्द ही मिन्टो मे तुलेना की जहनी रफाकत को ?ा.टे के आखिर तक के लि, हासिल कर लेता है या महरूम हो जाता है।
अÛर मुदरिस तुलेबा की साबका वाकफियत को हरकत में नही है तो उसे दोरान तदरिस बार-बार पीछे वाली दोहरानी पडती है जिसमे तदरिस अमल की रवानी व हमवारी पर दरकार होती हैं मखतसर ये है के तमहीदी सबक वो फर्श होता है जो के साबकिया वाक़फियत और पेशकश की मनाजित मे अरतबात करता है।
तमहीद की तरतीब के लि, कोई खास उसूल मतअईन नही होते है आम तौर पर इस में कोई माॅडल, चार्ट, नक्शा या तस्वीर दिखाकर या फिर मुखतसर बयान करके या फिर तख्तेसिया पर किसी मालूम अल्फाज जमा वÛैरा लिखकर सवालात तलब किये जाते है जो कि आम होते है फिर उनके जवाबात से उम्मीद रखते है और सवालात मजिद इस तरह से किये जाते है जो नये सबक की जानिब इशारा रूजूस होते है और आखिरी सवाल मसला - ,कुन होता है जो नये सबक की जानिब इशारा होता है ख्याल ये के तमहीद सबक कि तरफ रूजूअ करने का ,क जरिया है सबक का जुज उसे दो तीन मिनट मे खत्म करके सबक का आÛाज कर देता है।
दुसरे ये बाअज मुआलिम तमहीद से सबक का उन्वान आखूज करने की कोशिश करते है ये तरीका Ûलत से बल्कि उन्वान को नही बल्कि नक्शा मजमून को जहन मे रखना चाहि,।
इजहार-,-मक़सद
मन्सूबा सबक में तमहीद के बाद तदरिस मे मुआलिम का ये अÛला कदम होता है तदरिस मे इसकी हैसियत बिल्कुल इम तरह होती है। जैसे किताब के ऊपर उसका टाईटल क्योकि महज सबक की ,क मंजिल होती है सबक का जुज नही।
इस तदरिस पर मुअलिम तुलेवा को वाजे अल्फाज में फिल वाजेह सबक का मौजू और मकासिद से बहस करता है मंजिल तमहिद और मतन के दरमियान तसलसूल कायम करती है। तुलेबा को ये अहसास दिलाती है के तमहीदी बातचीत खत्म हो जाती है और नई मालूमात करने का वक्त आ Ûया है और तुलेबा सबक मे दिलचस्पी लेने लÛते है नये आमूर को जानने के लि, उनमें शोख पेैदा होता है और वो इजाद से सबक की तरफ मुताव्ज्जे होते है।
,ेलान सबक में सबक का उन्वान जो अब तक तख्तेसिया पर लिखा नही होता तहलीली शक्ल मे ली तुलेबा के सामने मुदरिस लाता है।
पेशकश ः-
जैसे तदरीस सबक का ये सबसे अहम् जुज होता है मुअलिम किस महारत ओर तदबीर किया सबक को पैश करता है वो इसकी तदरीसी कामयाबी का दामन होता है इसके तहत् -
1 मअलिम की खुवानी
2 मुतकलिम की खुवानी
3 अल्फाज की तशरीह
4 सवालात तुलेबा मे सिलसिलेवार आते है
मुदरिस और तुलेबा के माहीन तफाफील और तुलेबा की शिरकत और मद्द ओर मुदरिस की तदरीस- महारात का इस्तेमाल जहनी व इमदादी व साइल का इस्तेमाल सभी कुछ शामिल है जो के कामयाब मोअमर तदरीस के लि, माकूल है।
कराते मुआलिम
ज़ेरे तदरीसे सबक के उन्वान से आÛाज़ कराने के बाद जुबान के सबक मे पढा, जाने वाले इबारत रववानी, मुअलिम के ज़रिये की जाती है ये फरात या ख्वानी ,क ,ेसा नमूना होती है के जिसकी तकलीद सामीन व तुलेवा कर सके और नमूना की क़रात पैश करने का असल मकसद ये है के तुलेबा मे सही और मुनासिब ओर मुअसिर लबो लहजा मे ऊर्दु पढने की सलाहियत पैदा हो, इसलि, ये जरूरी हो जाता है के मुअलिम की करात निहायत मुअसर हो उसका लबोलहजा रफतार करात आवाज तलफ्फूज और अबकाफ मुनासिब व मुआसिर होÛी तुलेबा इसी कदर फायदा उठायÛें अÛर मुआलिम सहत तलफ्फूज और आवाज के उतार चढ़ाव अन्दाजे क़रात मे सही ढंÛ से काम न ले तो मिसाल करात का नाम खत्म हो जा,Ûीं।
मिसाली करात मे तुलेबा को तलफ्फूज की दूरस्तÛी नफ़स मज़मून को भी समझने मे आसानी होती है। नसर व नज्म की क़रात मे इम्तंयज का होना भी जरूरी है बल्कि ख्वानी के दौरान तुलेबा पर भी नजर रखी जाती है के वो उनकी किताबो मे नज़र रख रहे है या नहीं।
कराते मुतअलेमिन
मुअलिम की नमूना खुवानी के बाद तुलेबा को पढाया जाता है तुलेबा के ज़रिये मतन की खुआनी के दोरान उनके Ûलत तलफ्फूज, लबो लजा, फिक्शबन्दी, खानी तसलसूल पर खास नजर रखी जाती है। उनकी Ûलतियो की इस्लाह की जाती है Ûोैरतलब बात ये है के उनकी Ûलतियो की इस्लाद के मुतअलिक इखतलाफ आरा पाया जाता है। जिसकी बुनियाद हर वक्त टिक कर उनकी इस्लाह करने या न करने पर है, लेकिन मुतअलिक राय ये हेै के तुलेबा की Û़लतिया दूसरे तुलेबा से न तो निकलवायी औ न ही इस्लाह करवानी चाहि, बल्कि मूदरिस को खुद तुलेबा की Û़लतिय निकालने और इस्लाह करने दूसरे ये के हर ताली वे इल्म की Ûलतियां इनफरादी तौर पर दूरस्सत करना चाहि,। हर वक्त टोंक देना चाहि, या फिर बाद में इस्लाह करना चाहि, क्लास की सूरते हाल और मुआलिम की तरीका-,कार पर मुबनी है दोनो तरीके इस्तेमाल किये जा सकते है।
तलफ्फूज की दूरस्तÛी का तरीका ये होना चाहि, के करात की Ûलतियो के बाद उनकी तवज्जो Ûलतियों की तरफ दिलाई जा, जिन अल्फाज का तलफ्फूज तुलेबा Ûलत करे उन्हे मुअलिम को खामोशी से तख्ते सिया पर लिख देना चाहि, और करात के बाद तलफ्फूज सहत के लि, पहले उन्ही अल्फाज को तुलेबा से पढवाया जा, और फिर भी Ûलती करें तो अराब लÛाकर पढाया जाये और मशक कराई जा, दिÛर तुलेबा को सुनने की हिदायत दी जा,।
सुवालात
सवाल जहन में आई हुई उलझनो और Ûत्थीयो को सुलझाने में बहुत मदद कराते है - ,क मासूम बच्चा जब अपनी मां के साथ बाजार जाता है या टेªन मे सफर करता हेै तो हर चीज के बारें में मुखतलिफ सवालात करता है - बाप उसके हर सवाल का जवाब देता है वो सवाल पर सवाल बनाता रहता है - आखिर बाप को ही थकना पडता है कहने का मतलब ये है के क्यो, कब, कैसे, कहां ये ,ेसे सवाल है जो बच्चे की टेन्सन को दूर भी करते है और बढाते भी है। बच्चे के ,ेसे सवालात की दिमाÛी नशोनुमा इतनी और जहनी फरोÛ मे बहुत ही सूद मन्द हे क्योकि इन सवालात से ही उनके फितरी जजबात बहार निकलते है।
तालिम मे सवालात के जरिये बच्चो को जितनी मालूमात होती है। उतनी किसी दूसरे तरीकेकार से नही वालदेन और अमातजा का फर्ज है के बच्चो की नफ़सियात और इदराक को लम्हूज खातीर रखकर उनके सवालात के मुनासिब जवाब दे ताकि उनका जोश व शोक बढे और वो उकता न जा, बडो को बच्चो के सवालात से उलझन महसूस नही करना चाहि,।
अÛर बच्चो को डांट दिया या झडक दिया तो उसकी जहनी सलाहियपते मजरूह होÛी और उसके जवाब मे ंउकताहड और चिढचिढाहट पैदा हो जायेÛी और आÛे चलकर वो अपने उस्ताद या ज़हीन साथियों से किसी क़िस्म के सवालात नही पुछेÛा।
बच्चो के लि, अच्छे सवालात और उनके जवाबात उनकी दिमाÛी कसरत और सहत की जमानत है अच्छे उस्ताद बच्चो को पढाने मे बीच-बीच मे सवालात पुछकर उनकी तज्जे इस सबक या नज्म मे कायम रखते है। बच्चे के सवालात का जवाब देते वक्त इस बात का ख्याल रखना चाहि, के बच्चो मे बेकार और फालतू किस्म के सवालात करने की आदत न पडे। ,ेसा करते वक्त वो बेतुका बोलते है और जहन पर जोर नही देते बच्चो मे ये आदत पेदा करना उस्ताद का काम है के वो सोच समझकर मुफीद मतलब सवालात करें - Ûैर जरूरी सवालात सबक पढाने के बीच मे नही होना चाहि,। बच्चो को हर मुकाम पर सवालात करने का हक हैं। उस्ताद भी बच्चो से सवालात करके उनकी जहनी इस्तआदाद का पता लÛाता है। जब बच्चा सवाल का जवाब देने में हिचकिचाहट महसूस कर रहा हो या रूक रहा हो तो उसकी हिम्मत बढानी चाहि, ‘‘शाबाश’’ लफज का इस्तेमाल करने से बच्चे की याददाश्त और जवाब देने पर अच्छा असर पडता है। सवाल पुछने का ,क मकसद ये भी है कि उस्ताद असल मोजूक की तरफ बच्चे की रहनूमाई कर रहा है - दरस व तदरीस मे जरूरी है के उस्ताद को सवाल पूछने के Ûुर आते हो वो बच्चो की जहनी सलाहियतो, इदराक, रूहजानात और उसकी नफसियात से वाकिफ हो - सवाल माकूल और बमकसद हो।
सवाल का मकसद
सवाल का अहम मकसद बच्चे की तलाश को दूर करना और असल मोजू के बारें में मुकम्मल मालूमात हासिल करने के साथ रहनूमाई करना है साथ ही पढाने के तरीके कार को दिलचस्प और कार आमद बनाना । सवाल का मकसद ये होना चाहि, के सीखने वाला हसूले के लि, खुद महरक बने वो खुद अपने ज़हन पर जोर दे और Ûौर फ्रिक कर सकें।
सबक पढाते वक्त सवालात की बडी अहमियत है कामयाब उस्ताद तालिबे इल्मो को सबक मे महू रखने के लि, बीच-बीच में सवालात करते रहते है। जिससे सभी बच्चो को ध्यान सबक की तरफ रहता है, क्योकि वह डरता है कि उस्ताद बीच क्या पूछे लें। खुसूसन सबकी की तमहीद मे सवालात इक्तेहानी हैसियत रखते है। मअलिम का खास मकसद ये होता है के वो मोजू के मुतअलिक बच्चो की सबक का मालूमात जाचें और देख के अब तक उसने बच्चो को क्या पढाया है। उन्होनें कितना सिखा पढा और जाना है। उसके बाद बच्चो को सवालात के सहारे मंजिल व मंेिजल पढाते हुये सबक के आखिर तक पहूंच जाता है और फिर आखिर मे ंउस सबक से मुतअलिम सवालात करके ये जाने की बच्चे का रूझान कहा था और उसको कितनी मालूमात हुई मुअलिम तारीकी व मोÛराफिया को खुद बताये।
अच्छे सवाल की खुबियां
1- सवाल बच्चो की उम्र काबलियत, सलाहियत के मुताबिक हो।
2- सवाल वाजे हो जिससे पूछने वाले का मकसद भी साफ ज़ाहिर होता हो।
3- सवाल की ज़ुबान आसान, साफ, सूथरी और मुखतसर हो।
4- सवाल के अल्फाज फिकरे बिल्कुल वहीन हो जो इबारत या सबक में आये हो।
5- सवाल मे शबता और तससूल हो।
6- सवाल के जवाब मुखतसर हो - हां, नही, Ûलत, सही।
7- सवाल से सवाल पैदा हो जिससे बच्चे में दिलचस्पी बरकरार रहें।
ऊर्दु तदरीस
तालीम के तीन अहम पहलू हैं। मुआलिम बच्चा और मौजू तदरीस इन दोनो मे तअल्लूक और राबता कायम रखती है। बच्चा पैदाइश से ही बे सहारा होता है, उसे हर कदम पर रहनूमाई और सहारे की जरूरत है अÛर उसकी सही रहनूमाई नही हुई तो वो जिन्दÛी मे कभी कामयाब नही हो सकता - तदरीस मआलिम की राहनूमा है तदरीस
तदरीस से मुराद को अमल हे जिसके जरिये किसी खानदान या मआशरे के तजुरबेकार फराद मासूम और जाहिल बच्चो को अपनी जिन्दÛी Ûुजारने के लि, रहनूमाई करते है।
तदरीस के ममुअल्लिक लोÛो से Ûलत नजरयात रहे है। उनके ख्याल मे तदरीस का मतलब बन्धे तुके असूलो के सहारे मुर्कशह हिसाब के रटा दिया पूरा कर देना या बच्चो के दिमाÛ मे ठान देना रहा है आज से तकरीबन चाद दाई किव्ल तदरीस कुछ आये या नही बच्चे वे अमल थे जैसा उनको कह दिया जाता था वैसा ही करते वो लकीर के फ़कीर होकर रह Ûये थे।
दौरे हा ज़रा में तदरीस के मायने और मजुहूम बदल चुके है तदरीस का मतलब बच्चे को ,ेसे मौके फराहम करना है जिन से बच्चे अपनी दिलचस्पियों और रूजाहानात की मदद से अपने मसाइल खुद हल करने की सलाहियत पेदा कर सके वो अपने बहतर तुसतकवील के लि, खुद मन्जूबा बना सकें। जरूरी मवाद इक्ठठा कर सके और जो नतीजा निकले उसे वो काम मे ला सके - तदरीस का मतलब ज्यादा से ज्यादा मुअसिर अन्दाज मे इल्म की रोशनी से बहार करना है।
तदरीस के मकासिद
1- शबता कायम करना - तीनो में।
2- खुशÛवार माहौल बनाने मे माउन (मदद)
3- इत्म में इजाफा करना।
4- तरÛीब देना
5- रहनुमाई करना।
6- बहतर मसतकबील की तैयारी
7- रूजाहानात व दिलचस्पी पैदा करना
ऊर्दु तदरीस के मकासिद -
जब तक किसी काम के पीछे कोई वाजे मकसद न हो उस वक्त तक काम करने वालो में कोई वलकला पैदा नही होता है और न ही मकसद काम से कोई मुफीद नतीजा बर आमद होता हैं। इसलि, तो तदरीस के वक्त हमारे सामने ,क वाजे नसबूल,ेन होना जरूरी है ताकि तदरीस तुआसिर मुफीद या कारआपदा बताई जा सकें।
सभी जबानो की तदरीस के मकासिद कमो पेश ,क से होते है अÛर कुछ जाइद मकासिद और भी है तो वो उस जबान के मखसूस पसमन्जर मुल्की व कौमी या मआशरे की जरूरतो के मुताबिक मुतअशन किये जाते है। कोई जबान जिस आमूर की बिना पर मुल्की कौमी जिन्दÛी अहम ख्याल की जाती है दरअसल उन ही अमूर की तकमील ज़बान का ,ेन मकसद होता है।
हर जुबान के लि, उसका बोलना पढना लिखना और जुबान को समझना सिखना ये मकसद होते है। बच्चा अब इसे कमिया मे आंखे खोलता है तो उसी वक्त उस के कानो मे कुछ आवाजे आनी लÛ जाती है और उन आवाजो मे ,क आवाज उसकी मां की भी होती हैं - मादरी जुबान बच्चा अपनी मां की Ûोद मे सिखता है। इस जुबान के जरिये वेा अपने Ûिर्दोपेश के माहोल से शनासाई करता है और खारजी दुनिया से इसके बाद सिखी और बरती जाने वाली जुबान ने दूसरे मकसद मे आती है इस लिहाज से जब हम जबान की तदरीस करते है तो वो जहन में रखता होÛा के वो जबान व हैसियत मादर जुबान के Ûैर मादरी या सानवी हैसियत से तदरीस की जा रही है।
1 नसरीनजन की तफहीन ही काफी न समझी जाये बल्कि जुबानो बयां के लफजी के साथ-साथ इबारती अशारो के मायने का भी तुलेबा को अहसास कराना।
2 अंसाफ शायरी मे Ûजल, कसीदा, मसनवी, रूबाई कला के फनी लवाजिम से तुलेबा रूशनास हो सकें।
3 असनाफ नसर में किस्सा अफसाना, नाविल, ड्रामा खानेह निÛाई ,खाका, मजमून, 10 इन्शाइया के लवाजिम को जान सके।
4 मूम्ताज शअरा और मुसनिफ के कलाम तरजे तदरीर सवानेह की बाािफयते को हम जुज तसलीम किया जायें
5 जिन्दÛी के तमाम शौअलें
6 तकरीर और तहरीर का लबोलहजा मौअमर और इन्फराही जामा बनाया जा सके।
7 तुलेबा अपनी तहलीफी सलाहियतो बसनिददा सलाहैयतो को बूरोट कर ला सके।
8 तुलेबा के हफिजे मे मुतअद नजमे Ûजलात।
9 सहत तल्लफूज और मुहावरा ले का सही इस्तेमाल।
10 जुम्ले की साख्त अकसाम और कायदे जहनेनशी हो सकें।
मान्टेसरी तरीका तालीम
माॅन्टेसरी तरीका तालीम का रिवाज हमारे मुल्क मे आम हो Ûया है। कमसीन बच्चो के लि, ये बहुत ही कार आमद तरीका तालीम हें इसमे बच्चा इन्फरादी तौर पर तालीम हासिल कर सकता है, क्योकि माॅन्टेसरी का ख्याल था के हर बच्चे की जहनी जिसमानी नशीनुमा इन्फरादी तौर पर हो क्योकि बच्चा जिसमानी और जहनी ,तेबार से अलÛ-अलÛ सलाहिसतो का हामील होता है। वो बच्चे को आजादाना तौर पर तालीम देना चहाती थी। इनका ये भी ख्याल था कि बच्चे की शखसियत की तामीर पर सुकून और आजाद माहोल मे होना चाहि,।
माॅन्टेसरी तालीम के असूल
1- आजादी का असूल -
माॅन्टेसरी ने बच्चो की आजादी पर जोर दिया उनका ख्याल था कि बच्चे आजादाना तोसर पर अपने जहन और जिस्म दोनो की नशीनुमा कर सकते है। इनकी मरजी के मुताबिक खेलने कुदने ओर काम करने का मोका मिलना चाहि,। आजादी से मुराद बच्चे की फितरी सलाहयती और ज़हनी रूज़हानाते के लिहाज से चलने की आजादी मिलनी चाहि,।
2- ज़हनी व जिसमानी नशीनुमा -
माॅन्टेसरी बच्चे की अन्दरूनी सलाहियतो को उभारते पर जोर देती है। इन सलाहियतो को फलने फूलने और उभरने का मौका देती है, वो मुआलिम को ,क माली तरह मानती है जो उन पौधो की परवरिश बहतर करता है और उनको फलने फूलने और उभरने का मौका देता है।
3- बच्चे की शखसियत का लिहाज -
माॅन्टेसरी बच्चे बहुत अहमियत देती है बच्चे की भी अपनी ,क शखसियत है ओर ये शखसियत मजरूह नही होना चाहि, ,ेसा कोई काम नही करना चाहि, इसमे बÛेर उस्ताद के ही बच्चा अपने तौर पर बहुत कुछ सिखता है। उस्ताद को बच्चे के मामलात् मे ंबताय नाम दखन देना चाहि,। सिर्फ उस पर निÛाह रखना चाहि,। माॅन्टेसरी मे ,ेसे तरीके भी अपना,े जा रहे है के बच्चे खुद अपनी Ûलती सुधारे -
4- खेलकूद के जरिये तालीम -
बच्चे में खेलकूद के शोक फितरतन होता हैं। खेलकूद के जरिये कोई बात सिखना बहुत आसान हो जाता है। इस वजह से इस तरीके मे खेलकूद को बुनियाद बनाया जाता है। खेलकूद मे हुरफ शनासी Ûिनती वÛैरा सिख जाता है। बच्चो को खेलकूद से तालीम देने के लि, खिलोने और दुसरी चीजे बनाई Ûई है।
5- समाजी तरबीयत का असूल -
बच्चो का ?ार में उनको अपने सारे काम खुद करने पडते है, जैसे खाना लÛाना, कमरे की सफाई, परिन्दो और ?ारेलू जानवरो की देख रेख करना अखलाक व आदाब उठने बैठने का सलीका ये तमाम बातें माॅन्टेसरी तालीम से बच्चे को खुद आजादी हैै। इसमे बच्चे की माहोस से मुताबिकत कराई जाती है अहसासात की तरबीयत
तदरीस क़ुवाइद/ऊर्दु कुवाइद -
कुवाइद की तालीम का मकसद से हेै के कुवाइद सिखने से आÛे चलकर बलाÛत की तहसील मे आसानी होती है और दुसरी जबान सिखने से पहले अपनी जबान की कवायद से वाकिफ होना बहुत जरूरी है इसके पढने से जुमले की तहलील और लफजो की नशस्त का अन्दाजा होता है। इससे बडा इजाफा ये होता है के अÛर कोई तालीब-,-इल्म समझ-बुझ कर कुवाइदकी तहलील करे तो वो अमल तखील की तहलील करता है।
कुवाइद के इस्ला ही मयाने जबान का वो इल्म है जिस मे जबान की साख्त हुफ्र की बे साख्त अल्फाज की कसमे और ताईम के अनूल मअवूद के कायदे अल्फाज सारजी के कवाइन अकवाल व अफआल की किसमे मुफरिद व मुर्रकिब अल्फाज जुमलो की बनावट और किसमे इौर किस्म के दूसरे मसाइल जेरे बहस आते है।
जबान दानी के लि, कवायद की तालीम बहुत जरूरी है खवाह जुबान का इस्तेमाल तकरीरी हो या तहरीरी मुखतलिफ जुबानो मे कुवाइद की किताबें मौजूद न होती तो मादरी ज़बान के सिवा किसी दुसरी ज़बान का सिखना बहुत मुश्किल होता है। दुसरी जबान के अलफाज कुवाइद दुसरी जबान को सीखने मे मारून साबित होती है। इबतदाई जमातो मे तुलेबा मे ये सलाहियत नही होती के जबान के उसूल व कुवाइद को समझ सके वो कुवाइद की अहमियत को महसूस भी नही कर सकते और इनके सामने रखी जाये तो वो जबान से मनफिरद होकर किनारा कशी करने लÛते है। इसके बर अकस हम ये देखते है कि तुलेबा कुवाइद के बारें मे नही जानते है फिर भी इनकी तहरीर व तकरीर कुवाइद के उसूलो के ,न मुताबिक होती है यानी अपने Ûिर्दो पेश में इस्तेमाल किये जाने वाले फिकरे या इबारत सही इस्तेमाल किये जा सकते है।
इस जबान की तदरीस का बहतरीन मुआल्लिम खुद तुलेबा क माहोल होता है। जिस में वो अमल तौर पर कुवाइद की मुख्तालिफ उसूलो की महारत रखते हैं। इन सतहो मे हमको दो मुखतालिफ इशारो का अहसास जरूर होता है वो अव्वल थे के जबान बच्चा अपने माहोल मे सीख लेता है। दोयम ये कुवाइद की तालीम जरूरी और ला बदल है इसलि, कुवाइद की तदरीस की तालीम जरूरी है और इन दोनो Ûिरोहो के खिलाफ कुवाइद मन्जरेआम पर नही हो सकती है। कुवाइद तदरीस है और कुवाइद की तदरीस मे भी बिलख्चासस तदरीसी तरीका का तौर कुवाइद को पढाने के दो तरीके है।
इसतखराजी तरीका -
यंे कदमी और रिवायती तरीका है इसमे कुछ सलाह यानी उसूल व कायदे लिखाये जाते है तुलेबा को इम लिखी हुई इमतलाहो को रटा दिया जाता है । फिीर उनकी मिसाल फराहम की जाती है और नई सुरतो हालत में रतलाक करा दिया जाता है ।
1- इस तरीके कार का नुस्ख ये होता है के तुलेबा उन तारीफो को मुअल्लिम के हुक्म से रट लेते है और उनके फन्नी इतलाक से सरोका होता है न ही वो इनकी तफहीम पर जोर देते है नतीजा मआने व मतालिब से महरूकी और न समझी की मुश्किल सामने आती हैै।
2- तुलेबा पामर अलÛ से मजमून समझकर अपने को दूर रखने की कोशिश करते है। वो इसको परेशान कुन बकेफ समझ कर मुन्तअम हो जाते है।
3- ये तालीम के अहम् उसूल मुर्क़रून मुर्जरत मालूम से न मालूम की तरफ।
4- तुलेबा जुबान को हर शे और इस्तेमाल मे इसकी अफादियपत को अहसास नही करते है बल्कि उसे जिन्दÛी के बाईद जानने लÛते है और अमल काम सानवी हैसियत का हो Ûया है।
5- इसमे तुलेबा सिधे ही जूज या अजमा,स सामने आ जाते है।
6- तुलेबा के ज़हन को तदरीस की तरफ आमादा नही किया जा सकता।
इस्तक़रारी तरीका -
इस्तकारारी के लफजी मानी ढूंढकर किसी खास चीज से आम नतीजा निकलता है। अपने मानवी अन्दाज हू बहू इस तरीके कार मे कुछ फिकरे या इबारते की जाती है और उन्ही के जरीये तफहीम करते हुये कुछ तारीफे मुर्रतब की जाती है और उसूल आखुज किये जाते है और आखिर मे मशकी अमल के तौर पर कुछ अच्छी मशके दी जाती है। मिसाल के तौर पर Ûौरी ने अजमेर और दहली की फतह किया था। कुतुबुद्दीन ,ेबक को तअेनात किया था और इल्तुतमिश ने हिन्दुस्तान मंे सल्तनत की बुनियाद डालीं।
ये इबादत तुलेबा के पेश नजर लाने के लि, था। लाने के बाद हिदायत दी जाये के इस इबारत को पदो और जुमले पर Ûौर करो खास तौर से उन अल्फाज पर फतह किया तैनात किया बुनियाद डाली इन पर कुछ सवालात तलब किये जाये।
1- सवाल - अजमेर व देहली को फतह करने का काम किस ने किया - Ûौरी
2- हुकुमत की देखरेख और इन्तेजाम के लि, किस को मुर्क़र किया था। - कुतुबुद्दीन ,ेबक
3- मुस्लिम हुकुमत की बुनियाद किसने डाली - अलतमश ने
ये वजाहकत कि जाये के काम किसने किया इस काम सवाल के जवाब मे जो जवाब (,क लफज) आता है उसे काम करने वाला कहते है। इस तरह नतीजा या उसूल ये बनाया Ûया के काम करने वाले को फाईल कहते है। इस इबारत की मफउल की तारीफ मिसाली अन्दाज मे करते है।
1- इस्तकरारी तरीका मालूम से न मालूम और कुल से जुज की जानिब मकरूम से मुर्जरह की तरफ तुलेबा को रूजूह करता है, जो के उसूले तालिम के माफिक है।
2- इस तरीके मे कुवाइद की तदरीस मे तुलेबा की जहनी -नशोनुमा के साथ दिलचस्पी का सामान भी फराहम होता है ।
3- नफ़सियाती ,तेबार से माहिर तालीम इस तरीके की हिमायत इसलि, करते है इसमे तुलेबा अपने माहौल मे से ही कुछ आमूजिश करते है। इसलि, माखूज उसूल जल्दअज जल्द जहन नशी हो जाते है।
4- इस तरीके से तुलेबा की कुव्वते -------------------------ही नशेनुमा नही होती बल्कि हमे इतहाक नजरिया कायम करने के ------------------------को भी तकुव्वीयत मिलती हैं
5- तुलेबा के जहन को Ûैर अन्जान और Ûेरमामूली तरीके से आमादा किया जाता है।
अमली तरीका
ये तरीका दर अमल इस्तकारी तरीका का ही दूसरा रूप है इस तरीके मे मदरीस को सबक की तदरीस से अन्दाजा लÛाया जाता है। के इस सबक मे कुवाइद की कौन - कौन सी बुनियादी बातो को बरूये कार लाया जाता है और इसके लि, मुमाकिनिपात क्या हो सकती है इस मामूली तैयारी के साथ सबक पढाया जाता है और इसबाक व जबान के लिसानी पहलुओ को दरसअमल मे लाया जाता है। वही इसके मुकाबिल कुवाइद का इल्म मिसाल या अन्दाज मे दिया जाता है ।
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हर तदरीस से किब्ल तदरीस का वाजे मौजू मौअल्लम के जहन मे होना चाहि, क्योकि अमले तदरीस के किब्ल हर सबक की ,क खास तैयारी की जरूरत होती है। खोमा मन्सूबा-,-संवक का नाम इस इस सिलसिले मे हमारी जहन मे आता है खोमा मन्सूबा बन्दी मुआल्लिम को राह दिखाती है के इसे तुलेबा को किस सीम्त ले जाना है ये मंजिल और राह मन्जिल दोनो संवाकिफ कराता है।
योमा मन्सूबा सबक उन उसूले फहरिस्त का उन्वान है जिन्हे मुआल्लिम दरजा मे हासिल करना चाहता है और उनमे वो भी जराये और मशाÛील भी शामिल है जिनकी वजह से मदद ये खे उसूल मअमर होते है।
क्मंपिदजपवद व िकंपसल न्दपज च्संद
मन्दजा बाला तारीफ मे तीन निकात अहम है।
1- मुआल्लिम किन मकसद और उसूल को हासिल करना चाहता ह।
2- इन मकासिद के उसूल मे वो किन माउनीन आशिया का इस्तेमाल करेÛा।
3- मुतअलामिन के जरियें किये जाने वाले वो माशाÛिल जो सबक से मरबूत हो।
मन्सूबा सबक से ये मालूम होता है के तुलेबा ने क्या आमूखत किया है और मजीद किस सिम्त उनको हिदायत दरकार है और रमुकर्राह साअत मे क्या तदरीस किया जा, और इस तारीफ के मुताबिक मन्सूबा सबक मे तीन बाते होना चाहि,।
1- मुतलमिन नया तुलेबा की सावकिया वाकाफियतं
2- सबक का मकसद जो के हासिल किया जाना है।
3- मतन का खाका या शक्ली सूरत तैयार करना है।
तारीफ -
योमा मन्सूबा सबक ,क मुकर्राह वक्त के दरमियान मे किसी जमाअत मे किसी भी मजमून को किसी उन्वान के तहत् मुआल्लिम और तुलेबा के दरमियान मखसूस मकासीद की तहसील व मशाÛील का वो खाका है जिस मे मुआल्लिम तुलेबा की साबकिया वाकाफियत का पता लÛाते हुये तदरीस मतन का अहाता व तरीका ,-कार का इन्तेखाब करता है और आखिर मे तुलेबा की जहननशी का जाइजा लेता है ।
मन्सूबा-,-सबक की अफ़ादियत
इस जमन मे इस बावत ये बातें की जा सकती है जो इस तरह
1- इस से मुआल्लिम का काम सिलसिलेवार और सलीकेवार हो जाता है ।
2- मुआल्लिम को उन मकासिद का इल्म हो जाता है जिनके उसूल और उसका मकसद क्या है।
3- मुआल्लिम तदरीस मे खुद अतमादी पैदा करता है ।
4- मुआल्लिम सबके के मुखतालिफ अजमा, मे राबता कायम कर सकता है ।
5- मुआल्लिम मतन की तरकीब बहतर तरीके से कर सकता है।
6- मुआल्लिम तुलेबा का बसूबी हिदायत दे सकता है ं
7- इखतेताम मे तदरीस पर ये अन्दाजा लÛाया जा सकता है के मवाद सबक का इजाद कहा तक हुआ
सबक की तैयारी के लि, मुआल्लिम के ये जरूरी होता है ।
1- पढाये जाने वाले मौपू व सबक उसकी तफसीलात और हवालो से पुरी तरह से वाकफियत रखें।
2- ख्चाुद ,तेमादी के साथ पढाने के लि, मकासिद सकब का खाका मुआल्लिम के जहन मे हाना जरूरी है ता के मतन की तरवीज तरतीब से हो सके।
हिदायत
1- मुर्कर वक्त मे इबारत को खामौशी साथ पढा जाये।
2- पढते वक्त मुकम्मल खामोशी रहनी चाहि,।
3- पढते वक्त सिर्फ नजर से काम लेना चाहि,।
4- उंÛली पैन्सिल या किसी और चीज के सहारे नही पढना चाहि,।
5- पढते वक्त सीधे पढना चाहि, और किताब भी सीधी रखनी चाहि,।
6- खामोशी रव्वानी के बाद फौरन किताब उलट देनी चाहि, ताकि उस्ताद को मालूम हो जा, के तुलेबा ने खामौश रव्वानी खत्म कर ली।
फायदे
1- खामोश मुतालाम मे बच्चा तेजी से पढ सकता है।
2- बच्चे खामोश मुतालाअ मे कभी भी बात को कई बार दोहरा सकता है।
3- खामौश मुतालाम मे दिमाÛ पर ज्यादा जोर पडता है और थकावट भी कम होती है।
4- बच्चा ज्यादा से ज्यादा पढ लेता है ं
5- खुद मुतालाअ की आदत पडती है।
6- इससे दुसरो को परेशानी नही होती है।
7- खामौश मुतालाअ बच्चे को सोचने , Ûौर फिकर करने का दरस देता है ।
तदरीस मे मुआल्लिम को मुतआलिम के मुताबादिल करता है या करता हुआ पहुचा है इसके लि, जिस अन्दाज को इख्तेयार करता है वो तरीका तालीम कहलाता है।
खवान्दÛी का तरीका
पढना सिखाने के लि, कदीम जमाने से लेकर आज तक मुखतालिफ अकसाम के तरीके रूपौश होते है मजीद तलाश और तहकीक और पिराया अमली पिराया हैं। मोअयत के ,तेबार से बुनियादी और अहम उन तरीको मे जो इस्तेमाल महसूस करते है। इसका राज इस उम्र में महफी है के ये या तो जुज से कुल की तरफ या फिर कुल से जुज की तरफ इकदाम करते है इसके लि, बा मालूम दो तरीके बुनियादी और अहम है।
1- तरकीबी तरीका 2- तहलीली तरीका
1. तरकीबी तरीका - ये मशरीकी तरीका हे इसको अलीफ हाई तरीका भी कहते है। इस तरीके मे जुज से कुल की तरफ तदरीस की जाती है पढने लिखने के लि, पहले हुरफ तहज्जी की शनाख्त कराते है । फिर अराब के साथ हुफ की Ûर्दान की पहचान कराते हैं।
2. इसके बाद लफज साजी सिखाते है इसमे पहले जेर के साथ फिर जबर के साथ फिर पैरा के साथ हु्रफ का इलहांक होता है।
3. अल्फाज के बाद दो जुल्मे फिर सा अल्फाज और चाहार अल्फाज जुम्ले तशकील कराये जाते है। जुम्लो के बाद Ûिर्दो पेश और माहोल से मुतालिक आसान इबारत से ये तदरीस मुश्किल इबारत की जानिब तदरीस इकदाम होता है।
4. इस तरह छोटी ईकाई से बडी इ्र्रकाई की जानिब इस तरीके कार मे चलाते है।
खुबियां
1- जैसे-जैसे अजजा, तरकीबी मसलन हु्रफ की शनाख्त हो जाती है जबान की बडी इ्रकाई तशकील पायी जाती है।
2- तदरीस के माकेअ तरतीबवार होते है जो के मशक के लि, सहल होते है।
3- नफसियाती नकते नजर से चुके आसान से मुश्किल की जाने बडा जाता है इसलि, आमूंजिश यानी सीखने मे पैचितÛी हो जाती है।
4- इस तरीके से अजजार तरकीबी अल्फाज के बखुबी सिखे जा सकते है और हुफ से अल्फाज बनाने की महारत को नई सूरत या हालात मे इस्तेमाल किया जा सकता है।
5- मनकी तरकीब ओर नज्म के बाइस और आमूजिश मे पैचितÛी के साथ वक्त भी कम लÛता है।
6- मुआल्लिम बगैर किसी खास तैयारी या मेहनत के दरस दे सकता है
7- जखीरा-,- अल्फाज तेजी से बढता है।
8- इसमे तल्लफू या इमला की Ûलतियां बहुत कम होती है।
खामियां
1- बच्चे की फितरत के खिलाफ सुई है क्योकि बच्चे अपने माहोल मे पुरे पुर फिकसे ज्यादा चुनते है।
2- मवादे तालीम का ताअल्लुक बच्चो की जिन्दÛी से नही होता है।
3- हुफे तहज्जी सिखाने मे इतना वक्त सिर्फ हो जाता है के जबान की तदरीस दीÛर अधुरी रह जाती हे।
4- ये तरीका खुशकी है बच्चो का शोक मौहयया कराने मे कासिर रहता है।
5- तरकीबी तरीका तदरीस मे तफहीन पर तव्ज्जे कम हो जाती है और हु्रफ पर तवज्जे कम हो जाती है
6- इस तरीके से मालूम से ना मालूम की तरफ रूजह नही किया जा सकता ह। हु्रफ से अल्फाज की तरफ रूजूअ होना उसूल तालीम के मनादी मससलन सावकिया वाकफियत
7- ये महसूस से ना महसूस की तरफ चलने के खिलाफ है
8- सुतियाती लिहाज से बच्चे हु्रफ की आवाजो से जल्द आशना नही हो पाता है । बच्चो के कानो मे कई आवाजे ,क साथ पढती है
इस तरीके मे ह्रुफ की असली आवाजे सिखाने के लि, जौर दिया जाता है। हुफ जो के दरअसल मुख्तालिफ आवाजो के नाम है इसलि, इन हु्रफ को सिखाने Ûोया उन हु्रफ की आवाजो को सिखाना है आवाजे सिखाने के बाद इन आवाजो से हुु्रफ और लफज व आसानी से बना, जा सकते है ।
1- आवाजो शनाख्त और उनके हुु्रफ बनाये जाते
2- हु्रफ इल्लत पहले सिखाये जाते है। इसके बाद हुफे तहज्जी
तहलीली तरीका खुबिया
1- इसमे कुल से जुज की जानिब इकदाम करते है।
2- इसमे लफज को इ्रकाई तालीम किया जाता है।
3- इसमे जुम्ले से लफज और लफज से हु्रफ की पहचान कराई जाती है।
4- इसमे पढाई की तफहीम पर जौर दिया जाता है ।
5- इसमे ईकाईयो बमायने होती है और बमायने मवाद को इस्तेमाल किया जाता है।
6- इसमे हु्रफ की शनाख्त का काम ैमबवदकतल सानवी है सियत रखता है ।
7- ये बच्चो की फितरत के मवालिफ है क्योकि के बच्चे अपने Ûिर्दोपेश के माहौल से जुम्ले सुनते है।
8- इसमे तुलेबा हु्रफ की इनफिरा दी आवाजो से जल्द आशना हो जाता है।
9- सिखने दिलचस्पी बना, रखना भी खास होता है ।
कमीयां
1- ऊर्दु का रस्मूलखत कुछ ,ेसा के अक्सर हुु्रफ की शक्ले बदल जाती है बात-बस बीच मे तीन मुखतालिफ सुरते है जिनको याद करने मे Ûैर मामूली मेहनत और तव्जेज की दूशवारिया होती है।
2- नये अल्फाज को बच्चे की मदद से पढने से ज्यादा मदद नही होती है ।
3- अल्फाज का सही तल्फफूज अदा करने मे परेशानी होती है ।
4- मालूम से नामालूम, मुश्किल से आसान, कुल से जुज पढने मे अहम तालीमी उसूल है जो इस तरीके कार में बरकरार रहते है। खेल खेल मे तालीम इस तरीके से बच्चा चन्द दिनो मे ही पढना सीख लेता है जो कि तुलेबा मे खद ,तेमादी पैदा करता है।
पढना
पढना - पढना लिखना जबान की तालीम के अहम अजजा, है। इनके बÛैर उर्दु तदरीस का मकसद अधुरा है। पढना लिखना सीखने के लि, अहतेमाम की जरूरत होती है इसमे तालीम की भी जरूरत होती है। पढने के फन की अहमियत भी ज्यादा होती है के जब तक पढने से ना आशना हो लिखना सीखना मुश्किल हो पढने का अमल लिखना सीखाने मे बराय दास्त मदद करता हैं। इसलि, लिखना सीखाने से पहले पढना सीखाने पर ज्यादा जोर दिया जाता है। अमली व अदबी सरमाये से ईस्तेफादा उसी वक्त मुक्किन हे जब पढना आता हो। इसलि, बोलने की कमजोरियां यकसा ही होती है। जो ये है कि बच्चे और का तल्फूज दूरस्त नही कर सकते है मसलन
1- Ûलत तलफ्फूज करने के आदी हो जाते है।
2- जरूरत से ज्यादा मदहम या बुलन्द आवाज में बोलते पढतें है ।
3- बहुत ज्यादा ठहर-ठहर कर बोलते व पढते है।
4- बहुत तेज रफतार से बोलते है व पढते है ।
5- हकलाक व तुतलाहट की वजह से सही बोल व पढ नही सकते है।
कमजोरियो की वुजूहात
1- जहनी तौर पर पसमान्दा ?ारानो से ताल्लूक होता है।
2- अक्सर गैर हाजिरी के बाईस जरूरी असबाक अकेदामात के सिलसिले से महरूम रहने पर तसलसूल टूट जाती है।
3- तरीका - , - तदरीस मे तबादिलिया या किसी खास तरीके तदरीस की सख्ती से पाबन्दी
4- हाफिजे की कमजोरी के बाईस साबकिया मामूलात से फायदा न उठाना
5- तुलेबा की कमजोरिया के उनकी कराअत मिसाली बच्चो की रहनूआई सही नही करती है।श्
6- जबानी काम वो भरपूर मशक नही कराना चाहि,।
जबान के मुखतलिफ हिस्सो पर नोट लिखि,-
जुबान के 6 हिस्से है बोलना, पढना, लिखना, इश्ंाा और कुवाइद उस्ताद का काम है के जबान सिखाने के लि, उन बच्चो का ख्याल रखते है बच्चो की जुबान के इरतकाई मन्जिल ते और मुखतलिफ मशाÛील के जरियें बच्चो कोे जबान पर कुदरत हासिल करने मे इसकी अहमियत दूरसे मुजामिन के मकासिद के मुकाबले मे ज्यादा है।
बोलना -
इबतदाई उम्र मे बोलना सीखने का अमल कुदरती होता है। बच्चा सुनकर नकल करता है और बोलने लÛता है बच्चे के मां बाप, भाई-बहिन, जबान सीखने मे इसकी मदद जरूर करते है। मुखतलिफ आवाजें खुद दोहराते है और कोशिशे करते है बच्चा भी उन आवाजो को दोहराता है -
बच्चे के मां और रिश्तेदारो का काम होना चाहि, के बच्चे के Ûलत बोलने और तुतलाने पर इसका मजाक न उडा, बल्कि प्यार से सही बोलकर बताये अÛर बच्चे को यह अहसास हो जायेÛा के इसका मजाक उडाया जा रहा है तो वो शर्माने लÛेÛा बोलते हुये डरेÛा। इसलि, मां -बाप, भाई-बहिन व उस्ताद को इस बात का ख्याल रखना चाहि,।
पढना -
पढाई का अमल - पढना ,क ,ेसा अमल है जिसके तहत लिखने वाले के ख्यालात से आÛाही पैदा की जाती है और इस मवाद की तफहीम मे मदद मिलती है। जो इस इबारत में पैशिदा है लिहाजा पढना, लफजो को सिर्फ जबान से अदा करने का ही नाम नही है बल्कि ये आमूजिश का ,क पैचिदा तरीका है। पढाई का अमल मकसद बलज्जत नही है के इसके जरिये महज महारत या फन सिखाया जाये पढाई के जरीये बच्चो की मामलात मे इजाफा किया जाता है। उनमे खुद ,तेमादी पैदा की जाती है और इस बात की सलाहियत पैदा की जाती है कि वोे आने वाले मसाइल को सहूलियत के साथ हल कर सके।
विलियम ,स0 Ûैव के नजरिये के मुताबिक
विलियम Ûैव ने तमाम उम्र पढाई की बारिकियों को समझने और समझाने मे सिर्फ कर दी उनका कहना है कि पढाई के अमल की कैफियत कुछ यू है - ‘‘ बच्चे के सामने ,क किताब रखी है जिसके सफाहत पर कुछ लफज और जुम्ले लिखे हुये है बच्चे से ये तव्वको की जाती है कि वो छापे हुये लफजो को पढेÛा बच्चा पढना शुरू करता है उसकी आंखे छापे हुये अल्फाज को देखती है उर्दु मे छपाई चुंकि दाये से बांये होती है और नजर मुकतलिफ मुकामात पर ठहर जाती है। इस तरह से ,क ,ेसा आशमाी अमल वकूअ पजीर होता है। जिसके जरिये दिमाÛ तक पैÛाम रूसाई होती है इस अमल मे तकरार व मशक का अमल बराबर होता है। अÛर बच्चे ने लफज को कई बार देखा है तो लफज व सूरत दोनो का इवलाÛ बराबर यानी बेवक्त हो जाता है। इस्तलाही जबान मे इसको बसारती लफज कह सकते है। इसकी मजीद वजाहत यू की जा सकती है अÛर पढने वाला नजर से लफज की शनाख्त न कर पाये तो वो बसारती लफज न कहलायेÛा इसी सूरत मे उस्ताद को चाहि, की वो तालीबें इल्म को लफज की शनाख्त का मुकतलिफ तरीके बताये ताकि पढने वाले खुद लफज की शनाख्त कर सकें।
पढाई शुरू करने का अमल
1- निÛाह जबान की लिखायी को देखती हुये दाये से बांये तरफ जाती है फिर दुसरी सतह के दायें जानिब से शुरू हिस्से पर लोट आती है।
2- बच्चा इस लफज को पुरी तरह पहचानता है जब वो ‘ दो’ कहता है तो चाहि, दूसरे सुनने वाले इसे कुछ भी समझे लेकिन माँ उसका मतलब समझकर दुध पिलाती है इसलि, की बच्चे का जखीरा - , - अल्फाज महदूद है।
3- फौरन इसके मतलब का इल्म होता है।
4- साबका वाकफियत से ताल्लुक कायम करता है और पढते वक्त मवादे मजमून हासिल करता रहता है।
5- अपनी याददाश्त कायम करता है। पढना शुरू करने से पहले बच्चा लिखाई देखता है। उन्हे पहचानता है। उसके मुतासिर होता है । अपने तजरबो का इस्तेमाल करता है। पढना सिखाते वक्त दो बातो का ध्यान रखना जरूरी है।
1 उन तरीको को समझना
2 उनमे मुनासिब तरीको का इस्तेमाल करना।
पढाई शुरू करने से पहले तुलेबा को पढने के लि, भी तैयार करना जरूरी हैं। दिलचस्पी पैदा होने से तुलेबा मे शौक पैदा होता है। पढना सीखने से बच्चे को क्या-क्या फायदा होता है। और क्या - क्या सहुलियत हासिल होती है। इसके मालुम होने से बच्चा खुद पढने लÛता है। जमात मे ,ेसी तसाविर आवाजे करनी चाहि, जिन पर अल्फाज या जुम्ले लिखे हों। उनके जरिये बच्चे वाकियात समझ सके उन वाकियात को देखकर उन के नाम तजवीज करने की सहूलियत उनमे पैदा हों और वो लिखे हुये अल्फाज को पढने के लि, बैताब हो जा, । बडे-बडे हुरफो मे लिखकर लटका दी जायें- दिलचस्प और अच्छी कहानिया सुनाई जा, इससे पढाई का शौक पैदा होने के साथ-साथ तलफफूज की अदायÛी पर भी ध्यान जाता है। इसलि, तुलेबा से भी कसरत से ज़बानी काम करवाना चाहि,।
पढना सीखाने की तरतीब
1- बैठने का तरीका
2- किताब को नजर से दुर रखना।
3- हु्रफ की पहचान किसी माॅडल वÛैरा के जरियें समझाना।
4- दो हु्रफ सा हु्रफ चाहार हु्रफी अल्फाज बनाना सीखाना।
5- तख्ती व खुश खत के जरियें सीखाना।
6- जबान की अदायÛी दूरस्त करवाना।
7- इबतदा मे ंबच्चे को बडे को बडे ही प्यार से समझाना।
लिखना - बच्चो को लिखना सीखाने का तरीका इबतदाई मे बच्चे कोरे काÛज की तरह हेाते है। उसे जिस अन्दाज मे तरतीब देने चाहो वो ढल जाता है क्योकि वह मासूम होता है सुनना व बोलना व मादरी जबान सीखना तो बच्चा मां की Ûोद मे ही सीख लेता है। ?ार के माहौल और समाज के रंÛ बिरंÛे माहौल से न,-न, अल्फाजात का जखीरा तो हासिल कर लेता है लैकिन इसको लिखने मे दिक्कत पैदा होती है। इसको दुरस्त करने के लि, मदरसा स्कूल की जरूरत होती है।
इन इदारो मे खेल नजम खिलानो का सहारा लेकर सीखाया जाता है श्ुारू मे बच्चे के लि, स्कुल व मदरसा का माहौल Ûैर मानूस होता है। इसलि, शुरू मे बच्चे पर ज्यादा जोर नही देना चाहि,। जब बच्चा कहानी सुनने दोहराने व नज्म देाहराने जबानी याद करने मे दिलचस्पी लेने लÛता है। हु्रफ सनासी के बाद लिखने की दिक्कत आती है यानी जब तक बच्चे के जहन में ह्रुफ व अल्फाज की सही अशुकाल न बैठ जाये आखों मे न समाजाय लिखने पर जोर देना मुनासिब नही है।
लिखना सिखाते वक्त ये बाते ध्यान रखी जायें
1- चिकनी मिटटी से हु्रफ का माॅडल बनाकर दफती के टूकडे पर चिपका दिया जाये और उसे दिवार पर लटका दिया जायें।
2- दफती पर खुब मोटे कलम से या रंÛीन चोक से मोटे हु्रफ लिखे जाये और उन्हे काट दिया जायें और काटे हुये हु्रफ पर बच्चे उंÛली फेरें।
3- जमीन पर चुने के हु्रफ बनाइये और बच्चे सफाई से हु्रफ की निशानी पर नाली खोदे और उसमे पानी भरें।
4- ,क नुकतें दो नुकते अलीफ वÛैरा आसान हु्रफ अजजा, काÛज पर मोड कलम से लिखकर बच्चो में तकसीम करें।
5- हु्रफ कार्ड बनवायें।
6- लकडी का कलम, लकडी की तख्ती इस्तेमाल करें।
7- खुश खती।
हु्रफ शनासी (इम्ला व रसमूलखत)
इन्शा - इन्शा की आमतौर पर तीन सुरते होती है।
1- इंशा वेा हे जिसमे रोजमर्रा के काम मे उस्ताद का साबका पढता है। यानी जब वो उर्दु की दरसी किताब पढता है तो हर सबक के आखिर मे थोडा बहुत तहरीरी काम भी करता है। (अ) अल्फाज का जुम्लो मे इस्तेमाल (ब) खाली जÛह को पुरा करना। (स) कहानी का खुलासा लिखवाना।
2- दुसरी किस्म की इंशा मे मकरूत मौजू या किसी खास Ûरज से तहरीरी तौर पर इजहार ख्याल किया जाता है या कराया जाता है जैसे:- वाके निेÛारी, मजमून निÛारी, खतननीसी, दरख्वास्त नवीसी वÛैरा
3- इंशा की तहरीरी किस्म मे जिसका ताल्लूक दीÛर मजामीन की तालीम से होता है। सÛामी उलूम आम मालूमात की आम किताब पढते वक्त तालीबे इल्म नोट लेता या सबक का खुलासा लिखता है। मजमून की आमूजिश मे बहुत मदद मिलती है। (अ) नकल नवीसी (ब) इमला नवीसी (स) दरख्वास्त (द) खत नवीसी (य) फार्म की खानापुर्ति (र) मजमून नवीसी (ल) इस्लाह वÛैरा इस तरह इंशा के इसमे सहत व सफाई के साथ अपने माफी उल जमीर को अदा करने की सलाहियत पैदा होती है। दुसरी जानिब इसके जरिये इसके ख्यालात मे सफाई और मुनतकी रखत पैदा होता है और मुनतकी की अन्दाज मे Ûौर व फिक्र करने का आदी होता है। इसमे तुलेबा मे इजहारी कुव्वते तरक्की का वसीला साबित होती है।
कुवाइद:- ,क ,तेबार से कवाइद से जबान की तशरीह होती है इसके जरिये जबान की सहत अदम सहत का ताअइन किया जाता है। Ûौया कवाइद के जरिये ये बताया जाता है के बोलकर या लिखकर सहत के साथ ज़बान इस्तेमाल की जायें।
कवाइद जबान की साइंस है इसके जरिये जबान की साख्त का इल्म हासिल होता है - अल्फाज से बनते है, अल्फाज अपनी शक्ले चुले बदल लेते है फिर किस तरह अदा किये जाते है और जुम्लो मे इस्तेमाल करते वक्त उनकी क्या सही सुरत होनी चाहि,- अल्फाज किसी खास तरतीब के साथ जुम्ले मे इस्तेमाल होता है तो मफहूम कैसे बदल जाते हैं इस सब बातों की वजाहत व सराहत कवाइद के जरिये होती है। इसके जरिये तालिबे इल्मो मे कुव्वते अतकार पैदा होती है। तखयूल व तअकिल और तहलील व तरतीब की सलाहियत फरोÛ पाती है। ये सलाहियत शेरो अदब की तफहीम व तहसीन मे माअन होती है लिहाजा जबान के लि, कवाइद की तालिम जरूरी है।
कवाइद मकसद व लज्जत नही बल्कि ये जबान की मुखतालिफ महारते पेदा करने का ,क जरिया है नकल लिखना हो या इमला तसवीरी इंशा हो या मुकमक्ल ख्यालात हर मन्जिल पर कुवाइद का इल्म मुफीद साबित होता है। इसलि, तकरीरी इंशा मे भी कवाइद की तालीम से मदद मिलती है।
प्रश्न ः लिखना सिखाने के लि, क्या तरीका के राइज है तहरीर करें मिसाल के तौर के साथ बयान
किजि,।
उत्तर ः जहन इंसान से कदीम से लेकर आज तक जो अम्ली व अदबी कारनामें है वो तहरीरी सुरत मे है। उन तहरीरो से ही हमारी रहनूमाई होती है और हम अपने इस्लाफ की तखलिकात व इजादात व ख्यालात वÛैरा से तहरीर के जरिये इत्तेफादा करते है। तहरीर जबान की अमली शक्ल होती है यानी तहरीर मे Ûौयाई को ख्यालात के जरिये अल्फाज की अमली शक्ल दी जाती है। लिखना ,क जरिये की अहमियत रखता है ये जबान की तदरीस का निहायत अहम जुज है इसमे जबान की तदरीस की अमली शक्ल देने मे मदद मिलती है। बच्चो की जहनी नशोनुमा मे भी मदद करता है चुके लिखने मे जिस Ûौर व फ्रिक से काम लेना पडता है बोलने या पढने मे इसकी जरूरत नही होती लिखने मे हाथ लब जबान, तालु, नजर, जहन और दूसरे हवास भी मुशतरीक होते है और सबक को बआसानी जहन नशी करने ओैर अपनी शख्सियत को उभारने का भी ,क जरीया बन जाता है। लिखने का ढंÛ पुहो और उंÛलियों और बाजुओ के निचले हिस्से की हरकत पर मुनासिब है और लिखाई के वक्त बच्चो को सीधा बैठने की आदत डालनी चाहि, और काÛज को आंख के सामने से 12 इंच दुर रख कर लिखना चाहि, लिखने मे सफाई नशिस्त अल्फाज शोशा व नुकतो को सही जÛह लÛाना ह्रुफ की साख्त मे यकसानी व हमवारी और अल्फाज के दरमियान मुनासिब फासले पर जोर देता है।
लिखने के लि, हाथ के पुछों की तरतीब के मशाÛील तजवीज किये Ûये है। जो मन्दर जा जेैल है।
1- काÛज काटना और चिपकाना।
2- माॅडलिंÛ करना।
3- तसावीर बनाना।
4- ड्राईÛ बनाना।
5- रेत पर उंÛली फेरना।
6- हु्रफ की शक्लो पर उंÛली फेरना।
7- ह्रुफ की शक्लो पर चाॅक या पैन्सिल फैरना।
8- हु्रफ ठनजजमत चंचमत अक्कासी का काÛज के जरियें उतारना तहरीर के अम्ल मे तहरीर की बुनियादी महारते दरकार होती है - उर्दु मे तहरीरी साख्त मे पैचिदा अमल इख्तेयार करना पडता है इसलि, तहरीरी महारत पेदा करने के लि, तरतीब किव्ल अज तहरीर की जरूरत होती है और इस तरबीयत के लि, तजावीज किये जाने वाले मशाÛील जैल है।
1- सीधे खतुत खीचनां।
2- तिरछे खतुत खीचनां
3- टेडे खतुत खीचना।
4- क्रोसी खतुत खीचना।
5- रेÛमाल पर कटे हुये हुु्रफ पर उंÛली फैरना।
6- कटे हुये तारो को मोडकर हु्रफ की शक्ले बनाना।
7- उस्ताद के जरिये बने हुये खाको मे रंÛ भरना।
8- हवा में उंÛीली ?ाुमाकर लिखने की मशक करना।
लिखना सीखना अÛर वे प्रोÛ्राम तदरीस मे बोलने व पढने के बाद आता है लेकिन नई तहकीकात के बाद माना Ûया है के पढना या लिखना सीखना दोनो होना चाहि, ये दोनो ,क दुसरे से मिलेजुले है पढना सीखाने के मानिन्द लिखना सीखाने के भी कई तरीके है जैसेः-
1- तहलीली तरीका।
2- तरकीबी तरीका
3- मखलूत तरीका
Ûौरतलब बात यह है कि पढना सीखाने के लि, जिस तरीकेकार को चुना Ûया है वो ही तरीका कार इख्तेयार करना चाहि,।
डव्छज्म्ैैव्त्ल् डम्ज्भ्व्क्
इस तरीके से लिखना सीखाने मे लकडी या मोटे Ûत्ते के या रेÛमाल के हु्रफ बनाये जाते है। इन कटे हुये हु्रफ पर बच्चो की अÛुंलिया फिराई जाती है। इस तरीके से अल्फाज बनाकर बच्चो के जहन मे हमेशा जहननशी हो जाता है। इसके बाद हु्रफ की शनाख्त के बाद फिकरे लिखे जाते है - ये तरीका सोती जबानो के लि, ज्यादा मुफीद है क्योकि उनके हु्रफ अपनी शक्ल कम बोलते है। उर्दु के हु्रफ शक्ल बदल लेते है। दूसरे ये के इस तरीकेकार मे खर्च बहुत आता है। इसलि, ये ज्यादा मुफीद नही है ।
च्प्ैज्।स्वर््ल् डम्ज्भ्व्क्
इस तरीके मे सबसे पहले मुखतलिफ किस्म के खत खिचवा,ं जाते है जैसेः- मुस्तकीम, मुखनी, Ûोल, मुरब्बा, नस्फ दायरेनुमा वÛैरा फिर उन खतुत नकतो को जोडकर हु्रफ बनवा, जाते है। हु्रफ से अल्फाज और अल्फाज से जुम्ले लिखना सिखाया जाता है।
उर्दु मे शो-शो और जोडो की कसरत के बिना पर तहरीर के सीखाने मे बहुत ज्यादा वक्त लÛता है। इसलि, ये तरीका अमल मे बहुत कम आता हैं।
अबजदी या अलीफ बाई तरीका
ये तरीका कदीम जमाने से ही मुरव्वज है यानी पुराने वक्त से ही चला आ रहा है। इस तरीकेकार में अलीफ से लेकर या तक सारे हुु्रफ अलÛ-अलÛ लिखवाये जाते हैं। इसके बाद फिर दो हु्रफी अल्फाज लिखवाये जाते है। फिर फिकरे इबारते और इमला की दुरूस्तÛी मे आसानी होती है और बुनिया मजबूत हो जाती है, लेकिन ये तरीका उसूले तालीम के मुनाफी है। दिलचस्प नही है और वक्त भी ज्यादा है।
बीन Ûो तरीका:-
बीन Ûो तरीके में किस्सावारी, जुम्लावारी, लफजवारी तीनो तरीके हो सकते है। इबारते, जुम्ले या अल्फाज लिखवाये जा सकते है। फिर इबारतेा जुम्लो व अल्फाजो को अजमा, मे तकसीम करके इनफिरादी हु्रफ की तरफ मुतव्वज किया जाता है। उर्दु रसमूलखत मे हु्रफ की मुफरीद शक्ल तैयार और तरकीबी शक्ल मे बहुत फर्क होता है। इस तरीके कार के जरिये उर्दु सीखाना बेहद पैचीदा होता है।
मखलूत तरीका
इस तरीके मे जरूरत के मुताबिक अलीफ बायी और तीनो तरीको से ,क साथ मदद ली जाती है यानी कुछ सीधे हु्रफ लिखे जाते है। सीखाये जाते है तो कभी जुम्ले फिकरे या फिर इबारत जहां जिस तरीके की जरूरत का अहसास होता उसमे काम लिया जाता है ये तरीका अलीफ बायी के तरीकेकार कुन बाज दुशवारियों से काम लिया जाता है।
बच्चो के लि, बुलन्द रव्वानी मुफीद और जरूरी है बुलन्द रव्वानी से बच्चे का तालफूफज ठीक हो जाता है ं- कान, दिल, दिमाÛ सब बेक वक्त मसरूफ रहते है। नेज बच्चा इलमाक से पढता रहता है। अÛर बच्चा का तालफूफज सही नही है तो वो जबान की तालीम हासिल नही कर पायेÛा और न ही अल्फाज के मफहूम समझ पायेÛा - मुखतलिफ मजामीन की किताबे, अखबारात और रसाईल का इस्तेमाल बच्चे पढ कर ही करते है। हमारी रोज मर्रा जिन्दÛी मे अखबारात पढने, कहानी पढने और किसी को खत पढकर सुनाने का आम रिवाज है। हकीकत ये है कि बुलन्द रव्वानी ,क फन है। बुलन्द रव्वानी हसूल इल्म मे मुश्किल जबान और मजामीन को पढ सकता है और पढे हुये जुजब का खुलासा यामफहूम अपने अल्फाज मे बयान कर सकता है।
बूलन्द रव्वानी का मतलब:- जब हम बोलते हे तो ,क खास किस्म के जजबात अल्फाज के उतार चढाव और तलफ्फज के साथ बोलते है और जब किसी लिखी हुई बात को खुद पढते है या दुसरो को सुनाते है तो इसको सही तलफूज से पढने की कोशिशे करते हैं। किसी तहरीर या मतबूअ नसर नजम के इस तरह पढने को ही बूलन्द रव्वानी कहते है।
इबतदाई दरजात में बूलन्द रव्वानी की अहमियत:- हम चाहते है के बच्चा अच्छा मुर्कर बने खतीब नये सही तलफफूज के साथ पढ सके तो इबतदाइ्र दरजात और सानवी दरजात मे बूलन्द रव्वानी पर तव्जज देना होÛी। इबतदाई दरजात मे बूलन्द रव्वानी पर खुसूसी तवज्जे देने की जरूरत है इस मंजिल पर बच्चा ज़बान सीखता है इसको सही तलफफूज करने मे परेशानी होती है। इसलि, इसके पढने के किसी सबक या नज्म को बच्चो के सामने बहतरीन तलफ्फूज के साथ पढता है। नमूने की बूलन्द रव्वानी जितनी मोअसर सही और साफ होÛी बच्चे बआसन इसकी नकल कर सकेंÛें।
तकलीदर रव्वानी:- मुआलिम के पढने के बाद किसी होनहार अच्छे तालीब इल्म से वो इबारत या नज्म पढवाई जाये उसके पढने के दौरान मुआल्लिम को चाहि, के उसकी हिम्मत अफजाई करता है।
नसर पढवाना:- नसर पढने से नजस सीधे सादे ढंÛ से सही लफज के साथ पढना चाहि, ज्यादा तवील इबारत या पुरा सबक पढने में अहतियात बरतनी चाहि,।
नज्म पढवाना:- नज्म पढनी नसर पढने से मुखतालिफ है इसमे अल्फाज के उतार चढाव मोसीकियत और रजम का ख्याल रखना पढता है।
Ûेैर दरसी मसरूफयात
(जाइदं अज़ निसाब मसरूफियात)
आज यह बात सब ने तस्लीम कर ली है के स्कूलो और काॅलेजो मे महज किताबी कीडा नही रह Ûये बल्कि वो उन इरादो के Ûैर नसाबी मसरूफियात भी शिरक्त करते है। ,क जमाना था के वो इन मसरूफियात मे शिरक्त को वक्त की बर्बादी और मुताना के लि, नुकसान दा तस्व्वूर किया जाता है। मजीद बंरा इस अहद मे काम और खेल के माबीन इक्तेयाज को साफ तौर पर नही समझा जाता था।
तालीबे इल्म जब किताब मे मसरूफ होता था तो उसको काम से ताबीर किया जाता था। इसके अलावा वो हर चीज जो खेल में दाखिल थी वो मुताला मे मदाखलात समझी जाती थी बरहाल हम जानते नही के स्कूलो के Ûैर दरसी मसरूफियात की समाजी व अखलाकी पहलूओं को फरोज देते है और ये भी इसकी तालीम का ,ेसा ही हिस्सा है जैसा के किताबी मुताला इसलि, स्कुलो को अपने Ûैर निसाबी मशाÛील मे तालीबें इल्म को ज्यादा मौका फरहाम करना चाहि,।
ये बात याद रखना चाहि, कि इन मशाÛील के आÛाज का बहतरीन और मौजू वक्त तो नो बालÛी की मंजिल होती है। इसी जमाने मे तालीबे इल्म जबान पर कुव्वत हासिल करता है और यही वो वक्त है जब अपने इजहार ख्याल से दुसरो को मुतासिर करने का तकाजा पैदा होता है। स्कूलो को इमतकाजे से फायदा उठाना चाहि, और इसको बहतरीन मसरूफियात मे मुनतकील कर देना चाहि,। इन स्कूलो मे मनदरजा जैल मसरूफियात शामिल हो सकती है।
अदबी अन्जूमने
स्कुलो के निसाब में हर मजाअत और हर मजमून मसलन जबान सांइस समाजी उलूम का मकसद तालीबे इल्म को खताबत की तालीम व तरबीयत देना होता है हमारे मुल्क मे बदकिस्मती से इस आर्ट को बिल्कुल नजर अन्दाज कर दिया Ûया है। नतीजा ये है कि स्कुल या काॅलेज से फारिंÛ होने के बाद मुश्किल से तुलेबा हाजरी का सामना करने की अहलियत रखते है और न अतेमादी के साथ मुदिदल और ओसर अन्दाज म े तकरीर कर सकते है।
स्कुलो और काॅलेजो मे इस मकसद की तरतीब होनी चाहि, और तुलेबा को अपने नुकते नजर को मौसर अन्दाज मे पैश करने का अयल बनाना चाहि, तुलेबा को पारलमानी तरीका ,कार की सूरतो और हाजरीन जलसा को पार लमानी तरीका-,-कार की सुरतो और हाजरीन जलसा सूरतो को पारलमानी अन्दाज खिताब करने की आÛही हासिल होना चाहि,।
फन-,-खिताबत
इस सिलसिले मे तालीबे इल्म को इबतदाई तरतीब के जरियें किसी अहम मामले की मुतालिक खुद व खुद करने का मौका अयल बना देता है ।
इसका दुसरा इकदाम उन ख्यालात की तनजीम और उनको मुनासिब तरतीब मे मिलाकर ना है। इसकी तकमील के बाद तालीबे इल्म को अपनी बात दालाइल के साथ आरास्ता करने का हुनर सिखाता है। सिर्फ अपने वाकिआत और अपने ख्यालात की पैशकश काफी नही लेकिन महारत और तजूरबा से मुआसिर तकरीर का फन सिखाना चाहि,। मदरसो की अन्जूमन मुबाहिसे फन व तकरीर को मुकम्मल बनाने का मुनासिब मुकाम होती है। यहा तुलेबा न सिर्फ अपने ख्यालात का इजहार करता है बल्कि हरीक मखालिफ के ख्यालात से आजमाई भी करता है।
मुबाहिसा ,क लफजी मदाने जंÛ की हैसियत रखता है इसमे उम्मीदवार फतह इल्म की Ûरज से तकरीर करते है। इससे तालीब इल्म को अपने इख्तेयार करने पडती है। वो मुवाफिकते करने के तमाम तरीका इख्तेयार करने पडते है। वो मुवाफियत मे होÛें और इन निकात का तुअमर अन्दाज मे बहस करेÛा। जो इसकी जमानत मे होÛें बिला सब इसको शिरक्त से महसूस करना होÛा। इसका अपना नुक्ता , नजर सही है वरना वो जौक व शौक के साथ तकरीरे कर सकता है। कही इसको वह हम नही होना चाहि,। अच्छा मुर्कर वो होता है जो खुद पर काबू रखे मुखालिफो की कमजोरियो पर नजर रखे और इसके दलाइल की अपनी इस्तहाल से धज्जियां उडाये।
ड्रामाई पैशकश और शामे तÛमासाज
मौजूदा दौर मे ड्रामे को तालीम का फनी दर्जा तस्लीम कर लिया है। ,क सदी पहले वालदेन के सामने ये तजवीज रखी जाती थी कि अÛर स्कुल मे ड्रामा सोसायटी कायम होती है तो उनके अखलाक या तहजीब का सदमा पहुचता था। बाद में लोÛो के नजदीक सिनेमा थेयटर जाना भी मुनाफी इखलाक हो चुके। ड्रामा बहरूनी से नेकी और बदी के लि, जबरदस्त साबित हो सकती हैं। इस लि, स्कुल को इसे अपनाना चाहि, और इसे तालिमी मकासिद के लि, इस्तेमाल करना चाहि,। ड्रामा को काम स्कुल मे इबतदाई मंजिल से शुरू किया जा सकता है। दास्ताने परियों की कहानियां और बच्चो की कहानियां ड्रामो मे पेश की जा सकती है। नो बालÛी की मंजिल पर पुरा ड्रामा किया जा सकता हैं। इसकी हौसला अफजाई के लि, स्कुल हाॅल इस तरह से बना होना चाहि, कि इसे आसानी से स्टेज मे मुनतकील किया जा सके। कम से कम जरूरी जामान भी मोहिया होने चाहि,। ये जरूरी नही कि ,क तैयार शुदा ड्रामा को ही स्टेज किया जाये। ज़बान के असातजा की निÛरानी मे भी जमात ड्रामा तैयार कर सकती है। इस से जमात को ,क नई किस्म की अदबी तरबीयत मिलेÛी। तारीखी ड्रामें इस ,तेबार से मुफीद साबित होते है। क्योकि इस उस अहद की किरदारी और माहौल का तफसीली फिल्म हासिल होता है। इसमे तारीखी तखीली को तरक्की मिलेÛी।
स्कूल मैंÛजीन
अदबी सर Ûर्मीयो को तहरीर के लि, भी वफ्फ करना चाहि,। अदबी इजहार के फरोÛ के लि, स्कूल मैंÛजीन या अखबार ,क किमती आलाकार होता है तकरीर मे जबान की नजाकते अक्सर नजरअन्दाज कर दी जाती है। लेकिन तहरीर मे उन पहलुओ को नजर अन्दाज नही किया जा सकता है। मजीद बरा उम्दा इंशा परदाजी के लि, इस मौजू के मुताबिक काफी वाकफियत दरकार होती है। जिस मौजू पर कलम उठाया जा रहा है। इसका मतलब कतब और दूसरे अदब का मुताला है सिर्फ मालूमात या ख्यालात काफी नही। इसको दिलचस्प और दिलनशी अन्दाज मे पैश करना है तालीबे इल्म जानता है कि जो कुछ उसने लिखा है इसको पुरा स्कुल पढेÛा और लोÛ भी पढेÛें। उन्हे मुतासिर करने के लि, वो अपनी बहतरीन तखलीक पैश करने पर माईल होता है।
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तदरीस के जहां चन्द बुनियादी उसूल और जाबतेे है जिनका लिहाज कामयाब तदरीस के लि, जरूरी है। कुछ और तदाबीर और इमदादी सामान है। जिनको हसबे जरूरी इस्तेमाल करना चाहि,।
1- सवाल जवाब
2- बयान
3- तख्तेसिया
4- तोजीह व तशरीह
5- नक्शे, माॅडल, चार्ट, तस्वीर
6- ?ार का काम
7- दरसी किताब
8- इमदादी सामान- Û्रामोफोन, रेडियो, फिल्मे।
9- दारूलमुतालआ और लाइबे्ररी।
सवाल - जवाब
तदरीस मे सवालात को Ûैर मामूली अहमियत हासिल है जो अमातजा तुसलसल बोले जाते है न खुद सवाल करते और तुलेबा को सवाल करने का मौका देते उनकी तदरीस से तुलेबा बहुत फायदा पहुचता है। ,ेसे असबाक मे बच्चे कम दिलचस्पी लेते है।
सवालात की अहमियत व अफादियत
मौजू सुवालात की बडी अहमियत व अफादियत है। उनके जरियें।
1- तजस को बेदार करके बच्चो को सबक पर आमादा किया जा सकता है।
2- सबक में उन की तव्वजे व दिलचस्पी बरकरार रखी जा सकती है।
3- Ûैर मुताज्जे तुलेबा को मुताव्वजे करने और सुस्त रफ्तार को हशकाने और हिम्मत बधाने का काम लिया जा सकता है।
तरीका,ें इमतेहान और जांच:-
1- रिवायत तरीका, इम्तेहान आजादी के बाद तालीम दस्तुर मे कई किस्म के इसलेहात अमल मे आई उनमे इम्तेहान और तरीका, इम्तेहान खुसूसियत के साथ काबिल जिक्र हैं। इस सिलसिले में सरकारी और Ûैर सरकारी सतहो पर काफी Ûारो फ्रिक किया Ûया है । और इम्तेहान के मुरव्वतजा तरीके को रिवायती और फरसदा बनाया Ûया है। आम तौर पर से मौसूम किया जाता है। यह तरीकाये इम्तेहान कई ,तबार से नाकिस है अव्वल तो यह है कि इसके जरिये तमाम तालीम मकासिद के हुसूल की जांच नही हो पाती।
2- इसमे मारूजियत की Ûुंजाइश बहुत कम होती है। इम्तेहान को मौजूई इसलि, कहते है कि जांच की सहत का इनहसार जाती पसन्द व नापसन्द पर होता है और इसको भजमूनी इम्तेयाज इस ,तबार से कहते है कि इस इम्तेहान मे मवाद मजमून के किसी खास उनवान से हस होती है और रटी रटाई मालूमात की जांच की जाती है। तालीम के दीÛर पहलूओं इसके दायरे अमल से खारिज होते है। कोठारी कमीशन ने जांच और जांच के तरीके से मुतालिक खुसूसयित के साथ बहस की है कमीशन की सिफारिशात की रोशनी मे Ûौर किया ताये तो बैखुबी अन्दाजा होता है कि जदीद तरीकाये इम्तेहान का इस्तेमाल तालीमी तरक्की के लि, नाÛजीर है। उस्ताद के फराइज मे अहम फरीजा यह है कि वो अपने शार्Ûिदो की तरक्की की जाईजा लेता रहता है। इस बात का भुसलसल अन्दाजा लÛता रहे कि जमात का म्यार क्या है। शार्Ûिदो की इनफरादी दूश्वारिया क्या है और उनकी दूशवारियों को कैसे दुर किया जा सकता है। इस सिलसिले मे दो बाते काबिल जिक्र है। (1) जांच का काम मुसलसल होता रहना चहि, (2) जो उस्ताद पढाये वही शार्Ûिद की जांच का काम करें।
3- जदीद तरीका, इम्तेहान:- इम्तेहान के और जाचं के रिवायती की बरअक्स जदीद तसव्वूद वो है । जिसको मुसलसल जायेÛा लिया जाता है और इस बात का पता लÛाया जाता है कि तालिब इल्म ने क्या सीखा और क्या नही और वो नही सीख्चा पाया तो इसके अस्बाब क्या हो सकते है। अन्दाजाये कद हरचन्द के जहीद है लेकिन फिल वक्त जदीद नही है। इसलि, के इसका इस्तेमाल काफी दिनो से राइज है लेकिन मौजूई मजमूनी इम्तेहान के इस्तेमाल अभी आम नही हुआ और आज भी असतजा इसके इस्तेमाल मे दिलया, व इुज्जत से काम लेते है। हमारे हां अन्दाजो से डरने और तरज तहन पर उडने की रिवायत भी काफी मजबूत है। इसलि, अन्दाजा, कद्र के तरीके को अभी मकबूलियत नही हासिल हो पाई।
4- अन्दाजा, कर्द:- अन्दाजा, कर्द ,क तकनीकी इस्तेलाह है। इसके जरियें ज्यादा जाम, तौर पर पैमाइश की जा सकती है, लेकिन इसका तसव्वर पैमाइश से वसी है। पैमाइश मे मवाद मजमून के किसी ,क पहलू की पैमाइश की जाती है। इसका तालुक किसी खुसूसी महारत या खुसूसी काबलियत से हो सकता है। इसके बर अक्स अन्दाजाये कुर्द के तहत् महज मवादे मजमून की तहसीनी जांच मकसूद नही होती बल्कि वसी तर शाख्यियत के मुताबिक अकदार का फरोÛ भी पैश नजर होता है। मजीद यह है और पेमाईश के तख्व्वूर कममती पहनु वेश नजर होता है और किफायती पहलू नजर अन्दाज कर दिया जाता है। इन बातो के पैश नजर अन्दाजाये कर्द का तसव्वूर ज्यादा जाया और वसी होता है ।
मुरव्वजा मौजूई और मजमुनी इम्तेहान मे ,क बडा नुस्क ये है के इसके तहत् कमजोर तालिब इल्मो को छांट दिया जाता है और अÛली जमात के लि, मौजू तालीब इल्मो का इन्तेख्वाब मखसूद होता है। जबकि अन्दाजा, कर्द के तहत् इस बात का पता चला मकसूद होता कि बच्चा किस पहलू से कमजोर है और कैसे इस कमजोरी को रफा किया जा सकता है। चुकिं अन्दाजा, कर्द ,क मुसलसल अम्ल है, इसके जरिये उस्ताद को मूसलसल इस बात का मौका मिलता रहता है कि वो तालीब इल्मो की तरतकी का जायजा लेता रहे और उसकी को तालीयो की शिनाख्त करें। तालीब इल्म की का ÛुरदÛी अÛर नाकाबिल इतमेनान नही हो तो कही ,ेसा तो नही के निसाब मजमून इस कोताही का जिम्मेदार ही इसी सूरत में निसाब मजमून मे नजरे सानी की जा सकती है। उसको बहतर बनाया जा सकता है। तालिब इल्मो की सबकिया मालूमात को ताजा कराया जा सकता है और साथ ही साथ आमूजशी मशाÛिल मे तालीब इल्म की रहनूमाई की जा सकती है।
अन्दाजे कुर्द के मुखाले फीन भी है उनका कहना है कि तालीसी तहसील व तालीम वजाइफ को महज ,क हिस्सा है उनके नजदीक तालीब इल्म के शख्सी और समाजी पहल पर जौर देना बहुत जरूरी है। चुनाये यह भी तहसीफ पेदा हुआ के नही ,ेसा तो नही वो अपनाइत के जज्बे और खुदशनासी के अहसास से आदि है अन्दाजा, कुद्र उन खुबियों का अनदाजा लÛाने मे भी कारÛर निजाम ने ,क ,ेसे समाज की डाÛबेल डाली है। जिसकी बुनियाद मुसाबकत और नही हो पाती तहसील की बुनियाद चुके दरजा बन्दी पर होती है। इसलि, इसके तहत् महज थौडे से तालीब इल्म सरे फहरिस्त होते है। अकसरीयत बिछड ेजाती है और उनकी तहजीबी इक्तसादी और समाजी माजूरियो को दरखुरतना नही समझा जाता। मुखालेफीन का ,क Ûु्रप ,ेसा भी है जो बरतानवी मकतबे फिक्र से ताल्लुक रखता है। इस Ûिरोह का कहना है कि मकासिद पर मबनी तदरीस के तहत तोलबा की दरज जेल बातों की जांच होना चाहि,।
1- तोेलबा के इल्म मे किन-किन बातों का इजाफा हुआ।
2- तोलबा ने कौन-कौन सी नई महारतें सीखी।
3- तोलबा की समझ बुझ किन मालमात मे बढती है।
4- इन्सान फितरत और समाज के बारें मे तालीब इल्म के रवईये मे क्या तब्दीलियां हुई।
5- तोलबा ने किन-किन चीजो मे दिलचस्पी हासिल की
जांच का तरीका:-
इन तमाम मुबाहिस के बावजूद जबान का उस्ताद तहसील जबान की जांच के लि, माकूल तरीका इस्तेमाल कर सकता है अÛर शÛिर्दा को जो कुछ भी पढाया Ûया है , वह किस हद तक इसका इस्तेमाल कर पाये तो इसके लि, तहसीली जांच का परचा तैयार कर सकता है। अÛर पढाना शुरू करने से कहल इस बात की जांच करनी है के तालिब इल्म क्या जानते है। क्या नही तो इसके लि, ताशख्सी जांच पर परचा मुरतब कर सकते है और अÛर यह दरचाफत करना है कि शार्Ûिदो ने जो कुछ सीखा था उसमे से कितना भूल Ûये और कितना याद रखा हेै तो इसके लि, आदाई कजांच ली जा सकती है। उस्ताद तमाम आजामइशों को अपनी जरूरत और सहुलियत के लिहाज से इस्तेमाल कर सकता है। इन आजमाईस के जरिये तुलेबा की कारÛुर्दÛी की जांच की जा सकती और नताइज की बुनियाद पर जांच के परचे की मकबूलियत और नुताइज की सेहत का ताईन कर सकता है। जेरे नजर किताब प्राइमरी जमाअ से तालुक रखती है। जांच जबानी हो या तहरीरी दरजा जेल बातों का मलहूज रखना जरूरी है।
1- जांच के मकासिद की साफ-साफ वजाहत।
2- जांच की नोइयत के ,तबार से जांच की आलात का इस्तेमाल।
3- मकसूसी मकासिद के पेश नजर जांच की तैयारिया।
4- मयारी हालात के तहत् जांच का इस्तेमाल
5- आखुज नताईज मे अहतयाद
6- नताइज को बुनियाद पर जांच की तरजुमानीं
उस्ताद अÛर इन मलहूजात के जहनेनसी कर ले तो जांच की तैयारी को मुरतब करने मे कोई दुश्वारी नही होÛी मिसाल के वोट पर अÛर तहसीली जाच मकसूद है तो तहसीली जांच के मकासिद का वाजे जौर पर बयान होना जरूरी हैं मकासिद के ताईन के बाद दीÛर पहलूओ का ताईन मजामीन के लि, मुखतालिब किस्म की जांच इस्तेमाल की जा सकती है। वाकफी मजामीन के लि, तहरीरी जांच और महारथी जांच के अÛली जांच और पढाई की जांच के लि, जबानी इम्तेहान का तरीका मुनासिब समझा जाता है।
अन्तर - शि{ा.ा और शि{ाा
1- शि{ाा के उदद्ेश्य व्यापक होते है। ये सम्र्पू.ा पाठ्यक्रम से सम्बन्धित होते है। जबकि शि{ा.ा उद्देश्य सीमित होते है। इसका सम्बन्ध कालांश मे दिये Ûये विषय से होता है।
2- शै{िाक उदद्ेश्य दीर्धकालीन व शि{ा.ा उदद्ेश्य अल्पकालीन होते है।
3- शेै{िाक उदद्ेश्य सामाजिक होता है, जबकि शि{ा.ा उद्देश्य मनोविज्ञान हेाता है।
4- शै{िाक उदद्ेश्यो को सरलता से मापा नही जा सकता है, जबकि शि{ा.ा उदद्ेश्यो को सरलता से मापा जा सकता है।
5- शै{िाक उदद्ेश्यो को प्राप्त करने का आधार सभी विषय है, जबकि शि{ा.ा उददेश्य उसी विषय से होता है। जिसका आप अ?यापन करा रहे है।
6- शै{िाक उदद्ेश्य परिवर्तित होते रहते है जबकि शि{ा.ा उददे्श्य अपरिवर्तित होते है।
शि{ा.ा उददे्श्य का महत्तव
1- शि{ा.ा के विकास
2- व्यवस्थित क्रम देते है।
3- इसके }ारा शि{ा.ा को यह आसानी रहती है कि अपने शि{ा.ा में अपने उददेश्य को किस सीमा तक प्राप्त कर रहा है।
4- शि{ा.ा बालमनोविज्ञान के आधार पर होना चाहि,।